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गुलजार ने जयपुर लिटरेचर फेस्टीवल में समां बांधा - Sabguru News
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गुलजार ने जयपुर लिटरेचर फेस्टीवल में समां बांधा

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गुलजार ने जयपुर लिटरेचर फेस्टीवल में समां बांधा
when gulzar cleared his throat and Jaipur Literature Festival went ecstatic
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जयपुर। जाने माने गीतकार गुलजार ने जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में रविवार को अपनी नज्मों के जरिए कुदरत के इसी जादू को कुछ ऐसा चलाया कि फेस्टिवल में आए लोगों पर पूरे दिन उसका असर बना रहा।

इस बार के जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में रविवार को गुलजार और पूर्व राजनयिक और लेखक और अब राजनेता हो चुके पवन के.वर्मा का सत्र नज्म उलझी है सीने में सबसे ज्यादा भीड खींचने वाला सत्र रहा। गुलजार की ज्यादातर किताबों का अनुवाद पवन वर्मा ने ही किया है। डिग्गी पैलेस के फ्रंटलॉन में आयेाजित इस सत्र में सुनने वाले इतने थे कि पैर रखने की जगह नहीं बची और गुलजार ने भी अपने चाहने वालों को कतई निराश नहीं किया।

प्रकृति से इंसान के रिश्ते को सामने वाली नौ नज्में और छोटी कविताएं गुलजार ने सुनाई और सब की सब ऐसी थी कि जो जहां खडा था, वहीं खडा रह गया। गुलजार ने कहा कि यह प्रकृति से जुडी नज्में हैं और कुदरत को आप जीवंत मानेंगे तो इससे आपका रिष्ता अपने आप जुड जाएगा।

इस जमीन में कोई जादू है
फल खाओ तो मीठे लगते है, पत्ते खाओ तो फीके।
मौसम्बी खाओ तो मीठी लगती है नीम्बू खट्टे
न जाने क्यों गन्ना मीठा लगता है लेकिन बांस में कोई स्वाद नहीं होता
जरूर इस जमीन में कोई जादू है।
हमारे आस.पास की जमीन,पहाड,पेड,नदी, कुआं इन सबसे हमारा एक नाता है।
लेखक को नहीं लेखन को देखिए :लेखक उदय प्रकाश

देश में असहिष्णुता के मुद्दे पर साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने वाले लेखक उदय प्रकाश ने काव्य और निजता विषय पर रविवार को जयपुर लिटरेचर फेस्टीवल में आयोजित सत्र में कुलबर्गी की हत्या जैसे मामलों पर कहा कि हमें लेखक को नहीं लेखन को देखना चाहिए और लेखन की चर्चा होनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि लेखन तो नदी की तरह है। जैसे नदी का पानी कोई पीता है, कोई वजू करता है, कोई स्नान करता है, उसी तरह लेखन को भी लोगों को अपने-अपने तरीके से देखना चाहिए। उन्होने कहा कि लेखक अपने लेखन के जरिए किसी निजता का उल्लंघन कभी नही करता है।

हम हिन्दी उर्दू नहीं हिन्दुस्तानी बोलते हैं

जयपुर लिटरेचर फेस्टीवल में रविवार को एक और सत्र में जम कर भीड उमडी और यह सत्र जावेद अख्तर का था। इस सत्र में जावेद ने मजाज, जांनिसार अख्तर और मुत्तल की शायरी के जरिए हिन्दी और उर्दू जुबान पर बात की और कहा कि हमें कोई भी पूरी तरह हिन्दी या उर्दू नहीं बोलते और न बोलनी चाहिए। हमारी जुबान हिन्दुस्तानी है।

उन्होंने कहा कि उर्दू के साथ तो समस्या यह है कि जब तक लोगों यह समझ आाती रहती है वे इसे हिन्दी समझते हैं और जब समझ आनी बंद हो जाती है तो कहते हैं कि उर्दू है। उन्होंने अदब को समाज से जोडने की बात से भी इनकार किया और कहा कि लेखक पर यह दबाव नहीं होना चाहिए कि वह समाज के लिए लिखे। लेखक के जो मन आएगा, वह लिखेगा।