कारों को लेकर भारतीय ग्राहकों का रूझान तेज़ी से बदल रहा है, एक वक्त में डीज़ल कारों को अहमियत देने वाले ग्राहक अब एक बार फिर पेट्रोल इंजन वाली कारों की ओर मुड़ने लगे हैं। ईटी ऑटो के अनुसार भारत में अप्रैल 2016 से लेकर सितम्बर 2016 के बीच जितनी भी कारें बिकीं, उनमें से डीज़ल कारों का हिस्सा केवल 27 फीसदी था। चार साल पहले यह आंकड़ा करीब 47 फीसदी हुआ करता था। मौजूदा स्थिती ये है कि पांच सबसे पॉपुलर कॉम्पैक्ट कारों की बिक्री में केवल एक कार ही डीज़ल इंजन वाली होती है, पेट्रोल कारों की बिक्री का सबसे बड़ा हिस्सा एंट्री लेवल हैचबैक सेगमेंट से आता है।
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डीज़ल कार की कीमत पेट्रोल कार के मुकाबले ज्यादा होती है, पहले डीज़ल की प्रति लीटर कीमत पेट्रोल के मुकाबले कम होने और ज्यादा माइलेज़ की वजह से फ्यूल का खर्च घट जाता था और डीज़ल इंजन के लिए दी गई अतिरिक्त कीमत इस से वसूल हो जाती थी। मौजूदा समय में डीज़ल से सब्सिडी हटा दी गई है और इसकी कीमत बाज़ार के मुताबिक तय होती है, इस कारण डीज़ल और पेट्रोल की कीमत में बड़ा अंतर नहीं रह गया है। उपभोक्ता भी कीमत को लेकर काफी सज़ग हो गए हैं, ऐसे ग्राहक जिन को कार प्रमुखतौर पर सिटी में ही इस्तेमाल करनी है वे अब डीज़ल के लिए ज्यादा पैसे देना वाजिब नहीं समझते।
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यूटिलिटी व्हीकल सेगमेंट में भी तेजी से ट्रेंड बदल रहा है, इस सेगमेंट में अधिकांश कारें डीज़ल इंजन वाली हैं। साल 2012-13 में इस सेगमेंट के बिक्री के आंकड़ों में पेट्रोल इंजन वाली कारों का हिस्सा केवल तीन फीसदी का था, जो अब 16 फीसदी पर पहुंच गया है।
नए नियमों को देखते हुए सभी कार कंपनियां और उपभोक्ता इन दिनों पेट्रोल कारों को प्राथमिकता दे रहे हैं। पिछले साल दिल्ली एनसीआर में 2000 सीसी से ज्यादा इंजन क्षमता वाली डीज़ल कारों पर बैन लग गया था, जिसके कारण कार कंपनियों की बिक्री प्रभावित हुई थी। इस स्थिति से निपटने के लिए महिन्द्रा ने 2000 सीसी से कम क्षमता वाले डीज़ल इंजन उतारे थे, जबकि मर्सिडीज़ समेत कई कार कंपनियों ने अपनी लोकप्रिय एसयूवी के पेट्रोल वर्जन लॉन्च किए थे। वहीं, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने दिल्ली-एनसीआर में 10 साल से पुरानी डीज़ल कारों के रजिस्ट्रेशन को रद्द करने के भी आदेश दिए थे। इन दो प्रमुख वजहों से ग्राहक डीज़ल कारों से दूर होने लगे हैं।
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ग्राहकों की बदलती प्राथमिकताओं को देखते हुए अब टोयोटा जैसी कंपनी ने भी फॉर्च्यूनर और इनोवा का पेट्रोल वर्जन उतारा हुआ है, जबकि यह पहले केवल डीज़ल इंजन में ही उपलब्ध थीं।
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केंद्र सरकार की योजना बीएस-5 के बजाए साल 2020 से सीधे बीएस 6 उत्सर्जन नियम लागू करने की है। अगर ऐसा होता है तो कंपनियों को अपनी कारों में महत्वपूर्ण बदलाव करने होंगे, ऐसे में पेट्रोल और डीज़ल की कारों की कीमतों का अंतर और बढ़ जाएगा। ऐसे में जाहिर सी बात है कि ग्राहक डीज़ल के बजाए पेट्रोल कारों को ही प्राथमिकता देंगे।
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