पटना। हमें भारतीय न्यायपालिका पर पूर्ण विश्वास है। वर्ष 1978 से हमें सदा भारतीय अदालतों से सत्य के बल पर सशक्त व समुचित सहयोग प्राप्त होता रहा है। हमारा भरोसा है कि न्याय किन्हीं वास्तविक व अन्य कारणों से भले देर से मिले पर अन्ततः सही न्याय होता अवश्य है। उपरोक्त बाते सहारा प्रमुख सुब्रत रॉय ने बिहार दौरे के मौके पर राजधानी पटना के श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल में कही।
सहारा प्रणुक ने कहा कि सहारा सेबी मामले में पिछले 43 माह में सेबी ने निवेशकों को मात्र 50 करोड़ ही लौटाए हैं। देश भर के 144 समाचार पत्रों में चार बार विज्ञापन देने के बावजूद सेबी को कुल धन वापसी (रीपेमेंट) की मांग मात्र 50 करोड़ के लगभग ही मिली है। जबकि सेबी ने अपने आखिरी ऐसे विज्ञापन में यह स्पष्ट कर चुकी है कि धन वापसी की मांग के लिए निवेशकों को यह अन्तिम अवसर दिया गया है।
सुब्रत रॉय ने कहा कि सेबी द्वारा किसी भी स्थिति में कुल धन वापसी 100 करोड़ से अधिक नहीं होगी। जबकि सहारा अब तक सेबी को पहले से ही 14,000 करोड़ (फिक्स डिपाजिट पर प्राप्त ब्याज सहित) दे चुका है और साथ ही सहारा की 20,000 करोड़ मूल्य की अचल सम्पत्तियों के मूल दस्तावेज भी सेबी के पास ही हैं।
दूसरी ओर सेबी द्वारा सहारा के निवेशकों के न होने के दावे के दबाव में सहारा का कहना है कि एक भी खाता गलत या फर्जी या जाली नहीं है। सहारा के दावे की सशक्तता इसी से स्पष्ट हो जाती है कि सेबी निवेशक सत्यापन प्रक्रिया को टालता ही चला जा रहा है।
क्योंकि सेबी जानता है कि यदि सत्यापन सही ढंग से किए जाएंगे तो सहारा का दावा निश्चित रूप से सच्चा साबित होगा। जो सेबी के लिए यकीनन बेहद शर्मनाक स्थिति होगी। क्योंकि तब मुकदमे का फैसला सहारा के हक में होगा और सहारा का सारा धन उसके पास वापस आ जाएगा।
उन्होंने कहा कि यहां यह भी जानना जरूरी है कि सहाराश्री सुब्रत रॉय सहारा न तो इन दोनों कम्पनियों, जिनके विरूद्ध माननीय उच्चतम न्यायालय ने 31.08.2012 में आदेश पारित किया था, में से किसी के भी निदेशक थे और न ही उन्होंने इनमें कोई कार्यकारी भूमिका ही निभाई थी। वे इनमें मात्र एक शेयरहोल्डर थे और हैं। उन्हें प्रमोटर शेयरहोल्डर के तौर पर हिरासत में लिया गया था।
कम्पनीज़ एक्ट के अनुसार कोई भी शेयरहोल्डर कभी भी कम्पनी की गलती के प्रति गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। इस मामले के बाद अब कोई भी मजिस्ट्रेट किसी भी प्रमोटर शेयरहोल्डर को गिरफ्तार कर सकता है क्योंकि हर एक प्रमोटर तो कम्पनी का शेयरहोल्डर होता ही है।
रॉय ने कहा कि विगत 30 माह से पूरा सहारा समूह एक प्रतिबंध के तले दबा है। जिसका सीधा मतलब यह है कि अगर सहारा कोई भी सम्पत्ति उधार रखकर या बेच कर रकम जुटाते हैं तो वह पूरा धन सेबी-सहारा के खाते में ही जाएगा। अतः सहारा अपने समूह के लिए एक रूपया भी नहीं जुटा सकते हैं। जो यकीनन काफी कठिन परिस्थिति है। यही कारण है कि आज सहारा को अपने कार्यकर्ताओं को तनख्वाहें एवं अन्य नियामक दायित्वों को पूरा करने कठिनाई हो रही है।
सहारा का पक्ष है कि दरअसल, उनसे अपेक्षा की जा रही है कि वह चलें, जबकि उनके हाथ-पांव बंधे हुए हैं और उसके बाद उन पर सवाल उठ रहे हैं कि वह चल क्यों नहीं रहे हैं। सहारा ने वर्ष 2006 में भी लगभग 1.98 करोड़ ओएफसीडी (आप्शनली फुली कनवर्टिबल डिबेंचर) निवेशकों के प्रति रिटर्न कम्पनी रजिस्ट्रार, कोलकाता, से विधिवत अनुमति और स्वीकृति लेकर उनके पास फाइल कराया था। निवेशकों की यहां भी संख्या 50 से अधिक थी।
सुब्रत रॉय ने कहा कि इन तथ्यों के बावजूद सेबी ने वर्ष 2010 से ही सहारा को दंडित करना शुरू कर दिया था, वो भी पूर्वगामी (रिट्रोस्पेक्टिव) प्रभाव से। जिसका कारण सेबी ने निवेशकों की बड़ी संख्या यानी 50 से अधिक निवेशक माना और कहा कि इसलिए इसे निजी प्लेसमेंट नहीं करार दिया जा सकता है। हालांकि कानून में ऐसी कोई सीमा कहीं भी नहीं दी गई है।
वैसे भी सहारा ने वर्ष 2006 में अपने एक पूर्व ओएफसीडी इश्यू के 1.98 करोड़ निवेशकों का रिटर्न कम्पनी रजिस्ट्रार, कोलकाता, के पास फाइल कराया था। कभी भी किसी अधिकारी या किसी विभाग ने कोई आपत्ति नहीं उठाई। यहां यह भी प्रश्न उठता है कि जब वर्ष 2008 में दो अन्य कम्पनी रजिस्ट्रारों ने सहारा की दो अन्य कम्पनियों को ओएफसीडी जारी करने की अनुमति दी। तब फिर आखिर सेबी इन दो कम्पनी रजिस्ट्रारों के खिलाफ कोई कार्यवाही क्यों नहीं कर रहा है?