भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन द्वारा स्वयं इस घोषणा के बाद कि वे दूसरा कार्यकाल नहीं लेेंगे उनसे संबंधित विवाद का अंत हो जाना चाहिए। जिस तरह से भाजपा नेता एवं राज्य सभा सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी ने उनके खिलाफ मोर्चा खोलते हुए कह दिया था कि उनको दूसरा कार्यकाल नहीं दिया जाना चाहिए क्योंकि वो भारतीय कम विदेशी ज्यादा हैं उससे तीखा विवाद आरंभ हो गया था।
नेताओं और मीडिया का एक वर्ग राजन के पक्ष में मोर्चा खोलकर सुब्रह्मण्यम स्वामी पर हमला कर रहा था। इसमें सरकार की खामोशी का संकेत भी साफ था। शायद सरकार स्वयं भी उन्हें दूसरा कार्यकाल देने के पक्ष में नहीं थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि रिजर्व बैंक का गवर्नर कौन होगा इसकी चर्चा मीडिया में न हो।
वित्त मंत्री अरुण जेटली का वक्तव्य था कि इसका फैसला सही समय पर होगा। स्वयं राजन ने पहले कहा था कि यह प्रश्न उनके जवाब देने का नहीं है। कुल मिलाकर ऐसा लगता है कि सरकार की ओर से सकारात्मक संकेत न मिलने के कारण राजन ने स्वयं अपनी ओर से ही यह घोषणा कर दी। उनकी घोषणा पर अरुण जेटली का यह वक्तव्य कि सरकार उनके निर्णय का स्वागत करती है सब कुछ अपने आप कह देता है।
भारत जैसे देश में कोई एक व्यक्ति इतना अपरिहार्य नहीं हो सकता कि उसके बिना काम न चले। भारतीय रिजर्व बैंक राजन के पूर्व भी अपनी भूमिका निभा रहा था और बाद में भी निभाएगा। अभी तक रिजर्व बैंक के गवर्नर को कई मामलों में कुछ ज्यादा शक्तियां रहीं हैं और यों कहें कि मौद्रिक नीति के मामले में वीटो पावर भी। इसलिए कोई भी सरकार रिजर्व बैंक के गवर्नर के पद पर ऐसे व्यक्ति को बिठाना पसंद करती है जिसके साथ उसका तालमेल बेहतर हो।
राजन के साथ मोदी सरकार दो वर्ष से काम अवश्य कर रही थी लेकिन यह कहना उचित नहीं होगा कि उनके बीच जैसा तालमेल और संवाद होना चाहिए वैसा था। आखिर ब्याज दर को लेकर वाणिज्य मंत्री सीतारमण ने ही राजन के खिलाफ बयान दे दिया था। भारतीय रिजर्व बैंक का इतिहास भी अजीब रहा है। आज तक रिजर्व बैंक में काम करते हुए केवल एक व्यक्ति एम नरसिम्हन ही 1977 में रिजर्व बैक के गवर्नर के पद पर पहुंचे।
राजन को मिलाकर अभी तक रिजर्व बैंक के 23 गवर्नर हो चुके हैं। इसके पूर्व भी गवर्नरों से सरकारों का विवाद हुआ है। पूर्व यूपीए सरकार के कार्यकाल में ही गवर्नर डी. सुब्बाराव से वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम का तनाव ब्याज दर को लेकर हो गया था। सरकार की मंशा के विपरीत डी. सुब्बाराव ब्याज दर घटाने को तैयार नहीं हुए।
वैसे भी मोदी सरकार बैंकों की दिशा में ऐसे कई बड़े सुधारों को लेकर आई है और स्वयं रिजर्व बैंक की निर्णय प्रक्रिया में सुधार करने जा रही है। इसके लिए उसे अपने मनमाफिक गवर्नर चाहिए। सरकार पूरी बैंकिंग प्रणाली में आमूल बदलाव लाना चाहती है तथा रिजर्व बैंक की पुनर्रचना की ओर कदम उठा रही है। देश के सामने उपस्थित वित्तीय चुनौतियां तथा दुनिया की स्थिति को देखते हुए कई बड़े बदलाव प्रस्तावित हैं।
उदाहरण के लिए सरकार मौद्रिक नीति समिति या एमपीसी गठित करने जा रही है जिसमें सरकार की ओर से तीन सदस्य होंगे और रिजर्व बैंक के दो सदस्य तथा गवर्नर इसमें शामिल होंगे। इसमें गवर्नर को भी समान शक्तियां हासिल होंगी। यानी मौद्रिक नीति वे अकेले नहीं तय कर पाएंगे। बैंकों के लिए ब्याज दर के मामले में भी उनका वीटो अधिकार खत्म हो जाएगा।
अभी भी रिजर्व बैंक की एक समिति है जो अर्थव्यवस्था के अपने आकलन के अनुकूल ब्याज दर की सिफारिश करता है लेकिन गवर्नर के लिए उसे स्वीकार करना जरुरी नहीं है। वह उसे अस्वीकृत कर अपने अनुसार ब्याज दर निर्धारित कर सकता है। रघुराम राजन इस प्रकार की समिति के पक्ष में नहीं थे। सरकार की घोषणा है कि समिति सितंबर से काम करना आरंभ कर देगी।
