वर्तमान में भारत देश की राजनीति दिशाहीन होती दिखाई दे रही है। बार-बार बदल रहे स्वार्थी लक्ष्यों के चलते राजनीतिक दलों के सामने केवल एक ही लक्ष्य रह गया है कि सत्ता कैसे प्राप्त की जाए। राजनेताओं के बारे में निम्न स्तर की बयानबाजी आज आम बात होती जा रही है।
इस प्रकार की बयानबाजी निश्चित रुप से देश को कमजोर करने का काम कर रही है। यह सेवा भावी राजनीति के पतन के कारण ही हो रहा है। ऐसा इसलिए भी हो रहा है कि वर्तमान के राजनेता जनता से सरोकार कम और अपने ऐशोआराम पर ज्यादा ध्यान देने लगे हैं। वास्तव में राजनेताओं को जन भावनाओं को ध्यान में रखकर ही अपने कार्य करने चाहिए।
बहुजन समाज पार्टी द्वारा उत्तरप्रदेश में किया जा रहा प्रदर्शन आज उसी के गले की फांस बनता दिखाई दे रहा है। अपने राजनीतिक फायदे के लिए किया गया प्रदर्शन स्वयं बसपा के लिए उलटी चाल साबित हो रहा है। भाजपा से दो कदम आगे आकर उसने महिलाओं की इज्जत को सरेआम बदनाम किया।
महिला इज्जत के नाम पर किए जाने वाले बसपा के विरोध प्रदर्शन में महिलाओं के लिए गलत भाषा का प्रयोग किया गया। सीधे तौर पर कहा जाए तो वर्तमान में बसपा ने महिलाओं को बेईज्जत कर दिया।
कोई व्यक्ति गलती करता है तो एक जिम्मेदार नागरिक के नाते हम सभी को प्रकरण दर्ज कराना चाहिए, लेकिन हम भी वैसा ही समाज विरोधी कृत्य करें, यह ठीक नहीं। बसपा ने ठीक वैसा ही किया है, बल्कि उससे भी बढ़कर महिलाओं का अपमान किया है।
देश के केवल उत्तरप्रदेश में व्यापक प्रभाव रखने वाली बहुजन समाज पार्टी का उद्भव वैमनस्यता के आधार पर ही हुआ था। सभी जानते हैं कि बसपा के नेताओं ने देश की उच्च जातियों के विरोध में निम्न स्तर की बयानबाजी करके दलित तबके को गुमराह किया।
प्रदेश में बसपा की दो बार सरकार बनने के बाद भी प्रदेश में दलितों की हालत में किसी प्रकार का कोई सुधार नहीं हुआ है। दलितों की हिमायती बनने वाली बसपा के नेताओं को शायद यह नहीं मालूम कि देश की सभी सरकारों ने दलितों के उत्थान के लिए कई कार्यक्रम चलाए हैं और आज भी चलाए जा रहे हैं।
वंचित समाज के उत्थान के लिए लिए आरक्षण भी अन्य दलों की सरकार ने ही दिया है। जहां तक भाजपा की बात है तो यही कहा जा सकता है कि देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी वंचित समाज की देन है। आज वे देश के प्रधानमंत्री पद पर आसीन हैं, इसलिए यह कहा जाना कि भाजपा दलित विरोधी है, किसी भी रुप से ठीक नहीं कहा जा सकता।
भाजपा के पूर्व नेता दयाशंकर सिंह ने बसपा प्रमुख मायावती के बारे में जो टिप्पणी की थी, उसकी सजा भाजपा ने दयाशंकर को दे दी है। बिना देर किए भाजपा ने उसे पद से हटा कर पार्टी से भी निष्कासित कर दिया। इसका मतलब साफ है कि भाजपा को किसी भी महिला का अपमान बर्दाश्त नहीं है। वह चाहे मायावती हों या फिर अन्य कोई महिला।
लेकिन बहुजन समाज पार्टी ने इस प्रकरण को एक चुनावी मुद्दा मानकर जिस प्रकार की राजनीति की। उससे निश्चित ही महिलाओं का अपमान हुआ है। बसपा के एक प्रमुख नेता नसीमुद्दीन ने दयाशंकर के धर के सामने किए गए प्रदर्शन में कहा था कि दयाशंकर की लड़की को पेश करो।
पेश करने का अर्थ हम सभी जानते हैं। इसका सीधा सा अर्थ है कि दयाशंकर की बेटी की सरेआम आबरु लूटी जाती।
यह बात सही है कि गुस्सा सभी को आती है, लेकिन गुस्से में महिलाओं की इज्जत को सरेआम तार तार करना कहां की इंसानियत है। दयाशंकर की पत्नी ने दुख जताते हुए कहा कि बसपा नेताओं को केवल अपनी पार्टी की महिलाओं की इज्जत प्यारी है, बाकी की महिलाओं के बारे में उनकी मानसिकता बहुत ही निम्न स्तर की है।
