देश हमें देता है सब कुछ, हम भी तो कुछ देना सीखें, सूरज हमें रौशनी देता, हवा नया जीवन देती। भूख मिटने को हम सबकी, धरती पर होती खेती। औरों का भी हित हो जिसमें, हम ऐसा कुछ करना सीखें, यह बोल एक देशभक्ति से पूर्ण गीत के हैं, लेकिन हम बात कर रहे हैं यहां इस गीत केे माध्यम से शिवराज सिंह चौहान और उनकी संवेदनशीलता की।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री का दायित्व संभालते हुए शिवराज जी को हाल ही में कुछ दिन बाद 10 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं, यहाँ बीते वर्षों में जितना कार्य राज्य की जनता के हित में शिवराज सरकार ने किया है, कहना होगा कि इतना किसी सरकार के शासन में अभी तक संभव नहीं हो सका था।
वैसे भी भाजपा सरकार अपने कार्यों के लिए शुरू से पहचानी भी जाती है, यह अलग बात है कि चुनाव में जीतने के कई गणित चलते हैं, जिसके कारण भाजपा का शासन प्रदेश में कभी इतना लम्बा नहीं रहा, जितना कि इस बार लगातार रहा है।
भाजपा शासन में पहले कैलाश चंद्र जोशी से लेकर वीरेन्द्र कुमार सखलेचा, सुंदरलाल पटवा, उमा भारती, बाबूलाल गौर के रूप में प्रदेश के मुख्यमंत्री बने हों, किंतु उमा भारती के पूर्व तक भाजपा के तीन मुख्यमंत्रियों को अपने शासन के दौरान पूरे पाँच वर्ष का समय कभी नहीं मिला था कि वे अपने विकास के संकल्प और योजनाओं को सफलतम तरीके से साकार रूप दे पाते।
फिर भी यह न केवल आज प्रदेश की जनता महसूस करती है, बल्कि समूचा देश यह भलीभांति जानता है कि भाजपा भले ही पूर्व में अल्पकाल के लिए शासन में आई हो, और वर्तमान में दीर्घकालीन समय 8 दिसम्बर 2003 से लेकर शासन में हो, जितना विकास और जनहित इसकी सरकार में हुआ है, वह संपूर्णता के साथ विकास भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस शासन के 1 नवम्बर 1956 से लेकर 29 अप्रैल 1977 तक, 9 जून 1980 से लेकर 4 मार्च 1990 तक, फिर 7 दिसम्बर 1993 से अब तक का अंतिम कांग्रेसी दिग्विजय सिंह के शासन 7 दिसम्बर 1993 से आरंभ होकर 8 दिसम्बर 2003 तक 55 वर्षों में कभी नहीं हो सका।
यहां कहने का तात्पर्य यह कतई न समझा जाए कि कांग्रेस के शासन में विकास हुआ ही नहीं, विकास तो हुआ है, लेकिन वह समग्रता के चिंतन के साथ नहीं किया गया, जिसमें कि जन्म से लेकर जीवन के अंतिम समय तक के दौरान प्रदेश के एक गरीब आदमी की समुचित चिंता की जाती।
मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिंह चौहान ने जब 29 नवम्बर 2005 को जब पहली बार शपथ ली थी, तब किसी को यह अंदाजा नहीं था कि शिवराज का जादू कुछ ही माह में राज्य की जनता के सिर चढक़र बोलने लगेगा। उनसे प्रदेश का हर बच्चा मामा जैसा अपनत्व का संबंध और प्रत्येक महिला भाई जैसा दुलार महसूस करेगी। जो लोग उन्हें आरंभ में हल्के में ले रहे थे, उन्हें भी यह अहसास जल्द हो गया कि शिवराज के लिए प्रदेश की जनता कहनेभर के लिए भगवान नहीं, जनता का दर्द शिवराज का दर्द यह केवल एक नारा या कोरा वाक्य नहीं बल्कि वास्तविकता है।
