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सेवा का व्रत सबसे कठोर : स्वामी विवेकानंद महाराज - Sabguru News
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सेवा का व्रत सबसे कठोर : स्वामी विवेकानंद महाराज

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सेवा का व्रत सबसे कठोर : स्वामी विवेकानंद महाराज

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जलालाबाद। अखिल भारतीय सोहम् महामंडल वृन्दावन के तत्वावधान में चल रहे विराट संत सम्मेलन के छठे दिन श्रद्धालुओं को सेवा का महत्व को समझाते हुए महामंडलेष्वर वेदान्त मर्मग्य अखिल भारतीय सोहम्म महामंडल वृन्दावन के पीठाधीस्वर स्वामी विवेकानंद ने कहा कि सेवा का व्रत सबसे कठोर होता है, सेवा के लिए विवेक का होना आवश्यक है बिना विवेक के सेवा भी नहीें की जा सकती है।

भगवान हनुमान ने निरहंकारी होकर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की विवेकपूर्ण सेवा की थी और ज्ञानपूर्वक आज्ञा का पालन भी किया। चारों युगों के प्रभाव का वर्णन करते हुए कृष्ण पाण्डवों का संवाद भी सुनाया। उन्होंने कहा कि कलि काल में धर्म की रक्षा की बडी हानि होगी।लोग सदाचरण से विमुख हो जाएंगे। रक्षक ही भक्षक दिखाई देंगे। लोग अपने भाई से तो द्वेष कर लेंगे लेकिन दूर के रिश्तेदारों पर भरोसा व प्रेम करेंगे।

एक बाप दस वच्चों का पालन पोषण कर सुगमता से कर लेतार है पर बालक एक बाप की सेवा नहीं कर सकता है। सब कुछ विचि़त्र होने पर कलि काल की केवल एक ही विशेषता है कि सत्संग के प्रभाव से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। सत्संग के प्रभाव से जिस तरह भगवान वषीभूत होते है, वैसे किसी जप तप स्वाध्याय तीर्थाटन आदि साधन से नहीं हो पाते हैं। अतः कलि काल में सबसे सरल व सुगम भगवत्व प्राप्ति का साधन सत्संग ही है।

सेवया किं न लभ्यते, की सूक्ति को चरितार्थ करते हुए हनुमानजी ने भगवान के हृदय में ही स्थान प्राप्त कर लिया। स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने श्रीरामचरितमनास की चौपाइयों के माध्यम से श्रद्धालुओं को ज्ञानार्जित किया। उन्होने शबरी दीक्षा, श्रीरामजी द्वारा नवधा भक्ति, की विषद व्याख्या प्रस्तुत की। प्रथम भक्ति संतन कर संगा की पुष्टि अनेक दृष्टांतों के माध्यम से समझायी।

साह्म पीठ के उत्तराधिकारी स्वामी सत्यानंद महाराज ने आत्मवोध की चर्चा करते हुए श्रद्धालुओं को आत्म स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर, कारण शरीर पंचकोष से भिन्न तथा जाग्रत, स्वप्नष् शुषुप्त, का दृष्टा सद्चित आनंद स्वरुप है, यह आत्मा को जानने की आवश्यकता है।

उन्होंने सत्संग की अतिदुर्लभता को बताते हुए कहा कि पूर्व पुण्यों के बिना सत्संग प्राप्त करना मुश्किल है। इस सत्संग से जन्म जन्मांतरों के मल धुल जाते हैं। जीवन को सत्मार्ग पर चलने की प्रेरणा एवं दिशा प्राप्त होती है। अजामील, रत्नाकर, अंगुलीमाल आदि अनेकों दुष्ट स्वभाव वाले लोग संतों की संगति से सद्गति को प्राप्त हो गए।

स्वामी नारायणनंद ने सत्संग पर वयाख्यान दिया। स्वामी गीतानंद ने इंद्रियों का संयम करने की प्रेरणा दी। स्वामी सदानंद चरित्र के उपर प्रकाश डाला। स्वामी ब्रह्मचारी गौरव स्वरुप ने अंतःकरण की शुद्धि के उपाय वताए। परषुराम मंदिर के पुजारी ने नाम की महिमा एवं महत्व को वताया। संत सम्मेलन का समापन दो मार्च को होगा। सभी श्रद्धालु भोजन प्रसादी गहण करेंगे।