ऐसी मानसिकता को लेकर बसपा किस मुंह से महिला सुरक्षा की बात की बात करती है। जहां तक बसपा प्रमुख मायावती की बात है तो उनके बारे में कई राजनेताओं ने यहां तक कह दिया है कि उनको केवल धन एकत्रित करने की जुनून है। बसपा के नेताओं ने ही कई बार उन पर टिकट बेचने तक के आरोप लगाए हैं। यह कारण अगर सही हैं तो यही कहा जा सकता है कि मायावती प्रदेश के वंचित समाज को गुमराह करके केवल अपना ही भला करने का काम कर रही हैं।
मायावती जब राजनीति करने आईं थीं, उस समय उनके पास कुछ नहीं था, जबकि आज की स्थिति में उनके पास दौलत का अकूत खजाना है। उनके ऊपर आय से अधिक संपत्ति का मामला भी चला है। जो निश्चित रुप से इस बात की गवाही देने के लिए पर्याप्त है कि उन्होंने केवल अपनी और अपने परिवार की स्थिति को संवारा।
बहुजन समाज पार्टी द्वारा भाजपा के विरोध में किए गए प्रदर्शन ने कई प्रकार के सवालों को जन्म दिया है। पहला तो यह कि जब भाजपा ने महिला के बारे में अभद्र टिप्पणी करने के मामले में दयाशंकर को पार्टी से निकाल दिया, ऐसी स्थिति में बसपा द्वारा भाजपा के विरोध में प्रदर्शन करना न्याय संगत नहीं माना जा सकता।
लेकिन जब बसपा ने अपने प्रदर्शनों के माध्यम से महिलाओं का चरित्र हनन किया तो फिर भाजपा भी उनके बचाव में उतर आई। यहां यह उल्लेख करने वाली बात है कि भाजपा ने केवल दयाशंकर की पत्नी और बेटी के बारे में बसपा नेताओं की अभद्र भाषा को असहनीय माना है।
अब सवाल यह भी उठता है कि बसपा ने विरोध किया, तो अब बसपा क्या कर रही है। उसने तो महिलाओं को सरेआम बेईज्जत किया। सड़क पर खड़े होकर दयाशंकर की बेटी को पेश करने की बात महिलाओं को सरेआम बदनाम करने के समान है।
खास बात यह है कि जिस प्रकार भाजपा ने दयाशंकर सिंह को पार्टी से निकाला, क्या उसी प्रकार की कार्यवाही मायावती भी कर सकने की हिम्मत कर सकतीं हैं। मायावती शायद ऐसा कर पाने का साहस नहीं कर सकती। क्योंकि बसपा ने केवल सत्ता प्राप्त करने के लिए ही प्रदर्शन किया। वर्तमान में बसपा का यह प्रदर्शन उसके गले की फांस बनता हुआ दिखाई दे रहा है।
आज भले ही बसपा और भाजपा द्वारा एक दूसरे के विरोध में प्रदर्शन किए जा रहे हैं, लेकिन वास्तव में इस प्रकार की राजनीति करना किसी भी प्रकार से ठीक नहीं कही जा सकती है। ऐसे मामलों को हवा देने की बजाय सारे राजनीतिक दलों को एक साथ मिलकर ऐसे मामलों को रोकने का काम करना चाहिए।
राजनीति करना अलग बात है, लेकिन इस प्रकार की राजनीति करना कहीं न कहीं देश को कमजोर करने की साजिश है। देश और समाज के बारे में राजनेताओं का चिन्तन एकदम शून्य होता दिखाई दे रहा है। आज हम किसी भी बुराई के लिए सरकारों को आसानी से जिम्मेदार ठहरा देते हैं, लेकिन हमने कभी सोचा है कि समाज की मानसिकता को हम किस दिशा की ओर ले जा रहे हैं।
इसको समाप्त करने के लिए राजनीति की नहीं, बल्कि समाज नीति की आवश्यकता है। एक ऐसी समाज नीति, जिससे देश की जनता में जागरुकता आए और ऐसे असामाजिक कार्यों के प्रति जनता के मन में अरुचि का वातावरण निर्मित हो।
यह सब जिम्मेदार राजनेताओं की जिम्मेदारी तो है ही साथ ही समाज के लोगों की भी जिम्मेदारी है। जिस दिन हमें इस सामूहिक जिम्मेदारी का बोध हो जाएगा, उस दिन इस प्रकार के कृत्य बंद हो जाएंगे।
सुरेश हिन्दुस्थानी