पहले ही कहें तो बेहतर होगा कि शशिकला का एआइएडीएमके का महासचिव बनना सामान्य सी खबर है। विचार तो इस पर होना चाहिए कि वह मुख्यमंत्री कब बन सकेंगी।
कयास यह लगाया जाना चाहिए कि उनके मुख्यमंत्री बनने की राह में बाधा कहां अथवा कौन है। जयललिता के निधन के बाद बड़े सहज ढंग से उनका कार्यभार देख रहे पन्नीर सेलवम को विधायक दल का नेता चुन लिया गया था और उन्होंने जयललिता के वैधानिक उत्तराधिकारी का दायित्व सम्भाल लिया।
तभी यह समाचार भी आ गया था कि राज्यसभा सदस्य शशिकला पुष्पा के लाख अड़ंगों के बावजूद वीके शशिकला की राह में कोई बाधा नहीं है। शशिकला पुष्पा से पार्टी प्रमुख पहले से ही नाराज थीं। जब एक अन्य सांसद के साथ शशिकला पुष्पा के उलझने की खबर आई तो जयललिता के लिए उन्हें बाहर का रास्ता दिखाना आसान हो गया।
ऐसी शशिकला पुष्पा जब पार्टी दफ्तर में आकर जनरल सेक्रेटरी चुनाव के लिए नामांकन करना चाहती थीं, बाहर ही उनके वकील की पिटाई कर दी गई। वकील लिंगेशवरन थिलायन पुष्पा के पति हैं और उनके नामंकन का प्रस्ताव करना चाहते थे।
यह साफ संकेत था कि अम्मा यानी जयललिता ने जिसे बर्खास्त कर दिया, अम्मा के समर्थक उसे मन से बाहर का रास्ता ही नहीं दिखाते, इसका प्रदर्शन भी खूब करते हैं। एआइएडीएमके की प्राथमिक सदस्यता से बर्खास्त शशिकला पुष्पा किस आधार पर पार्टी महासचिव बनना चाहती थीं, अपना कोई तर्क रख सकती हैं।
उन्होंने जयललिता के इलाज और उनकी मृत्यु को भी संदेहास्पद बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली है। बहरहाल, चूंकि वह बर्खास्त की गई हैं, लिहाजा राज्यसभा की सदस्यता बचाये रखने में सफल हैं। खुद दल छोड़ कर गई होंतीं तो सांसद भी नहीं रह पातीं।
अब उन्हें पार्टी अथवा सरकार में कोई पद हासिल कर लेने का सपना कैसे आता है, शोध का विषय हो सकता है। दरअसल, शशिकला पुष्पा की नामधारी वीके शशिकला करीब तीन दशक से अम्मा की सहचरणी की तरह रही हैं।
उन्हें जयललिता की मित्र, पारिवारिक सदस्य और पार्टी में भी बेहद करीबी के रूप में देखा जाता रहा। वह अम्मा के राजनीतिक सफर में उस नकारात्मक दबाव का भी कारण बनी थीं, जब अम्मा ने उनके भतीजे को गोद लेकर गिनीज बुकिया रिकॉर्ड खर्च वाली शादी कराई थी।
तब तमिलनाडु की मुख्यमंत्री और एआइएडीएमके नेता के गहनों और चप्पल-सैंडल तक के शौक मीडिया का हिस्सा बना करते थे। फिर तो कई दौर आये। एक दौर में अपने पति के कारण वीके शशिकला अपनी साथी जयललिता के आवास से हटा भी दी गई थीं। कुछ समय बाद वह अपनी स्थिति स्पष्ट कर सकीं, तब पति को बाहर छोड़कर जयललिता के आवास में उनका फिर से आना सम्भव हो सका था।
वीके शशिकला अपनी दोस्त के पास फिर से आईं तो उनका करीबीपन इतना बढ़ा कि जयललिता की भतीजी दीपा जयकुमार भी घर में नहीं रह पाई। राजनीतिक समीक्षक मानते हैं कि शशिकला पुष्पा के कुछ मुट्ठीभर समर्थक कभी वीके शशिकला के खिलाफ एकजुट होने की सोचें, तो यही दीपा जयकुमार उनकी उम्मीद बन सकती है।
फिलहाल तो निर्बाध ढंग से वीके शशिकला पार्टी महासचिव की कुर्सी तक पहुंच गई हैं। इस स्थिति में वह जयललिता की व्यक्तिगत और संगठनात्मक सम्पत्ति की भी उत्तराधिकारी हो सकती हैं। अभी दूर है तो सिर्फ मुख्यमंत्री की कुर्सी, जो पन्नीर सेलवम के पास है।
यहीं उस सवाल का जवाब मिलता है कि वीके शशिकला के सीएम बनने में बाधा कौन और कहां है। भविष्य अभी आंका भी नहीं जा सकता कि जयललिता के परिवार की एकमात्र सदस्य, उनकी भतीजी दीपा जयकुमार कब और कैसे उनकी मजबूत विरोधी बनेगी।
फिलहाल तो अपने ही तरह जयललिता के करीब रहे पन्नीर सेलवम ही वीके शशिकला की राह में बाधा हैं। जयललिता ने अपने जीवन काल में ही उन्हें दो बार मुख्यमंत्री बनने का मौका दिया था। तीसरी बार अम्मा की बीमारी के समय भी उन्होंने ही सारा काम संभाला।
खास बात यह है कि सीएम की कुर्सी पर अम्मा का चित्र रखकर काम करने वाले सेलवम ने जयललिता का भरोसा जीतने के साथ बाहर अम्मा के समर्थकों में भी अपनी यही छवि बनाई है। यह छवि वीके शशिकला बहुत आसानी से नहीं तोड़ सकेंगी।
इस काम में समय लगेगा। यह जरूर है कि पार्टी महासचिव पद हासिल कर लेने के बाद अम्मा की सहेली अब उनकी दूसरी और मजबूत कुर्सी पर भी नजर रखती रहेंगी।
डॉ. प्रभात ओझा