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शेखावाटी की हवेलियों को बचाएगा पुरातत्व विभाग - Sabguru News
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शेखावाटी की हवेलियों को बचाएगा पुरातत्व विभाग

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शेखावाटी की हवेलियों को बचाएगा पुरातत्व विभाग
Chattris at Ramgarh Shekhawati
World famous havelis of Shekhawati
World famous havelis of Shekhawati

झुंझुनूं । भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के सहयोग से अस्तित्व खो रही विश्व प्रसिद्व शेखावाटी की हवेलियों के अब दिन फिरेंगें। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने उचित रख रखाव व संरक्षण के अभाव में अपना अस्तित्व खो रही शेखावाटी की हवेलियों की सार- संभाल का बीड़ा उठाया है।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की ओर से संभवत: अब तक का यह पहला बड़ा कदम है। विभाग की भवन सर्वेक्षण परियोजना में इसके लिए काम शुरू हो चुका है। इसके लिए अलग से बजट भी जारी किया जा चुका है।

प्रथम चरण में झुंझुनू जिले के डूंडलोद, मुकुन्दगढ़ एवं मण्डावा कस्बों में बनी भित्तिचित्रों से सुसज्जित हवेलियों संबंधी संक्षिप्त सर्वे रिपोर्ट केन्द्र सरकार के भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक को सौंपी गई है। जानकारी के अनुसार अन्तिम सर्वेक्षण रिपोर्ट विभाग की सीएबीए कमेटी की बैठक में रखी जाएगी। कमेटी इन पुरा महत्व की हवेलियों को विभाग द्वारा अधिगृहण करने की सिफारिश कर सकती है।

राजस्थान के परकोटों से घिरे पुराने शहर हमेशा से ही पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र रहें हैं। शेखावाटी क्षेत्र  का राजस्थान में अलग ही स्थान हैं। इस क्षेत्र में एक तरफ राजा-रजवाड़ों, नवाबों द्वारा बनवाये गये भव्य एवं विशाल किले, गढ़, महल हैं, वहीं यहां के धन कुबेर सेठों द्वारा अपने रहने के लिए बनवाई गई वैभवशाली, गगनचुम्बी हवेलियां भी हैं। इस क्षेत्र जैसी भव्य एवं कलात्मक हवेलियां संसार भर में अन्यत्र कहीं देखने को नही मिलती हैं।

World famous havelis of Shekhawati
Chattris at Ramgarh Shekhawati

पारसी मे ‘‘हवेली ‘‘शब्द का तात्पर्य एक चौरस बंद रिहायसी इमारत से हैं, जो हिन्दू एवं मुस्लिम स्थापत्य कला का मिला जुला रुप हैं। शेखावाटी क्षेत्र की हवेलियां दो से पाँच मंजिल ऊँची होती हैं, जिनमें आमतौर पर दो चौक होतें हैं। हवेली में जाने के लिये बाहरी दरवाजे को पार करना पड़ता हैं। इस बाहरी दरवाजे के दोनों ओर गोखे (चबूतरा) बनें होतें हैं तथा इनके दरवाजे,चौखट लकड़ी के बने होतें हैं, जो आर्कषक कलात्मक खुदाई से सुसज्जित होते हैं।

शेखावाटी में हवेली निर्माण कला मुगल शासन-काल में प्रारम्भ हुई थी जो अँग्रेजो, राजा-महाराजाओं के समय में अपने पूर्ण यौवन पर पहुंची।शेखावाटी के झुंझुनू, सीकर एवं चुरू जिलों के झुंझुनू, चूरू,नवलगढ़, महनसर, अलसीसर, मंडावा, फतेहपुर, बगड़, रामगढ, फतेहपुर,सरदारशहर,राजगढ़, बिसाऊ,चिड़ावा, लक्ष्मणगढ़, पिलानी, चूड़ी, मुकुन्दगढ़ जैसे अनेक स्थान हैं, जो सदियों से पुरातन कला संस्कृति की अनुपम धरोहर संजोये हैं।  यहाँ की हवेलियों का हर हिस्सा नयनाभिराम रंग-बिरंगे आकर्षक भित्ति चित्रों एवं वास्तुकला की अनुपम छठा बिखेरे हुए हैं।

शेखावाटी में दो-तीन सौ साल से भी अधिक पुरानी पुरा महत्व की भित्तिचित्रों वाली हवेलियां सदैव से विदेशी सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र रही हैं। शेखावाटी की हवेलियों के चटकीले, भडक़ीले रंग-बिरंगे, आकर्षक भित्ति चित्रों के विषय अलग-अलग हैं। इन भित्ति चित्रों में राधा-कृष्ण की रासलीला, महाभारत, रामायण की कथाएं, ढोला मारु प्रसंग, दर्पण निहारती नायिका, पर्वो,उत्सवों, होली-दीपावली के चित्र, लोक कथायें, रीति-रिवाज, लोक जीवन की विविध झांकियां देखी जा सकती हैं।

उचित देखरेख के अभाव में यहां की कईं भव्य हवेलियां धाराशायी होने के कगार पर हैं, जिससे धीरे-धीरे भिति चित्रकारी लुप्त होती जा रही हैं। देखरेख के अभाव में ये अनमोल धरोहर अपना मूल स्वरूप खोती जा रही है। इनके संरक्षण की चिंता में पुरातत्व विभाग को यह कदम उठाना पड़ा। सूत्रों का मानना है कि इन्हें नहीं बचाया गया तो हमारी सांस्कृतिक विरासत के साथ ही देशी-विदेशी पर्यटन का व्यवसाय भी नष्ट हो जाएगा।

प्रोजेक्ट के पहले चरण में डूंडलोद की गोयनका हवेली, मुकुन्दगढ़ की सर्राफ हवेली तथा मंडावा की दो हवेलियों की सर्वे रिपोर्ट विभाग के महानिदेशक के सुपुर्द की गई है। ये हवेलियां निजी व्यक्तियों की और असंरक्षित है। इनके डॉक्यूमेंटेशन व लिस्टिंग का काम उक्त कमेटी की बैठक में में रखा जाएगा। सूत्रों का मानना है कि अन्य हवेलियों का भी सर्वे कर इन्हें विभाग के अधीन किया जा सकता है।

पुरा महत्व की हवेलियों के संरक्षण के लिए राज्य सरकार के पुरातत्व संग्रहालय विभाग को विधानसभा द्वारा पारित अधिनियम के तहत कदम उठाना चाहिए। केन्द्र सरकार प्राचीन स्मारक तथा पुरा स्थल एवं पुरावशेष अधिनियम 1958 की धारा 2, 3 के तहत पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के माध्यम से पुरा महत्व की इमारतों को विधिवत रूप से अपने अधीन लेकर देखरेख कर सकती है।

1962 के पुरावशेष तथा बहुमूल्य कलाकृति अधिनियम का प्रयोग किया जा सकता है। 1972 में संशोधित अधिनियम के अनुसार कम से कम सौ वर्षों से विद्यमान पुरा महत्व की कृति को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग अपने अधीन ले सकता है।

-रमेश सर्राफ