सिरोही। ठीक एक साल पहले प्रदेश में एक नारा गूंज रहा था आओ साथ चलें। जनता ने सोचा कि भाजपा जनता के साथ चलने की बात कर रही है। और उन्होंने प्रदेश की एक चैथाई सीटें उसे दे दी। आठ महीने में ही लोगों का भ्रम टूटा। उन्हें महसूस हुआ कि सरकार लोगों की बजाय कांग्रेस के भ्रष्ट जनप्रतिनिधियों और भ्रष्ट अधिकारियों को साथ लेकर चलने की बात कर रही थी। जब हकीकत खुली तो उपचुनाव में ही तीन चैथाई सीटें भाजपा से छीनकर कांग्रेस को दे दी।…
समीक्षा की तो भाजपा के नेता इसका ठीकरा प्रदेश नेतृत्व की बजाय स्थानीय कारणों को देने लगे। यह स्थानीय कारण नगर परिषद चुनावों के पहले सिरोही में भी दिखने लगा है। सरकार बदली तो लगा कि स्थानीय विधायक नगर परिषद में व्याप्त भ्रष्टाचार का खात्मा करेंगे। हुआ उल्टा। वो यहां पर भ्रष्टाचार और भ्रष्टो के सबसे बडे संरक्षक के रुप मे भाजपा कर्यर्ताओ के बीच प्रसिद्ध हो गए। ऐसा नहीं है कि प्रदेश में विधायकों ने भ्रष्टाचार की जडो पर चोट नहीं की। ब्यावर विधायक शंकरसिंघ रावत इसका सबसे बडा उदाहरण है जिन्होंने सोलह मई को लोकसभा चुनावों की गिनती होते ही नगर परिषद पर ऐसी गाज गिराई कि लोगों में विधायक की छवि जनहितैषी नेता की बनी।
यह तो छोडो आबूरोड में ही एक साधारण कार्यकर्ता ने नगर पालिका के नेता और अधिकारियों की ऐसी हालत की कि अब वह कानून से भागते फिर रहे है। सिरोहीवासियो और भाजपा कर्यकर्तओके जेहन मे ये सवाल कौन्ध रहा है कि राज्य का एक विधायक और जिले की भाजपा का एक स्थानीय कार्यकर्ता अपनी इच्छाशक्ति से भ्रष्टाचार के रावण को धराशायी कर सकता है तो सिरोही विधायक क्यों नहीं। रही सही कमी अब पूरी हो गयी । नगर परिषद सिरोही में ऐसा अधिकारी लाकर बैठा दिया जो कांग्रेस राज के भ्रष्टचार पूर्ण निर्णयो को ही आगे बढाकर नगर परिषद कोष को चूना लगाने मे लग गये है ।
हालात यह हो गए है कि आम शहरवासियो के साथ साथ खुद भाजपा के कर्मठ कार्यकर्ता व पदाधिकारी इसे विधायक को कमल की बजाय भी कमल कांग्रेस के जनप्रतिनिधि कहने लगे है। सिरोही स्थानीय विधायक और उनके इर्दगिर्द के लोग हर बात के लिए मुख्यमंत्री से बात करने का इस तरह दावा करते हैं कि जैसे 161 विधायकों में से सबसे करीबी वही है।
मान भी लिया जाए कि ऐसा है तो फिर सिरोही नगर परिषद में भ्रष्टाचार को रोकने में विफलता के पीछे दो ही कारण माने जा सकते हैं। एक या तो विधायक मुख्यमंत्री सिरोही नगर परिषद की कार्यप्रणाली और भ्रष्टाचार का गलत फीडबैक देकर जनता की बजाय भ्रष्टाचारियों की पैरवी कर रहे है, या फिर मुख्यमंत्री से करीबी होने और उन्हें यहां की हर बात बताने की बात वह जनता और अधिकारियों को भ्रमित करने के लिए कर रहे है।
तो सांसद का भी समर्थन!
सिरोही नगर परिषद में जो आयुक्त लगाए गए हैं वह आबूरोड में भी अधिशासी अधिकारी रह चुके है और जालोर लोकसभा क्षेत्र की सांचोर नगर पालिका में भी। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इसी सरकार में इनकी कार्यप्रणाली को लेकर सांचोर शहर एक दिन बंद भी रहा था। सांचोर में स्थानीय सांसद देवजी पटेल का कार्यालय भी है। इनकी कार्यप्रणाली को लेकर सांचोर बंद होने से खुद सांसद देवजी पटेल नावाकिफ हों ऐसा नहीं लगता। ऐसे में उन्हीं के संसदीय क्षेत्र में इस तरह के अधिकारी की पोस्टिंग भी सवालिया निशान लगा रही है।
ऐसे में यहां के लोग खुद सांसद की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे है। लोगों मे यह चर्चा है कि सांसद ने अपने गृह क्षेत्र में ठुकराए अधिकारी को सिरेाही में क्यों लगवाया, अगर इस अधिकारी की पोस्टिंग में सांसद की कोई भूमिका नहीं है तो क्या विधायक ने सांसद से चर्चा करना मुनासिब नहीं समझा और सबसे बडा सवाल जो उठ रहा है वह यह कि विधायक ओटाराम देवासी का कद सांसद से भी उंचा हो गया जिससे सरकार की नजर में उनकी राय की कोई तवज्जो नहीं है। यह वो सवाल हैं जिनके उत्तरों पर आगामी नगर परिषद चुनावो में भाजपा का भाग्य तय होगा।
वैसे विधायक की कार्यप्रणाली से सिरोही में भाजपा को पहले ही जिला परिषद के उपचुनाव में मुंह की खानी पडी थी, जब जिला परिषद के वार्ड संख्या बीस की सीट कांग्रेस ने भाजपा से छीन ली थी। शहर में भ्रष्टाचार को लेकर विधायक की ढुलमुल नीति को देखकर खुद भाजपाई यह मानने लगे हैं कि सिरोही में फिर कांग्रेस का बोर्ड बनेगा। लोगो के बीच मे विधायक की भूमिका इस बात को लेकर भी संदेह के घेरे में है कि शहर में फोरलेन के समीप सार्दुलपुरा क्षेत्र में सरकार की बेशकीमती भूमि पर जो नए अतिक्रमण हुए हैं उसे करने वाले खुद विधायक देवासी की जाति के ही लोग है।