विश्व भर में चार फरवरी को कैंसर दिवस मनाया जाता है। इसको मनाने की आवश्यकता क्यों पड़ी है, यह जानकारी बहुत कम लोगों को है। समाचार माध्यम और सोशल मीडिया के जरिए हमें इस दिन का पता तो चल जाता है। लेकिन यह अगले दिन तक अन्य समाचारों की भांति हमारी स्मृति से निकल जाता है।
जिन बड़े उद्देश्य लिए इसकी शुरूआत हुई है, उसकी तह तक हम पहुंच ही नहीं पाते। इसलिए यह दिन भी महज औपचारिक बनकर रहा जाता है। वास्तव में यह दिन इस भयावह बीमारी से लड़ने का संकल्प लेने का है। दृढ़ इच्छा शक्ति से तंबाकू उत्पादों को छोड़ने और दूसरों को भी इसके सेवन के प्रति हतोत्साहित करने हम सभी को बीड़ा उठाना होगा।
आधुनिक विश्व में कैंसर या कर्क रोग को सबसे घातक बीमारी माना जाता है। नाम लेते ही शरीर के रोम खड़ी करने वाली यह बीमारी प्रतिवर्ष लाखों लोगों का जीवन लील जाती है। तमाम प्रयासों के बाद भी इस बीमारी से मरने वालों का आंकड़ा कम नहीं हो रहा है। कैंसर को नियंत्रित करने का एक मात्र हथियार जागरूकता है।
यदि समय रहते बीमारी का पता चल जाए तो इसका उपचार संभव है। भारत में कैंसर की भयावहता का पता इस बात से लगाया जा सकता है कि हर दिन कैंसर से 3300 मौतें होती है, इस प्रकार एक साल में पांच लाख लोग असमय ही काल के ग्रास बन जाते हैं।
कैंसर के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़े, उन्हें शक्षित किया जाए इसी बात को ध्यान में रखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने प्रत्येक वर्ष 4 फरवरी को विश्व कैंसर दिवस मनाने की घोषणा की। इसमें स्वयंसेवी संगठनों, सयुंक्त राष्ट्र संघ और केन्द्रीय अंतरराष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण (यूआईसीसी) और दूसरे प्रमुख स्वास्थ्य संगठनों का भी बड़ा योगदान रहता है।
यूआईसीसी की स्थापना वर्ष 3933 में जेनेवा में हुई थी, विश्व के 355 देशों के 800 से अधिक संगठन इससे जुड़े हैं। विश्व कैंसर घोषणा के अनुसार 2025 तक कैंसर पर प्रभावी नियंत्रण हासिल करने के लिए लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इनमें वर्ष 2025 तक कैंसर से होने वाली मौत में 25 प्रतिशत की कमी करने का व्यापक लक्ष्य भी शामिल है।
कैंसर का सबसे बड़ा कारण तंबाकू और धुम्रपान उत्पाद है। सयुंक्त राष्ट्र ने कैंसर से निपटने के लिए रणनीति बनाई है, इसके अनुसार तंबाकू, शराब, मोटापा पर नियंत्रण करते हुए बेहत पोषण से कैंसर के खतरों को कम किया जा सकता है। बीड़ी, सिगरेट, तंबाकू चबाना, सुपारी, शराब, जंक फूड के उपयोग को नियंत्रित कर दो तिहाई तक कैंसर कम किया जा सकता है।
तंबाकू और इसके उत्पादों के सेवन पर कठोरता पूर्वक नियंत्रण करने के लिए केन्द्र सरकार ने कोटपा (केन्द्रीय धूम्रपान प्रतिषेध अधिनियम) कानून बनाया है। इसके तहत सार्वजनिक स्थलों, सरकारी, गैर सरकारी कार्यालय परिक्षेत्र, शिक्षण, स्वास्थ्य संस्थानों, सिनेमा हॉल, पंचायत भवन और चौक-चौराहों पर धूम्रपान निषेध है। इन स्थानों पर तंबाकू और इसके उत्पादों की बिक्री प्रतिबंधित करने के लिए बोर्ड लगाना अनिवार्य किया गया है। नाबालिकों को तंबाकू बेचना दंण्डनीय अपराध है।
कोटपा कानून की धारा 4- सार्वजनिक स्थल में ध्रूमपान पर प्रतिबंध, धारा 5- सिगरेट, अन्य तंबाकू उत्पादों के विज्ञापन पर प्रतिबंध, धारा 6- नाबालिकों और शैक्षणिक संस्थानों के आस-पास सिगरेट या अन्य तंबाकू उत्पादों की बिक्री प्रतिबंधित करती है।
