नरेन्द्र मोदी सहित भाजपा का मौजूदा शीर्ष नेतृत्व एक बार पुन: भाजपा के वरिष्ठ नेता पूर्व केन्द्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा के निशाने पर है। गोवा में ‘डिफिकल्ट डायलॉग’ सम्मेलन की परिचर्चा में सिन्हा ने नरेन्द्र मोदी का नाम लिए बिना कहा था, ‘भारत के लोग उन्हें धूल चटा देंगे, आपको सिर्फ अगले चुनावों का इंतजार करना होगा।’
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री रह चुके सिन्हा ने जवाब दिया था कि संसद और विधानसभाओं के सदस्यों सहित निर्वाचित जन प्रतिनिधियों को लगातार जनता के पास वापस जाना होगा, जिन्होंने उन्हें चुना है।
सिन्हा ने इसके बाद 1975 के आपातकाल का हवाला दिया और कहा था कि देश जानता है कि असहमति की आवाज को दबाने के लिए किए गए सबसे मजबूत प्रयास का क्या हुआ था। सिन्हा ने कहा कि हम सभी जानते हैं कि भारत की जनता ने कैसे प्रतिक्रिया व्यक्त की थी।
यहां-वहां गलतियां हो सकती हैं, हम मौजूदा हालात को लेकर बहुत चिंतित हो सकते हैं क्योंकि हमारे मुताबिक ऐसी कुछ चीजें हो रही हैं। उन्होंने कहा था कि महान भारतीय समाज इसे ध्यान में रखेगा और भारत में संवाद में यकीन नहीं रखने वालों को धूल चटा देगा। आपको बस अगले चुनावों का इंतजार करना होगा।
सिन्हा ने भले ही अब यह कहना शुरू कर दिया है कि उनकी बातों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है सिन्हा का यह बयान विवाद को टालने की कोशिश ही अधिक प्रतीत होता है। सिन्हा इससे पहले भी नरेन्द्र मोदी सहित भाजपा के मौजूदा शीर्ष नेतृत्व को निशाना बनाते रहे हैं। इससे पहले एक बार वह ऐसा बयान भी दे चुके हैं कि भाजपा में उम्रदराज नेताओं को ब्रेनडेड घोषित कर दिया जाता है।
अपनी ही पार्टी के नेतृत्व को अपने बयानों के माध्यम से कई बार असहज कर देने वाले यशवंत सिन्हा की नाराजगी और आए दिन उनके द्वारा ऐसे बयान दिए जाने के पीछे चाहे जो भी कारण हों लेकिन एक बात तो तय है कि भाजपा के बुजुर्ग नेता अपनी उपेक्षा से अवसादग्रस्त अवश्य हैं। अब यह पार्टी के मौजूदा नेतृत्व के विवेक पर निर्भर करता है कि वह अपने बुजुर्ग नेताओं के मान-सम्मान का कितना ध्यान रख पाता है।
हालांकि भाजपा के मौजूदा नेतृत्व से उच्च कोटि के राजनीतिक संस्कारों की उम्मीद न के बराबर ही है क्यों कि पार्टी के जो नेता चुनाव जीतने के लिए साम, दाम, दंड, भेद किसी भी तरह की युक्ति आजमाने के साथ ही राजनीतिक शिष्टाचार को ताक पर रखने से भी गुरेज न करते हों तथा स्वार्थपूर्ति के लिये किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार रहते हों। उनसे लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, यशवंत सिन्हा तथा शांता कुमार जैसे वरिष्ठ नेताओं के प्रति सदाशयता व संवेदनशीलता दिखाये जाने की उम्मीद कम ही है।
ऐसा लगता है कि भाजपा के मौजूदा नेतृत्व के लिए 2014 में केन्द्र की सत्ता में पूर्ण बहुमत के साथ काबिज होना भी अहंकार का एक बड़ा कारण बन गया है तथा भाजपा नेताओं को यह लगने लगा है कि उन्हें अब अपने वरिष्ठ नेताओं की आवश्यकता नहीं है। जिन्हे अपने मान-सम्मान व पद प्रतिष्ठा की चिंता है वह हमेशा अतिवादी ढंग से हमारी जय-जयकार करें या फिर नेपथ्य में चले जाएं।
हालाकि पहले दिल्ली और बाद में बिहार विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद भाजपा के स्वनामधन्य नेताओं की गलतफहमी तो टूटी है, लेकिन अभी भी पूरी व्यवस्था वह तानाशाहीपूर्ण ढंग से ही संचालित करना चाहते हैं। ऐसा नहीं है कि भाजपा में सिर्फ वरष्ठि नेता यशवंत सिन्हा ही अपनी पार्टी की सरकार व पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से निशाना साध रहे हैं।
वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी व मुरली मनोहर जोशी भी आए दिन अपनी नाराजगी व्यक्त करते रहते हैं। हां यह अवश्य है कि उनकी नाराजगी या आपत्ति को कभी भी गंभीरतापूर्वक नहीं लिया जाता। भाजपा के इन बयोवृद्ध नेताओं को तकलीफ इस बात की है कि न तो पार्टी के सत्ता संचालन में उनकी कोई भूमिका है और न ही पार्टी के संगठनात्मक मामलों में उनकी कोई पूछपरख हो रही है।
पार्टी में उन्हें सम्मान तो मिल नहीं रहा है उलटे कई बार अपमान का घूंट अवश्य पिलाया जाता है। हमेशा ही शुचिता और उच्च कोटि के राजनीतिक संस्कारों का दावा करने वाले भााजपा नेताओं ने जब अपनी ही पार्टी के बयोवृद्ध नेताओं को इस तरह हासिये पर डाल रखा है तथा उनके द्वारा नाराजगी जताए जाने के बावजूद परिस्थिति में कोई बदलाव नहीं आ रहा है तो फिर राष्ट्रीय व सामाजिक सरोकरों के प्रति भाजपा की केन्द्र सरकार व पार्टी के मौजूदा नेतृत्व के नजरिये का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। भाजपा नेता यशवंत सिन्हा पार्टी में लंबे समय से उपेक्षा का शिकार हैं।
झारखंड विधानसभा चुनाव से पूर्व उन्हें राज्य की राजनीति में भी अहम जिम्मेदारी मिलने तथा संभवत: राज्य का मुख्यमंत्री बनने की उम्मीद भी रही होगी तभी तो झारखंड में विधानसभा चुनाव से पूर्व उन्होंने बिजली को लेकर आंदोलन शुरू किया था। इस सिलसिले में वह हजारीबाग में 15 दिनों तक जेल में भी रहे। तब जेल में उनसे मिलने गए भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था कि यशवंत सिन्हा झारखंड में नेतृत्व संभालने के लिए बेहद सक्षम नेता हैं। लेकिन जब झारखंड विधानसभा के चुनाव हुए तथा पार्टी सत्ता में आई तो रघुवर दास को राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया गया था।
सुधांशु द्विवेदी
(लेखक प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक हैं)