कुछ लोग इसी बात को लेकर शिवराज सरकार को घेरने की कोशिश करते हैं कि जन्म से लेकर मृत्यु तक की निशुल्क व्यवस्था जब शिवराज सरकार ने कर रखी है, तो मजे करो, काम क्यों किया जाए। ऐसे लोग इस सरकार को घेरने के लिए एसएमएस और वाट्सएप्प जैसे एप्प का सहारा भी लेते हैं और कोशिश करते हैं कि राज्य सरकार की जन्म से लेकर जीवन के अंतिम पड़ाव से जुड़ी योजनाओं का मखौल उड़ाया जाए, लेकिन यहाँ सरकार की योजनाओं की आलोचना करने से पूर्व वह यह क्यों भूल जाते हैं कि किसी भी प्रकार से समृद्ध और आर्थिक रूप से ताकतवर लोगों के हित के लिए सरकार ने अपनी योजनाएँ नहीं बनाई हैं। पण्डित दीनदयाल के एकात्म मानवदर्शन से प्रभावित होकर ही मध्यप्रदेश की सभी जन-कल्याणकारी योजनाएँ विकास में अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को ध्यान में रखकर बनाई गई हैं।
आलोचना करने के पूर्व ऐसे सभी लोगों को एक बार यह अवश्य विचार करना चाहिए कि अमीर तो निजी महंगे अस्पतालों में इलाज करा सकते हैं, लेकिन गरीब धन के अभाव में अपनी एक खून की जाँच कराने में भी सौ बार सोचता है। धन के अभाव के कारण बेटी माता-पिता के लिए कहीं-कहीं बोझ जैसी समझी जाने लगी। यह धन ही है, जिसकी कमी के चलते बुढ़ापे की अपनी अंतिम इच्छा तीर्थ दर्शन करने में लोग स्वयं को अक्षम पाते हैं।
वस्तुत: यहां सभी को यह समझना जरूरी है कि विकास के लिए सबसे पहली आवश्यकता स्वस्थ मन और शरीर की है। जब राज्य के आम नागरिक स्वस्थ नहीं होंगे, तो कैसे कोई प्रदेश प्रगति के पथ पर आगे बढ़ सकता है? मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिंह चौहान की सबसे बड़ी सफलता यह मानी जा सकती है कि उन्होंने इस बात को समझा कि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का वास होता है और स्वस्थ मन एवं शरीर की बदौलत ही प्रदेश का विकास संभव है। उन्होंने इस दृष्टि को ध्यान में रखकर मध्यप्रदेश के लिए अपने हिसाब का विकास का खाका तैयार किया, जिसमें हर उस व्यक्ति के लिए अपार संभावनाएँ मौजूद थीं, जो कि मध्यप्रदेश का नागरिक है।
आज उनके प्रयासों के सफलतम परिणाम हम सभी के सामने प्रत्यक्ष हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को जनसहयोग से नया राज्य गढऩे में सफलता मिली है। उन्होंने नौकरशाह से सिर्फ दबाव बनाकर कार्य नहीं कराया, शिवराज यह समझाने में कामयाब रहे हैं कि गरमी की तपती दुपहर में, पेड़ सदा देते हैं छाया, सुमन सुगंध सदा देते हैं, हम सबको फूलों की माला, त्यागी तरुओं के जीवन से, हम परहित कुछ करना सीखें, हम करें राज्य आराधन तन से, मन से धन से, स्व पूर्ण जीवन से। इसका सुफल यह हुआ है कि मध्यप्रदेश को आज बीमारू राज्य के कलंक से मुक्ति मिली है। यहां सतत सभी वर्गों के विकास का निरंतर क्रम जारी है।
शिवराज शासन के बीते 10 वर्षों की अवधि में राज्य की तस्वीर बदलने की कोशिश तेजी से की गई है। आलोचना करने वाले और कमियां ढूंढऩे वाले भले ही कितनी भी त्रुटियां निकालने का प्रयत्न करें, किंतु अकेले में तो वे भी यही स्वीकारते हैं कि यहां लगातार विकास की नई गाथा लिखी जा रही है। क्या कोई इस बात को नकार सकता है कि मध्यप्रदेश ने गरीबों के हित में विकास योजनाओं के क्रियान्वयन में देश के सामने जो मिसाल पेश की है, इतने कम समय में देश का कोई अन्य राज्य उसकी बराबरी भी कर पाया है?
