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ऐसे तो हर कोई स्वर्ग जाना चाहता हैं पर अच्छे कर्म के बिना वह जाना मुमकिन ही नहीं बल्कि नामुकिन हैं। आज उन लोगों के लिए कुछ खास लाए हैं जो घूमने निकलते हैं और सोचते हैं की काश कोई स्वर्ग का रास्ता हो तो वह भी उसका दीदार कर लें।
क्या आपने भारत का आखिरी गांव देख लिया है, जिसको लेकर तमाम रोचक किस्से भी मशहूर हैं जैसे कि कहते हैं कि इस गांव से होते हुए पांडव स्वर्ग गए थे। तो देर किस बात की आप भी यहां घूमने जाए…
जब पांडव स्वर्ग जा रहे थे तो उन्होंने इस स्थान पर सरस्वती नदी से जाने के लिए रास्ता मांगा था। जैसे कि कहते हैं कि इस गांव से होते हुए पांडव स्वर्ग गए थे, यह गांव चीन की सीमा पर उत्तराखंड के बद्रीनाथ से चार किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यानि यहां तक पहुंचना उतना मुश्किल भरा भी नहीं है। तो चलिए आपका माणा गांव से परिचय कराते हैं।
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इस गांव का पौराणिक नाम मणिभद्र है, यहां आप अलकनंदा और सरस्वती नदियों का संगम भी देख सकते हैं।इसके अलावा यहां गणेश गुफा, व्यास गुफा और भीमपुल भी देखने लायक हैं। यहीं से होकर पांडव स्वर्ग गए थे।
सरस्वती नदी पर भीम पुल है, जिसके बारे में कहा जाता है कि जब पांडव स्वर्ग जा रहे थे तो उन्होंने इस स्थान पर सरस्वती नदी से जाने के लिए रास्ता मांगा था। हालांकि सरस्वती नदी ने रास्ता देने से मना कर दिया तो फिर भीम ने दो बड़ी शिलायें उठाकर इसके ऊपर रख दीं, जिससे भीम पूल का निर्माण हुआ और इस पुल से होते हुए पांडव स्वर्ग चले गए। अब भी यह पूल मौजूद है। यहां के सुंदर पहाड़ पढ़ाते हैं स्वच्छता के पाठ, नियम-कायदे जान रह जाएंगे हैरान
एक अन्य प्रचलित कहानी के मुताबिक, जब गणेश जी वेदों को लिख रहे थे तो सरस्वती नदी अपने पूरे वेग से बह रही थी और बहुत शोर कर रही थी। गणेश जी ने सरस्वती जी से कहा कि शोर कम करें, मुझे कार्य में व्यवधान हो रहा है, लेकिन सरस्वती जी नहीं रुकीं। इससे रुष्ट होकर गणेश जी ने इन्हें श्राप दिया कि आज के बाद इससे आगे तुम किसी को नहीं दिखोगी।
व्यास गुफा के बारे में बताया जाता है कि महर्षि वेदव्यास ने यहां वेद, पुराण और महाभारत की रचना की थी और भगवान गणेश उनके लेखक बने थे। ऐसी मान्यता है कि व्यास जी इसी गुफा में रहते थे। वर्तमान में इस गुफा में व्यास जी का मंदिर बना हुआ है। व्यास गुफा में व्यास जी के साथ उनके पुत्र शुकदेव जी और वल्लभाचार्य की प्रतिमा है। इनके साथ ही भगवान विष्णु की भी एक प्राचीन प्रतिमा है। देश के इस किले तक पहुंचने के लिए गुजरना पड़ता है दुनिया के सबसे खतरनाक ट्रैक से
भारत की आखरी चाय की दुकान भी यहां के आकर्षण का केंद्र है। मई से अक्टूबर महीने के बीच यहां बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। यह समय माणा गांव आने का सबसे बेहतर समय माना जाता है। छह माह तक इस गांव में खासी चहल-पहल रहती है। बदरीनाथ धाम के कपाट बंद हो जाने पर यहां पर आवाजाही बंद हो जाती है।
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