जिन तथ्यों से आपको रूबरू कराया जा रहा है, वे बारूद के ढेर पर खड़ी मानवीय सृष्टि के संरक्षण के लिए बहुत जरूरी हैं। ये मेरे मौलिक विचार नहीं हैं। इन्हें मेरे द्वारा संकलित किया गया है किन्तु वे सभी महान धर्मों में समान रूप से समाहित हैं।
इनका सम्बंध ईश्वर और वर्तमान में अस्तित्व में आए धर्म से है। इन तथ्यों का विश्लेषण और अन्वेषण करके मानवीय सृष्टि को संरक्षित रखने की यथासंभव पुरज़ोर कोशिश की जाए।
•ईश्वर अनन्त है;अनन्त सृष्टियां उसी की अभिव्यक्ति हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो हम सभी ईश्वर से बने हुए हैं। वही हमारे अस्तित्व को बनाने वाला तत्व है। वह समस्त अभिव्यक्तियों में अनुभव होता है। समस्त चीज़ें मात्र उसके विचार नहीं, बल्कि उसी का अंश है।
•वह हम सबके भीतर और बाहर मौजूद है। उसे प्रेम के रूप में महसूस किया जा सकता है।
•ईश्वर हमसे सम्मान की अपेक्षा नहीं करता। उसे इसकी ज़रूरत नहीं होती।
•यह जानते हुए भी कि वह हमारे सोचने-समझने की हद से बहुत आगे है, फिर भी हम लगातार उसे किसी न किसी सांचे में फ़िट करने की कोशिश करते रहते हैं।
•उसकी न कोई जाति है और न कोई धर्म।
•वह सभी कुछ है। वह एक प्रेमिल ऊर्जा है, जो स्वयं में अनन्त ज्ञान,शक्ति और विलक्षण गुणों को समाये हुए है।
•वह अदृश्य, अज्ञात है, किन्तु फिर भी “सब कुछ” वही है।
• हम सबने ईश्वर और धर्म को मनमाने ढंग से इस्तेमाल किया है।
• ईश्वर जोकि प्रेम,करुणा और शांति का प्रतीक है-के नाम पर अनगिनत युद्धों, हत्याओं तथा नरसंहारों के प्रपंच रचे गए हैं।
यहां तक कि आज भी, ईश्वर के नाम पर लड़े जाने वाले ‘पवित्र’ माने जाने वाले युद्ध हमारे इस ग्रह को संक्रमित करने में लगे हुए हैं! कोई भी युद्ध भला पवित्र कैसे हो सकता है?
•सभी महान धर्मों यथा इस्लाम, ईसाई, हिन्दू, यहूदी, फ़ारसी, बौद्ध, में प्रेम, भाईचारे, करुणा और शान्ति का अदभुत समावेश है, फिर हम क्यों धर्म के नाम पर
एक दूसरे का गला काट रहे हैं?
•ईश्वर शान्ति है, प्रेम है और करूणा है। हम सभी उसी प्रेम, करुणा, शान्ति और दिव्यता की संतान अथवा अंश हैं। हम भूल गए हैं कि हम परमात्मा के द्वारा देखे गए दिव्य स्वप्न में अभिव्यक्त हुए हैं। एक ही ईश्वर की संतान होने के नाते हमारा एक ही धर्म है;वह है परस्पर प्रेम करना। सभी धर्मों के मानने वालों को अपने समान मानें। उन्हें ईश्वर की प्राप्ति के राह पर चलने वाले हमसफ़र मानें।
•हमें पूरी सावधानी से वास्तविक आध्यात्मिक सच्चाई और राजनीति से प्रेरित भावनाओं की पहचान करनी चाहिए, क्योंकि सियासी दुर्भावनाओं से प्रेरित धर्मांन्धता मनुष्यों के भीतर विभाजन का काम करती हैं। सियासी शक्तियां हमें डराकर और बांटकर अपना स्वार्थ साधते हैं।
•ऐसे नरसंहारों, सियासी सत्तालोलुपता से हुए दुष्परिणामों को देखकर सैकड़ों बार आंखें बरसी हैं और व्यथित हुआ है मेरा मन। मेरे नीचे लिखे गीत की कुछ पंक्तियों पर आप सबका ध्यान आकर्षित करने की अनुमति चाह रहा हूं।
एक बार ज़रा पढ़िये इन्हें-
क्यों पसंद आया है आदमी को अपने लहू का रंग,कि जहां में हर जगह उसी की बरसात चलती है।1।
घिर आया है अंधेरा उजाले की बेवफ़ाई से,इसलिए हरपल अंधेरें से मुलाक़ात चलती है।2।
धरती है एक और आसमां भी एक, फिर टुकड़े हुए हैं कैसे? परवरदिगार है एक, यहां एक आदम की जात चलती है।३।
इस गीत के भावों का सम्बंध मेरे अन्त:करण में उठने वाले मनुष्यता को प्रेम, करुणा और शांति से सिंचित कर मनुष्यमात्र में आपसी भाईचारा स्थापित करने से है। इस हेतु आप सभी का सक्रिय योगदान आवश्यक है।
हरि प्रसाद मिश्र
9414327692