यह सर्वविदित है कि केंद्र में भाजपा की मोदी सरकार आने के पूर्व कांग्रेस की मनमोहन सरकार भी शिवराज सिंह के सफल प्रशासन और योजनाओं के क्रियान्वयन को देखते हुए कई बार न सिर्फ तारीफ करती आई, बल्कि इसके आगे होकर उसने यहाँ कई विभागों के कार्य को देश में अव्वल पाते हुए पुरस्कारों से भी समय-समय पर नवाजा था। यदि शिवराज का कुशल शासन प्रदेश में नहीं होता, तो भला कांग्रेस की सरकार क्या सम्मान करने बार-बार आगे आती? वस्तुत: शिवराज सरकार के आलोचकों को यह बात अवश्य विचारना चाहिए।
वर्तमान में मध्यप्रदेश एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा सालाना बजट वाला प्रदेश है। एक दशक पूर्व यह महज 21 हजार 647 करोड़ रुपये था। राज्य में जलापूर्ति के लिए किए जा रहे प्रयास हों या बिजली आपूर्ति की बात अथवा जनहित से जुड़ा अन्य कोई मामला रहा हो, शिवराज सरकार ने अपने शासन में प्रत्येक बिंदु पर बारीकी से ध्यान दिया है। इस बार विधानसभा में प्रस्तुत बजट को ही ले लीजिए, वर्ष 2015-16 का यह बजट प्रदेश के युवाओं की रोजगार संभावनाएँ बढ़ाने तथा निर्माण क्षमताओं में वृद्धि के सपने को साकार करने के उद्देश्य से प्रेरित है।
इसलिये अधोसंरचना, मानव संसाधन के कौशल विकास को धुरी मानकर यह बजट प्रस्तुत किया गया। शिवराज सरकार में नर्मदा-गंभीर लिंक परियोजना के लिये 2 हजार करोड़ रुपये स्वीकृत किए हैं। चौबीस घंटे विद्युत प्रदाय के लिये नौ हजार सात सौ चार करोड़ रुपये का बजट प्रावधान किया गया। गरीब और आरक्षित वर्ग के विद्यार्थियों के लिए तमाम प्री-मैट्रिक और मैट्रिक नये छात्रावासों की व्यवस्था के साथ राजीव आवास योजनान्तर्गत नगरीय निकायों में 15 हजार 430 आवास अधोसंरचना विकास में एक हजार 781 करोड़ रुपये मंजूर किए गए।
नर्मदा-गंभीर लिंक परियोजना के लिये बजट में 2 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया। प्रदेश में आगामी 5 वर्षों में लगभग 19 हजार किलोमीटर मुख्य जिला सडक़ों का उन्नयन किए जाने का लक्ष्य सरकार ने अपने सामने रखा है।
सरकार ने कृषि एवं संबद्ध गतिविधियां, सिंचाई, नवकरणीय ऊर्जा, पेयजल, नगरीय विकास एवं पर्यावरण, शिक्षा, महिला एवं बाल विकास, वाणिज्य, उद्योग एवं रोजगार, पंचायत एवं ग्रामीण विकास, अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति कल्याण,पिछड़ा वर्ग तथा अल्पसंख्यक कल्याण, सामाजिक न्याय, खाद्यान्न सुरक्षा, कुटीर एवं ग्रामोद्योग, वन, पर्यटन, संस्कृति, धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, खेल एवं युवक कल्याण, परिवहन, राजस्व, सुशासन, न्याय, प्रशासन या शासकीय सेवकों को सुविधाएँ देने की बात हो अथवा इसके इतर आप राज्य की जनता से जुड़े किसी भी विभाग या व्यवस्था की बात कर लें, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी मंत्री परिषद ने राज्य से जुड़े सभी विषयों और विभागों पर गंभीर चिंतन कर योजनाओं का निर्माण और उसकी पूर्ति के लिए पर्याप्त धन की व्यवस्था रखी है।
राज्य सरकार द्वारा कृषि के क्षेत्र में किए गए सराहनीय कर्यों का ही यह परिणाम है कि पिछले तीन साल से लगातार देश में सर्वाधिक कृषि विकास दर मध्यप्रदेश की रही है, इसीलिए ही लगातार तीन वर्षों से ‘कृषि कर्मण अवार्ड’ मध्यप्रदेश को मिल रहा है। किसानों को सस्ती कृषि साख उपलब्ध कराने के लिये लगभग 79 लाख किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड वितरित किये गए हैं। दुग्ध उत्पादन में मध्यप्रदेश की वार्षिक विकास दर देश में सबसे अधिक है।
