आबूरोड ( सिरोही)। जिले के एक सरकारी चिकित्सालय में पैदा हुए बच्चे को बेचने की अज्ञात व्यक्ति की ओर से 29 अगस्त को मिली शिकायत की गयी थी। इसके बाद जिला चिकित्सा विभाग ने इसकी जांच शुरू कर दी, लेकिन इतना गंभीर मामला होने पर भी अब तक जांच समिति किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंची है। ऐसे में न तो आरोप निराधार साबित हो रहा है और न ही किसी के दोषी होने पर उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज हो पा रही है।….
आबूरोड सार्वजनिक चिकित्सालय में पैदा हुए बच्चे को बेचने के मामले की शिकायत की वास्तविकता जो भी हो, लेकिन जांच समिति बनाने के बाद भी समिति जिस तरह की लापरवाही कर रही है, वह मामले का सत्य उजागर होने में देरी कर रही है।
चिकित्सा विभाग इस मामले को लेकर इसलिए भी संदेह में है कि यह मामला एक तरह से मानव तस्करी को भी होता है, ऐसे में चिकित्सा विभाग ने पुलिस अधीक्षक और स्थानीय थाने के संज्ञान में भी यह मामला नहीं डाला है। जिस तरह का यह मामला है इसमें मल्टी एजेंसी जांच बैठाई जाने की आवश्यकता थी जो नहीं हुआ।
बच्चा पैदा हुआ, बिका और मर भी गया
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय में 29 अगस्त को एक गुमनाम पत्र मिला। इसमें आबूरोड सामुदायिक चिकित्सालय में एक दलित युवती के बच्चा पैदा होने और उसे बाद में बेच देने की शिकायत थी। जानकारी के अनुसार जिस बच्चे को बेचा गया था उसकी बाद में आबुरोड में ही एक चिकित्सालय में उपचार के बाद मौत भी हो गयी थी।
सीएमएचओ ने तुरंत इस मामले की जांच के लिए एक समिति गठित कर दी। इसमें आबूरोड के बीसीएमओ गौतम मोरारका, डॉ एम.एल. ङ्क्षहडोनिया और पिण्डवाड़ा के चिकित्सा डॉ चौथाराम को शामिल किया गया। इतना गंभीर शिकायत होने पर भी अभी तक इसकी जांच पूरी नहीं हुई है।
निष्पक्ष जांच एजेंसी जरूरी
जिस तरह की गंभीर शिकायत है उसे देखते हुए इसके लिए निष्पक्ष जांच समिति गठित की जानी चाहिए थी, जिसमें उस चिकित्सायल के चिकित्सक नहीं होते। इस मामले में पुलिस व प्रशासन के सदस्य भी होते तो जांच और त्वरित व निष्पक्ष होती।
जानकारी के अनुसार यह घटना ६ मार्च की बताई जा रही है, जब एक अविवाहित दलित युवती ने आबूरोड चिकित्सालय में बच्चे को जन्म दिया था। पत्र में यह आरोप है कि इसी बच्चे को बेच दिया गया। इस बच्चे को बाद में किसी निजी चिकित्सालय में उपचार के लिए भी भर्ती करवाया था।
उठ रहे हैं कई सवाल
-शिकायत गंभीर थी, जांच समिति ने इसे लेकर गंभीरता क्यों नहीं दिखाई। निष्कर्ष जो भी आता कम से कम इस मामले का पटाक्षेप होता।
– यदि बच्चा बिका है तो यह मामला मानव तस्करी का भी बनता है, फिर चिकित्सा विभाग ने इसके लिए पुुलिस अधीक्षक या स्थानीय थानाधिकारी से चर्चा क्यों नहीं की। दो एजेंसियां काम करती तो जांच जल्दी होती।
– निर्धारित तिथि के अंदर चिकित्सालय में जो-जो बच्चे पैदा हुए उनका रेकर्ड चिकित्सालय के पास ही होगा। इस दौरान जितने बच्चे पैदा हुए जीवित थे या मृत थे, उनकी जच्चा कौन थी, उनकी डिलीवरी किसने करवाई थी जैसे बडे साधारण से सवाल हैं जिनकी जांच उतने दिन में हो जानी चाहिए जितने में वायरल बुखार दुरुस्त होता है। लेकिन, जांच समिति इसकी जांच में एक बच्चे के जन्म के जितना समय लगाने के पीछे क्या मकसद है।
– सूत्रों के मुताबिक जिस बच्चे को जन्म होते ही बेचने की बात कही जा रही है, उसे आबूरोड में ही बेचने का आरोप लगा है। उसके बीमार होने के बाद भी आबूरोड के ही किसी निजी चिकित्सालय में उपचार करवाया गया था। ऐसे में जांच समिति को कहीं बाहर भी नहीं जाना था फिर भी इतना समय लगना आश्चर्यजनक है।
– यदि यह शिकायत सच है। जन्मदाता मां सामाजिक मजबूरी के कारण इसे अपने पास नहीं रख सकती थी तो बच्चा अनाथ होता। बच्चा पैदा हुआ था और उसे किसी दूसरे व्यक्ति को दिया गया था तो चिकित्सक ने इस बच्चे को नियमों तहत क्यों किसी दूसरे व्यक्ति के सुपुर्द नहीं किया।
अधिकारियों का कहना है…
आबरोड चिकित्सालय में बच्चा पैदा होने और उसे बेच देने की एक अज्ञात शिकायत 29 अगस्त को मिली थी। इसके आधार तीन चिकित्सकों की समिति गठित कर दी है। जांच में जो भी दोषी पाया जाएगा उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
सुशीलकुमार परमार
सीएमएचओ, सिरोही।
किसी बच्चे के चिकित्सालय से बेचने की कोई सूचना चिकित्सालय विभाग से नहीं आई है। कोई सूचना आती तो उसे दर्ज करते।
सीताराम खोजा
थानाधिकारी, आबूरोड सिटी।
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी ने इस तरह के किसी मामले में हमसे चर्चा नहीं की। यदि जैसा बता रहे हैं वैसा कुछ हुआ है तो निस्संदेह यह मानव तस्करी से संबंधित मामला है। इसकी शिकायत आती तो एफआईआर दर्ज करके जांच करते। वैसे स्थानीय थाने में भी पता कर लीजिए शायद वहां ऐसा कोई मामला दर्ज हुआ हो।
डॉ. राजीव पचार
पुलिस अधीक्षक, सिरोही।
जांच अपने अंतिम चरण में हैं। हमें ६-७ लोगों के बयान इस मामले में लेने हैं। कई दूसरे कामों के बाद जब बयानकर्ता को बुलाते भी हैं तो वह नहीं आ पाता। ऐसे में कुछे देरी हो गई, लेकिन संभवत: १५ अक्टूबर तक अपनी जांच पूरी कर लेंगे।
डॉ. गौतम मोरारका
बीसीएमओ, सिरोही।