इबोला वायरस – इबोला वायरस एक विषाणु है। यह वर्तमान में एक गंभीर बीमारी का रूप धारण कर चुका है। इस बीमारी में शरीर में नसों से खून बाहर आना शुरु हो जाता है, जिससे अंदरूनी रक्तस्त्राव प्रारंभ हो जाता है। यह एक अत्यंत घातक रोग है। इसमें 90% रोगियों की मृत्यु हो जाती है।
नई दिल्ली। 700 से ज्यादा जिंदगी लेने वाला ‘इबोला’ वायरस अब अमेरिका पहुंच चुका है। पश्चिम अफ्रीका में इबोला के ग्रसित मरीजों से निपट रहे अमेरिकी डॉक्टर को भी इस बीमारी ने अपनी गिरफ्त ले लिया। अमेरिका के अस्पताल में भर्ती इस डॉक्टर को फिलहाल काफी सावधानी पूर्वक रखा गया है।
शुरुआत-
इस रोग की पहचान सर्वप्रथम सन 1976 में इबोला नदी के पास स्थित एक गाँव में की गई थी। इसी कारण इसका नाम इबोला पडा। [1] इबोला एक ऐसा रोग है जो मरीज के संपर्क में आने से फैलता है..मरीज के पसीने, मरीज के खून या,श्वास से बचकर रहें..इसके चपेट में आकर टाइफाइड, कॉलरा, बुखार और मांसपेशियों में दर्द होता है..बाल झड़ने लगते है..नशों से मांशपेशियों में खून उतर आता है..इससे बचाव करने के लिए खुद को सतर्क रखना की उपाय है..इबोला का नाम कागों की एक नदी इबोला के ऊपर पड़ा है..और वायरस सबसे पहले अफ्रीका में पाया गया था..इबोला के मरीजों की 50 से 80 फीसदी मौत रिकॉर्ड की गई है।
अगर हुआ इबोला वाइरस का अटैक :
- 1-3, दिन तक तेज बुखार आता है।
- चौथे ,दिन हाथ पैरों में चकते पड़ने लगते है ।
- 5वे व 7वे, दिन तक उल्टी, दस्त, डायरिया, लौ ब्लडप्रेशर बेचेनी, सिर दर्द होने लगता हे।
- 8वे से 10वे, दिन तक इंटरनल ब्लीडिंग होने लगती है।
- 11वे, दिन तक मरीज कोमा में चला जाता है।
- 12वे दिन अंग काम करना बंद कर देते हे और फिर मौत।
रोग फैलने के कारण:
यह रोग पसीने और लार से फैलता है। संक्रमित खून और मल के सीधे संपर्क में आने से भी यह फैलता है। इसके अतिरिक्त, यौन संबंध और इबोला से संक्रमित शव को ठीक तरह से व्यवस्थित न करने से भी यह रोग हो सकता है। यह संक्रामक रोग है।
लक्षण
इसके लक्षण हैं- उल्टी-दस्त, बुखार, सिरदर्द, रक्तस्त्राव, आँखें लाल होना और गले में कफ़। अक्सर इसके लक्षण प्रकट होने में तीन सप्ताह तक का समय लग जाता है।
रोग में शरीर को क्षति
इस रोग में रोगी की त्वचा गलने लगती है। यहाँ तक कि हाथ-पैर से लेकर पूरा शरीर गल जाता है। ऐसे रोगी से दूर रह कर ही इस रोग से बचा जा सकता है।
उपचार
अभी इस बीमारी का कोई ईलाज नहीं है। इसके लिए कोई दवा नहीं बनाई जा सकी है। इसका कोई एंटी-वायरस भी नहीं है।
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