प्रदेश की 11वीं पंचवर्षीय योजना के लिए विकास दर का लक्ष्य 7.6 प्रतिशत तय किया गया था, पर प्रदेश ने हासिल की, 10.06 प्रतिशत की विकास दर। यही एक उपलब्धि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व के करिश्मे को स्थापित करने के लिए पर्याप्त है। प्रदेश की अग्रता आर्थिक विकास तक ही सीमित नहीं है। राज्य की प्रगति अन्य क्षेत्रों में भी हुई है।
पर्यटन व उद्योगों को बढ़ावा देने की बात हो या फिर खेलों को प्रोत्साहन देने या ई-गवर्नेंस की कोशिशें हों, भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने के नवाचार हों, बुनियादी सुविधाओं के विकास के काम अथवा सामाजिक क्षेत्र में सरकार की भागीदारी और मानव मूल्यों के प्रति उसका समर्पण, इन सभी दिशाओं में प्रदेश की चमकदार छवि बनी है।
सकल घरेलू उत्पाद भी तीन गुना बढ़ गया है। प्रति व्यक्ति आय भी तीन गुने से ज्यादा हो गई, किसानों को सहकारी बैंकों से फसल ऋ ण दिए गए हैं। नाबार्ड के सहयोग से कोर-बैंकिंग लागू की जा रही है। भण्डारण क्षमता को बढ़ाने के लिए अब तक लगभग 1400 से अधिक प्राथमिक सहकारी संस्थाओं को नि:शुल्क भूमि दी गई है। गेहूं उपार्जन में प्रदेश ने अभूतपूर्व कीर्तिमान कायम किया है।
मध्यप्रदेश में सडक़ निर्माण के क्षेत्र में 90 हजार किलोमीटर से अधिक अभी तक सडक़ों का जाल बिछाया जा चुका है। बिजली का उत्पादन 4600 मेगावाट से बढ़ाकर 10600 मेगावाट किया गया, इसी तरह सिंचाई के क्षेत्र में ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल हुई, सिंचाई क्षमता को 9 लाख हैक्टेयर से बढ़ाकर 26 लाख हैक्टेयर तक पहुंचाया गया है। मध्यप्रदेश में प्रतिव्यक्ति आय 14 हजार से बढक़र 43 हजार 800 हो गयी है।
प्रदेश में 8 हजार करोड़ रू. का औद्योगिक निवेश था, जो कि आज 94 हजार करोड़ रू. से अधिक किया जा चुका है। मध्यप्रदेश देशी और विदेशी निवेशकों का गंतव्य बन चुका है। भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव घोषणा-पत्र का परिपालन करते हुए प्रदेश में हर हाथ को काम- हर खेत को पानी देने के लिए पर्याप्त व्यवस्था की, जिससे प्रदेश की जनता के सुकून मिला है। आम आदमी के जीवन स्तर में वृद्धि हुई है।
नौकरी पर लगे प्रतिबंध को हटाया और तकरीबन 8 लाख लोगों को रोजगार मुहैया कराया है। आने वाले वर्षों में इंदौर देश का औद्योगिक हब बनने जा रहा है, इस शहर के अलावा मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर, उज्जैन, सतना और सागर आने वाले वर्षों में स्मार्ट शहर बनने जा रहे हैं। सरकार यहीं नहीं रुक गई, इन शहरों के अलावा भी उसने अपना ध्यान छोटे शहरों पर केंद्रित किया है। ये शहर केन्द्र सरकार द्वारा प्रदेश के लिए घोषित सात स्मार्ट सिटी के अलावा होंगे।
मुख्यमंत्री के दिए निर्देशों के बाद प्रदेश के छोटे-मझौले शहरों को स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित करने के लिए मापदंड निर्धारित किये जा रहे हैं। वहीं वर्ष 2022 तक सबके लिए आवास की व्यवस्था सुनिश्चित हो सके, इस पर भी इन दिनों तेजी से काम किया जा रहा है। मध्यप्रदेश में रोजगार-धंधों और खेती के लिए एफडीआई पर कोई निर्भरता नहीं रखी गई है। अभी तक के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के कार्य का यदि निष्कर्ष निकाला जाए तो कहना होगा कि उनका स्वप्न यही है कि मध्यप्रदेश में हर दिन सुदिन हो, हर मास मधुमास हो, हर घड़ी, हर पल हृदय में परम हर्ष, उल्लास हो। हर कदम पर एक नई आशा, नया विश्वास हो।’’ इसके लिए उनके अन्य कार्यों में यदि मुख्यमंत्री कन्यादान योजना और मुख्यमंत्री निकाह योजना का जिक्र करें, तो इन दो योजनाओं में ही अकेले अब तक लाखों विवाह संपन्न हो चुके हैं। बेटी बचाओ अभियान से समाज के सभी वर्ग जुड़ रहे हैं। मध्यप्रदेश में अब बेटियों के जन्म पर दुखी नहीं हुआ जाता। यहां भ्रूण हत्या जैसे घृणित अपराध पर लगाम कसी जा रही है।