राजन का कार्यकाल भी 4 सितंबर को समाप्त हो रहा है। इस तरह रघुराम राजन अंतिम ऐसे अधिकार प्राप्त गवर्नर होंगे। इसके बाद सरकार की भूमिका मौद्रिक नीति तय करने में बढ़ जाएगी। यानी ब्याज दर कितना होगा, रेपो दर क्या होगा, रिवर्स रेपो कितना होगा….आदि सरकार की सोच से निर्धारित होगी। सरकार एवं रिजर्व बैंक के सदस्य के समान संख्या में होने का मतलब यही है।
रघुराम राजन के बारे में यह नहीं कहा जा सकता हैं कि उन्होंने कुछ किया ही नहीं। उन्होंने सुधार के कई दूरगामी कदम उठाए। अभी उन्हें संसदीय समिति के समक्ष उपस्थित होना है जिसमें वो अपनी उपलब्धियां रखेंगे। अनौपचारिक तौर पर कुछ आंकड़े मीडिया के लिए उपलब्ध कराए गए हैं। मसलन, विकास दर वित्त वर्ष 2015-16 की अंतिम तिमाही में 7.9 प्रतिशत होना, मई में थोक महंगाई दर 0.79 प्रतिशत एवं खुदरा महंगाई दर 5.76 प्रतिशत, रेपो दर 6.5 प्रतिशत, विदेशी मुद्रा भंडार 367 अरब डॉलर….आदि।
इसे केवल रिजर्व बैंक की उपलब्धि मानें या सरकार की इस पर यकीनन विवाद की गुंजाइश है। राजन के समय की एक बड़ी चुनौती बैंकों के फंसे कर्ज यानी एनपीए रही है। हालांकि यह समस्या उनके पहले से चली आ रही थी लेकिन पिछले सालों में वह काफी बिगड़ी है। राजन ने सरकारी बैंकों को कहा कि जहां कहीं भी खातों में एनपीए छिपाया गया है उनको सामने लाया जाए ताकि यह साफ हो सके कि वाकई यह कितना है। बैंकों को इसके लिए चेतावनी दी गई।
तो यह उनकी उपलब्धि है कि लगभग एनपीए का आंकड़ा उन्होंने निकाल लिया और यह प्रक्रिया ठीक तरीके से चल रही है। यह इस समय 5 लाख 78 हजार करोड़ रुपए के लगभग है। मार्च 2015 में सरकारी बैंकों का एनपीए 2 लाख 67 हजार करोड़ दिख रहा था जो इस समय 4 लाख 76 हजार करोड़ रुपया है।
कहने की आवश्यकता नहीं कि सारे खातों को खंगालने का काम अभी अधूरा है। यानी एनपीए में और बढ़ोत्तरी हो सकती है। राजन की जगह जो नए गवर्नर आएंगे उनके सामने यह एक बड़ी चुनौती होगी। हमारे बैंक घाटे में चल रहे हैं और इस स्थिति में उनका घाटा और बढऩा है। राजन के नेतृत्व में रिजर्व बैंक ने एनपीए की वसूली के लिए हाल में ही बैंकों को ज्यादा अधिकार दिए हैं।
सरकार भी इनके लिए नया कानून लेकर आ रही है। यह काम रिजर्व बैंक के नेतृत्व में होना है। राजन के प्रयासों से इतना तो हो गया कि बैंक आसानी से पहले की तरह अब एनपीए नहीं छिपा सकते। लेकिन बैंक आगे सतर्क रहें, एनपीए की हमेशा निगरानी होती रहे, न हो तो उन अधिकारियों को सजा दी जाए तथा वसूली की प्रक्रिया तेज हो यह सब करने की आवश्यकता है।
राजन यह काम अगले गवर्नर के लिए छोड़कर जा रहे हैं। राजन ने सुधारों की दिशा में कई काम और करने की कोशिश की जिसमें भारत में एक मजबूत कर्ज बाजार स्थापित करना था। यूनिवर्सल बैंक का लाइसेंस देना भी इसी में शामिल था। इसी तरह पेमेंट बैंक एवं स्मॉल बैंक की शुरुआत का कदम भी उठाया गया। 11 पेमेंट बैंकों के लाइसेंस दिए गए हैं।
इससे भारत की कई अलग क्षेत्रों में काम करने वाली दिग्गज कंपनियों के लिए बैंकिंग सेवा में आने का रास्ता खुल गया है। किंतु जब तक यूनिवर्सल बैंक एवं कस्टोडियन बैंक का लाइसेंस नहीं दिया जाएगा यह कार्य अधूरा ही रहेगा। तो यह काम आने वाले गवर्नर को करना होगा।
प्रधानमंत्री घर तक बैंकिंग सुविधा पहुंचाने की बात करते रहे हैं। वे मोबाइल बैंकिंग को आसानी से आम लोगों तक पहुंच बनाने का आह्वान कर रहे हैं। यह कैसे होगा? पेमेंट बैंक एवं स्मॉल बैंक गांवों तक लोगों के पास वाकई पहुंच रहे हैं या नहीं यह देखना रिजर्व बैक के गवर्नर की ही जिम्मेवारी होगी। अगर नहीं पहुंच रहे हैं तो उनमें क्या सुधार की आवश्यकता है यह भी करना होगा।
वास्तव में बैंकिंग सेवा का पूरा वर्णक्रम बदलने की नरेन्द्र मोदी की योजना है। भारत जैसे देश में यह आसान नहीं है। पोस्टल सेवा को बैंकिंग सेवा देने संबंधी सुविधाएं दी गईं हैं। ऐसे और भी कदम उठाए जाएंगे जिनका नियमन और विकास भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर के सिर होगा।
: अवधेश कुमार