भारतीय राजनीति के केन्द्रीय फलक पर अयोध्या मसले को लेकर फिर से कोशिश होने लगी है। इस बार यह कोशिश समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता मुलायम सिंह यादव की तरफ से हो रही है।
ध्यान देने योग्य है कि 2 नवम्बर 1990 को तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के आदेश पर निहत्थे कारसेवकों पर गोली चलाई गई थी जिसमें लगभग 16 कारसेवकों की जान चली गई थी और इसी घटना पर पिछले दिनों सपा नेता मुलायम सिंह ने एक कार्यक्रम के दौरान 1990 में निहत्थे कारसेवकों पर गोली चलाने के दिए गए आदेश पर सार्वजनिक रूप से दु:ख व्यक्त किया था।
दरअसल मामला मात्र दु:ख व्यक्त करने भर का नहीं है। बल्कि राजनीतिक क्षेत्र में मुलायम सिंह के इस बयान के निहितार्थ मायनों पर चर्चा होना स्वाभाविक है और मुलायम सिंह यादव भी यही चाहते होंगे। मुलायम सिंह द्वारा अयोध्या गोली कांड पर दु:ख करने का अर्थ यह कदापि नहीं है कि मुलायम सिंह का हृदय परिवर्तन हुआ है और वे लगभग 25 साल बाद पश्चाताप कर रहे हैं।
मुलायम सिंह यादव द्वारा यह कहना कि गोली चलाने का आदेश देने के सिवा कोई विकल्प नहीं था, यह सरासर गलत है। उन दिनों गोली कांड का प्रत्यक्षदर्शी रहे पत्रकार रामकुमार भ्रमर ने अपनी पुस्तक अयोध्या का पथिक में यह स्पष्ट उल्लेख किया है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव द्वारा विश्व हिन्दू परिषद द्वारा घोषित 30 अक्टूबर 1990 की कारसेवा को रोकने के लिए चारों तरफ घेराबन्दी की गई थी।
जिससे उत्साहित होकर उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा था कि अयोध्या में परिन्दा भी पर नहीं मार सकता। लेकिन विहिप द्वारा घोषित कारसेवा तय समय और तिथि पर सफलतापूर्वक हुई थी जिसके कारण मुलायम सिंह यादव की हर तरफ आलोचना हो रही थी जिससे वे बहुत क्षुब्ध हुए थे और उन्होंने ही गोली चलाने का आदेश दिया था।
ध्यान देने योग्य है कि यह गोली कांड लाल कोठी के पास संकरी गली में हुआ था। माणिकराम छावनी से दो विभिन्न गुटों में कारसेवक रामजन्मभूमि जाने के लिए निकले थे। एक गुट साध्वी उमा भारती के नेतृत्व में संकीर्तन करता हुआ लखनऊ-गोरखपुर राष्ट्रीय राजमार्ग से होते हुए बढ़ रहा था और दूसरा गुट राजस्थान के प्रो. महेन्द्रनाथ अरोडा के नेतृत्व में बढ़ रहा था।
इसी गुट के लालकोठी पर पहुंचते ही प्रशासन द्वारा गोली चला दी गई। विहिप के अंतर्राष्ट्रीय महामंत्री चंपत राय के अनुसार कारसेवकों के कनपटी पर बन्दूक रखकर गोली मारी गई थी। यद्यपि भीड को तितर-बितर करने के लिए प्रशासन की तरफ से आंसू गैस के गोले छोड़े जाते हैं, पानी की बौछार की जाती है, लाठी चार्ज किया जाता है परंतु यहाँ तो पकड़कर कनपटी पर बन्दूक रखकर गोली मारी गई थी।
बहरहाल, मुलायम सिंह यादव भारतीय राजनीति के वरिष्ठ नेता हैं और अपने दु:ख प्रकटीकरण के अर्थ को भली-भाँति जानते हैं। लोकसभा चुनाव 2014 के दौरान मोदी लहर में मात्र अपने परिवार की सीटों को ही बचा सकने वाले मुलायम सिंह की पार्टी की यह दुर्गति पहले कभी नहीं हुई थी। यादव मुस्लिम (माय) वोट को पुन: अपने गढ़ में वापस लाने के लिए मुलायम सिंह ने पहला प्रयोग बिहार विधानसभा चुनाव में किया।