बालक-बालिकाओं के कम हो रहे अनुपात को बराबरी में लाने के लिये समाज को जागरूक किया जा रहा है। प्रदेश में बेटियों के जन्म को बोझ समझने की प्रवृत्ति को कम करने के लिये, बालिकाओं के समुचित विकास के लिये महिला सशक्तिकरण के प्रबल पक्षधर शिवराज सिंह चौहान द्वारा अनेक प्रकार की योजनाएँ क्रियान्वित की जा रही हैं। चूँकि लिंगानुपात के अंतर को पाटने के लिए लोगों की सोच में बदलाव जरूरी है, इसीलिए महिला सशक्तिकरण की शुरुआत बचपन से की गई है।
लाड़ली लक्ष्मी योजना में अब तक 15 लाख से अधिक बेटियों को लाभ दिया जा चुका है। प्रदेश में गर्भवती माताओं और बीमार बच्चों के लिए आपातकालीन परिवहन सेवा में 900 से ज्यादा वाहन और 50 काल सेंटर उपलब्ध हैं। मातृ मृत्यु दर प्रति लाख जन्म 379 से घटकर 277 हो गई है। राज्य में महिलाओं से लेकर पिछड़े व कमजोर-दलित वर्ग के कल्याण की अनेक योजनाएं चलाई जा रही हैं। इसके चलते आज हमारे राज्य का परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। राज्य के लोगों को 24 घंटे घरेलू और किसानों को 10 घंटे बिजली देने का सपना पूरा हुआ है, अल्पसंख्यकों के लिए सरकार योजनाएँ चला ही रही है।
इलाज की बुनियादी सुविधा की बात की जाए तो सरदार वल्लभ भाई पटेल नि:शुल्क औषधि वितरण योजना में सभी जिला अस्पतालों में न्यूनतम आवश्यक दवाएं मुफ्त दी जा रही हैं। संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने की बिना शुल्क परिवहन सुविधा से 60 लाख से ज्यादा महिलाएं लाभान्वित हुई हैं। शिशु मृत्यु दर वर्ष 2004 में 86 प्रति हजार थी, जो कम होकर 59 प्रति हजार हो गई है। संस्थागत प्रसव का प्रतिशत 24 से बढक़र 84 प्रतिशत हुआ है। नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाइयों की स्थापना की जा चुकी है। कुपोषण से मुक्ति के लिए अटल बाल आरोग्य एवं पोषण मिशन यहां संचालित किया गया है।
मुख्यमंत्री तीर्थ-दर्शन योजना में अभी तक करीब डेढ़ लाख बुजुर्गों ने देश के विभिन्न तीर्थ-स्थान के दर्शन किए हैं। श्रीलंका में सीताजी का मंदिर, सांची के पास बौद्ध विश्वविद्यालय तथा भोपाल में हज हाउस बनाया जा रहा है। पर्यटन क्षेत्र को उद्योग का दर्जा दिया गया है। पिछले 11 वर्ष में सरकार द्वारा पुलिस के 30 हजार 151 पद की वृद्घि की गई । पुलिस प्रशिक्षण का उन्नयन एवं आधुनिकीकरण लगातार जारी है। मध्यप्रदेश ही वह देश का वह पहला राज्य है, जहां लोक सेवा प्रदाय गारंटी कानून द्वारा यह व्यवस्था की गई कि आमजन को सरकार की सेवाओं के लिए याचना की जरूरत न रहे। इस कानून से व्यवस्था का स्वरूप ही बदल गया है।
सेवा में देरी पर संबंधित शासकीय सेवक को अर्थ दंड से दंडित करने और नागरिक को दंड राशि क्षति-पूर्ति के रूप में देने की व्यवस्था है। प्रदेश में विदेशी निवेश के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बीच-बीच में लगातार विदेश यात्राएँ करते हैं। जिसके परिणाम से कई लाख करोड़ रुपये के विदेशी निवेश की सहमतियाँ अभी तक प्राप्त की जा चुकी हैं। बौद्ध विश्वविद्यालय की स्थापना कर सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय सद्भाव को एक नया आयाम दिया है वहीं हिन्दी विश्वविद्यालय का फैसला गांधी जी के उस सपने को पूरा करता है, जिसमें उन्होंने देश में संपर्क के लिए हिन्दी को सर्वाधिक उपयुक्त भाषा माना था।
