पाक माहिना रमजान अल्लाह की राह में समर्पित करना और
बुराई से दूर रहने की सिख देता है।
बंदे को हर बुराई से दूर रखकर अल्लाह के नजदीक लाने का मौका देने वाले पाक महीने रमजान की रूहानी चमक से दुनिया एक बार फिर रोशन हो चुकी है और फिजा में घुलती अजान और दुआओं में उठते लाखों हाथ खुदा से मुहब्बत के जज्बे को शिद्दत दे रहे हैं।
दौड़-भाग और खुदगर्जी भरी जिंदगी के बीच इंसान को अपने अंदर झांकने और खुद को अल्लाह की राह पर ले जाने की प्रेरणा से इंसान में नई उर्जा का संचार होता है।
तमाम शारीरिक इच्छाओं तथा झूठ बोलने, चुगली करने, खुदगर्जी, बुरी नजर डालने जैसी सभी बुराइयों पर लगाम लगाने की मुश्किल कवायद रोजेदार को अल्लाह के बेहद करीब पहुंचा देती है।
पाक महिना रमजान सिर्फ भूखे रहने के लिए नहीं है। रमजान का महिना संयम और समर्पण के साथ खुदा की इबादत का महीना माना जाता है। इस माह में आदमी व औरत अपनी ख्वाहिशो को काबू में रखते हैं।
अश्लील या गलत काम से बचकर रहते हैं। रोजेदार शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से अपने पाको नियंन्त्रित रखता है ताकि अल्लाह को खुश कर सके। साल के बारह महीनों में रमजान का महीना मुसलमानों के लिए खास मायने रखता है।
रमजान के महीने में की गई खुदा की इबादत बहुत असरदार होती है। इसमें खान-पानसहित अन्य दुनियादारी की आदतों पर संयम रखना होता है। अगर
सयंम नहीं रखा जाये तो रोजा टूट जाता है।
इस महीने में रोजेदार अपने शरीर को हर तरह से वश में रखता है साथ ही तराबी और नमाज पढ़ने से बार-बार अल्लाह का जिक्र होता रहता है जिससे रोजेदार की रूह पाक-साफ रहती है।
इसी पाक महीने में अपनी गलतियों के लिए तौबा करने एवं अच्छाइयों के बदले बरकत पाने का सुनहरा मौका मिलता है। इस महीने में जकात देने से रोजेदार को अपनी बुराईयों से दूर होने की ताकत मिलती है।
क्या होता है जकात
जकात का मतलब यह होता है की रोजेदार को अपनी कमाई का ढाई प्रतिशत गरीबों में बाँटना। जकात देने से इन्सान के माल एवं कारोबार में खुदा खुब
बरकत करवाता है। इस्लाम में रोजे, जकात और हज यह तीनों ही हर सक्षम
मुस्लमान पर फर्ज माना गया हैं। इसलिए हर बालिग मुसलमान को रोजा रखना अपना फर्ज कहा गया है। तीस रोजे के बाद अल्लाह ने रोजेदारो के लिए असीम ख़ुशी का दिन ईद के रूप में दिया है। रोजेदार अपने दोस्तों रिश्तेदारों के साथ ईद की खुशियाँ मनाते हैं।