इसका उल्लंघन करने पर व्यक्तिगत अपराधी के लिए 200 रुपए। स्वामी, प्रबंधक या अधिकृत अधिकारी के लिए- सार्वजनिक स्थलों में अपराधों की संख्या के बराबर जुर्माना 2-5 साल की सजा या फिर 3-5 हजार रुपए तक का जुर्माना। बिक्री/ खुदरा बिक्री पर 3 से 2 साल की सजा, 3 से 3 हजार रुपए तक का जुर्माना हो सकता है।
राजस्थान वालेंटरी हैल्थ एसोसिएशन के निदेशक सतेन्द्र चतुर्वेदी के मुताबिक प्रदेश में कोटपा कानून की इमानदारी से पालना नहीं हो रही है। पुलिस और प्रशासन की शिथिलता के कारण राज्य में इस कानून के तहत कार्रवाई का प्रतिशत बहुत कम है। इसलिए तंबाकू सेवन को रोकने में अपेक्षित सफलता नहीं मिल पा रही है।
विशेषज्ञों के मुताबिक विकासशील देशों में हुए शोधों के नतीजें बताते है कि तंबाकू और इससे जुड़े अन्य उत्पादों के दामों में दस फीसदी बढ़ोतरी करने पर इससे उपभोग में सात प्रतिशत तक की कमी आ सकती है। इससे युवाओं तंबाकू उत्पादों के सेवन से बचेंगे, वहीं उपभोग करने वाले भी हतोत्साहित होंगे। हमारे देश में अधिकतर बीड़ी का सेवन होता है, इसका उपयोग अधिकतर गरीब और निम्न आयवर्ग के लोग करते है, इस पर टैक्स बढ़ा दिया जाए तो इसके सेवन में काफी हद तक कमी लाई जा सकती है।
तंबाकू चबाने से मुंह, गला, अमाशय, कैंसर, आंखों की रोशनी चले जाना, हाथ पैरों में विकृति, नपुसंकता, यकृत और फेफड़े के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। चिकित्सा जगत के शोध में सामने आया कि सिगरेट और बिड़ी में 4 हजार तरह के रसायन होते हैं। इनमें 60 रसायनिक केमिकल ऐसे है तो सीधे कैंसर रोग को बढ़ावा देते है। तंबाकू जनित रोगों में सबसे ज्यादा मामले फेफड़े और रक्त से संबंधित रोगों के हैं जिनका इलाज न केवल महंगा बल्कि जटिल भी है।
तंबाकू व धूम्रपान उत्पादों का सेवन कम करने के लिए तंबाकू पर टैक्स वृद्वि सबसे प्रभावी एंव सस्ता उपाय है। इस वर्ष भी टैक्स वृद्वि की दर को निरंतर बनाये रखने के लिए तंबाकू पर कम से कम 75 प्रतिशत टैक्स वृद्वि होनी जरुरी है। तभी प्रदेश के युवाअेां को इसकी गिरफत से बचाया जा सकेगा।
वर्तमान सरकार ने इन उत्पादों पर टैक्स वसूली के लिए प्रभावी एंव कठोर कदम उठाये है। जिससे टैक्स की चोरी में कमी आई है एंव टैक्स वृद्वि से सरकार के राजस्व में भी इजाफा हुआ है। इससे तंबाकू के सेवन में निरंतर कमी भी आ रही है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकडों बताते है कि हर तीसरा भारतीय किसी ना किसी रुप मंक तंबाकू या धूम्रपान उत्पादों का सेवन करता है, इनमें से एक तिहाई लोग कैंसर, दिल की बीमारी जैसी बीमारियों से पीडित हो जाते हैं। इनमें 30 या अधिक की उम्र में होने वाली हर 5 मौतों में से 2 मौतें धूम्ररहित तंबाकू के कारण होती है।
हमारे यहां लोग चबाने वाले तंबाकू उत्पादों को उपयोग बड़ी तादात में कर रहे हैं, इसके चलते मुंह के कैन्सर ने अब एक महामारी का रुप ले लिया है। विश्व में तम्बाकू और इसके उत्पादों का सेवन सबसे बडी मानव निर्मित त्रासदी है।
एक सर्वेक्षण के अनुसार राजस्थान में तम्बाकू और इसके उत्पादों के उपयोग की दर 32.3 प्रतिशत है। राज्य में 32.3 प्रतिशत लोग किसी न किसी रूप में तम्बाकू सेवन के आदी हैं। यदि समय रहते आगाह किया जाए तो कैन्सर, हृदयाघात एवं श्वांस जैसी गंभीर बीमारियों से इन्हें बचाया जा सकता है।
मनीष शुक्ला