उन्होंने अपने परिवार का संबंध लालू प्रसाद यादव की बेटी से विवाह कर स्थापित कर तीसरा मोर्चा बनाकर केन्द्र में मोदी सरकार को घेरने की तैयारी के उद्देश्य से किया। लेकिन जब उन्हें अपेक्षित समर्थन नहीं मिला और उत्तरप्रदेश विधानसभा के आगामी विधानसभा चुनाव में होने वाले नुकसान से आशंकित होकर बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले खुद को तीसरे मोर्चे के गठबन्धन से अलग कर लिया। लेकिन भारतीय जनता पार्टी बिहार में विधानसभा चुनाव हार गई और तब तक मुलायम सिंह के लिए बहुत देर हो चुकी थी।
बिहार विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की हार से मुलायम सिंह यादव को उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव जीतने की आस जरूर जगी है। लेकिन वे इस आस को पक्का कर लेना चाहते हैं इसके लिए बिहार विधानसभा चुनाव की तर्ज पर ही उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में सपा और बसपा मिलकर भाजपा को टक्कर देने के लिए महागठबन्धन बनाकर चुनावी मैदान में उतरेंगे इसकी संभावना थोड़ी कम दिखाई देती है।
लेकिन राजनीति संभावनाओं का खेल है अत: अभी मात्र कयास ही लगाया जा सकता है लेकिन पुख्ता तौर पर कुछ कहना जल्दबाजी ही होगी। इस समय पर मुलायम सिंह यादव द्वारा अयोध्या गोली कांड पर दु:ख प्रकट करने का एक संकेत यह भी हो सकता है कि वे यह चाहते हों कि उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर लड़ा जाए क्योंकि पूर्व में एक बार वे ऐसा कर चुके हैं।
बहरहाल इतना तो तय है कि यदि मुलायम सिंह यादव की पार्टी के द्वारा इस समय लोकसभा में इस विषय को उठाया जाय तो उन्हें भाजपा का समर्थन स्वाभाविक रूप से मिलेगा और उनकी छवि तो सुधरेगी ही साथ में जनता 1990 के गोली- कांड को भुलाकर उन्हें ऐतिहासिक पुरुष बनाकर उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में उनकी जीत सुनिश्चित कर देगी।
हालांकि यह काम कांग्रेस भी कर सकती है और उसने पूर्व में अयोध्या मन्दिर का ताला खुलवाने का आदेश देने का निर्णय किया था। परंतु यदि ऐसा कांग्रेस करती है तो उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने के साथ-साथ जनता की नजरों में मुस्लिम हितैषी की छवि को सुधारकर भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगा देगी।
यदि अयोध्या मुद्दे को लोकसभा में भाजपा के अलावा यदि किसी अन्य राजनीतिक दल ने उठा दिया तो तय मानिए कि भाजपा बैकफुट पर आ जाएगी क्योंकि इस समय जनता में भाजपा को लेकर यह आशंका भी बनी हुई है कि एनडीए एक के कार्यकाल के दौरान जैसे इस बार भी अयोध्या मुद्दे को मोदी सरकार विकास के नाम पर ठंडे बस्ते में न डाल दे।
ऐसा संकेत संघ की तरफ से भी है कि उसके अनुषांगिक संगठनों द्वारा दो साल तक मोदी सरकार को विकास के कार्य करने दिया जाएगा। साथ ही उनके द्वारा कोई भी ऐसा विवादित विषय नहीं उठाया जाएगा जिससे कि मोदी सरकार बैकफुट पर आ जाए। हालांकि संघ की तरफ से यह समय सीमा मई 2016 में समाप्त हो जाएगी और अगले वर्ष उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव हैं।
इसके बीच में मोदी सरकार को अयोध्या मुद्दे को लोकसभा में उठाने के लिए मानसून सत्र और शीतकालीन सत्र मिलेगा। यदि मोदी सरकार अयोध्या मुद्दे पर लोकसभा में विधेयक लाकर पास कर राज्यसभा में भेज दे और संख्याबल के आधार पर भले ही राज्यसभा न पास करे पर यकीन मानिए विश्व हिन्दू परिषद के स्वर्गीय अशोक सिंघल को इससे बड़ी श्रद्धांजलि और कुछ हो नहीं सकती।
राजीव गुप्ता