कहना होगा कि स्वर्णिम मध्यप्रदेश के संकल्प के साथ सरकार द्वारा प्रारंभ की गई यात्रा पूरे वेग से आगे बढ़ रही है। विविधता जिसकी पूंजी, कर्मठता जिसकी जीवन शैली और उदारता जिसके जीवन का राग हो, विकास को उसके द्वार पर दस्तक देना ही पड़ती है। मध्यप्रदेश सरकार के संबंध में यदि यह बात आज कही जाए तो किंचित भी अतिशयोक्ति नहीं होगी। प्रदेश न केवल आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में निरंतर सफल रहा है, बल्कि सामाजिक सरोकारों को पूर्ण करने में भी अग्रणी रहा है।
यही कारण है कि प्रदेश की अनेक योजनाओं को राष्ट्रीय स्तर पर निरंतर सराहा जा रहा है एवं उन्हेें अन्य प्रदेशों तथा देश में भी लागू करने की दिशा में कदम उठाये गये हैं।अनेक अवसरों पर विश्व बैंक जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने पुरस्कार और सराहना के द्वारा इसे अभिव्यक्त भी किया है। सामाजिक क्षेत्र में महिला सशक्तिकरण के प्रयासों और सामाजिक क्षेत्र में बजट का अधिकतम प्रतिशत व्यय करने के लिए विश्व बैंक ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की भूरि-भूरि सराहना की है। इस सरकार के नाम सबसे महत्वपूर्ण कीर्तिमान उसके कार्यों का है।
वस्तुत: यह पहली ऐसी सरकार है जिसके कार्यों की प्रशंसा सुदूर अमेरिका में ही नहीं बल्कि पड़ोसी देशों से प्रकाशित समाचार पत्रोंं और सऊदी अरब, चीन, जापान, सहित तमाम देशों के राजनयिकों ने की है। जिन कामों के लिये राज्य की इस सरकार को प्रशंसा और पुरस्कार मिले, उनमें ई-प्रशासन, मत्स्य-सहकारिता, ग्रामीण विद्युतीकरण, मनरेगा का क्रियान्वयन, प्रधानमंत्री सडक़ योजना, अधोसंरचना तथा कृषि विकास पुरस्कार, पर्यटन विकास, पावर ट्रांसमिशन, अल्पसंख्यक वर्ग के छात्रों को छात्रवृत्ति, उद्योगों का विकास, हज यात्रियों के बेहतर प्रबंध जैसे विषयों पर राज्य सरकार को देश के भीतर और बाहर प्रशंसा मिल रही है।
आज प्रदेश में जनता और सरकार के संबंधों में जो बदलाव आया है, वह पहले किसी सरकार में महसूस नहीं किया गया। जहां सरकार के निर्णयों, योजनाओं और कार्यक्रमों के नीति-नियोजन में जनता की भागीदारी बढ़ी है, तो वहीं जनता के उत्सवों और सामुदायिकता में सरकार की सहभागिता भी बढ़ी है। यह भी पहली बार हुआ, जब आमजन के साथ मिलकर उत्सव मनाने के लिए मुख्यमंत्री निवास के द्वार भी खुले हैं, वह भी बिना किसी भेदभाव के। इससे मुख्यमंत्री का जनता से सीधा संपर्क स्थापित हुआ है।
यानी, सारांश यह है कि घरेलू कामकाजी बहनों, हाथठेला, रिक्शा चालक, मंडी हम्माल व तुलावटी, नि:शक्तजन, खेतिहर मजदूरों सहित अनुसूचित जाति-जनजाति के लोग, महिलाओं और किसान जैसे कमजोर और वंचित तबकों तक उनके कल्याण की योजनाओं को उन तक पहुंचाने का प्रयास मध्यप्रदेश में इन बीते वर्षों में हुआ है।
यहां शिवराज के लिए कहा जा सकता है कि नये संकल्प, नई प्रतिज्ञायें, नये उनके इरादे हैं, इस धरा में नई तरह की रोशनी भरने के वादे हैं, राज्य में अमर आनंद की धारा बहाकर लक्ष्य स्व साकार करना है। मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मंशा इस भाव से भी उजागर होती है कि जो अनपढ़ हैं उन्हें पढ़ाएँ, जो चुप हैं उनको वाणी दें। पिछड़ गए जो उन्हें बढ़ाएँ, समरसता का भाव जगा दें। हम मेहनत के दीप जलाकर, नया उजाला करना सीखेंं, देश हमें देता है सब कुछ, हम भी तो कुछ देना सीखें।
डॉ. मयंक चतुर्वेदी