नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव से पहले और बाद में विभिन्न गठबंधन सहयोगियों के साथ छोड़ने के बाद कांग्रेस के भीतर तेजी से यह विचार उभर रहा है कि पार्टी को भविष्य में फिर से एकला चलो की नीति अपनानी चाहिए। 15 साल तक विश्वस्त सहयोगी रही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से ठीक पहले गठबंधन तोड़ने के बाद कांग्रेस में कई नेता यह मानने लगे हैं कि पार्टी को भविष्य में सभी राज्यों में अकेले चुनाव मैदान में उतरना चाहिए।…
उनका मानना है कि इससे एक ओर उन राज्यों में पार्टी का जनाधार वापस लौटेगा जहां पिछले सालों में विभिन्न दलों में गठजोड़ के कारण उसका जनाधार बहुत घट गया है, दूसरी ओर उसकी ठीक स्थिति वाले राज्यों में पार्टी और मजबूत होगी। कांग्रेस महाराष्ट्र में राकंपा की कड़ी शर्ते मानने के लिए राजी नहीं हुई थी जिसके कारण गठबंधन टूट गया। कांग्रेस के कई नेताओं ने इसे पार्टी के पक्ष में अच्छा कदम माना है।
पार्टी प्रवक्ता शोभा ओझा ने आधिकारिक तौर पर भी कहा था कि राज्य में अकेले चुनाव मैदान में उतरने से पार्टी खुश है क्योंकि पार्टी कार्यकर्ताओं में सभी सीटों पर चुनाव लड़ने को लेकर भारी उत्साह सामने आ रहा है। लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को अकेले मिले बहुमत को देखते हुए भी कांग्रेस नेताओं में यह विचार दृढ हुआ है कि उनकी पार्टी को भविष्य में अकेले चुनाव मैदान में उतरना चाहिए।
एक नेता ने कहा कि कांग्रेस का पूरे देश में जनाधार है, हर हिस्से में उसके कार्यकर्ता मौजूद हैं और जब भाजपा अपने बूते बहुमत ला सकती है तो कई सालों तक अकेले सत्ता में रही कांग्रेस फिर से केन्द्र और विभिन्न राज्यों में सत्तारूढ क्यों नहीं हो सकती।
कांग्रेस ने तमिलनाडु में कई साल के बाद पिछला लोकसभा चुनाव अकेले लड़ा था और वहां भी पार्टी कार्यकर्ताओं में नया जोश दिखाई दिया था यद्पि पार्टी कोई सीट नहीं जीत पाई थी। साल 2009 के आम चुनाव में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को कई साल के बाद 21 सीटें मिली थी जब उसने अकेले चुनाव लड़ा था।
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि लंबे समय तक गठबंधन के कारण विभिन्न राज्यों में पार्टी का जनाधार घटा है जबकि सहयोगी दलों को इसका फायदा मिला है। उन्होंने कहा कि इसके कारण पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल भी टूटा है और इससे पार्टी कमजोर हुई है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे निश्चितरूप से पार्टी नेताओं को भविष्य का रास्ता चुनने में सहायक होंगे। यद्पि 15 साल तक वहां सत्ता में रहने के कारण पार्टी के खिलाफ सत्ता विरोधी रूझान काम करेगा।
कांग्रेस ने 1998 में पंचमढी चिंतन शिविर में एकला चलो की नीति अपनाने का फैसला किया था लेकिन 2003 में शिमला चिंतन शिविर में उसने इस बदलते हुए गठबंधन की राजनीति में उतरने का निर्णय लिया था।