जावरा। धार्मिक सद्भाव, स्नेह, पे्रम और परस्पर सहयोग तथा एक-दूजे के प्रति अपनत्व और सम्मान ने जावरा की ख्याति को शहर की सीमा से बाहर पूरे देश और सात समन्दर पार तक पहुंचाने का काम किया है।
बरसों पुराने शिव मंदिर तथा मस्जिद के मध्य बहने वाला पिलिया खाल तथा दोनों पवित्र तथा धार्मिक स्थल से प्रतिदिन तय समय गुंजने वाली आरती तथा अजान की ध्वनियों से सदा ही शहर के वातावरण में शांति, एकता और धार्मिक सहिष्णुता का संदेश गुंजायमान होता है।
हर धर्म, हर वर्ग, हर पंथ और हर मत को समान आदर, महत्व तथा मान्यता समान रुप से देना इस नवाब की नगरी की पुरानी परम्परा व विशेषता है। कटुता, द्वेषता विवाद, अथवा यदारूपा नासमझी भरे कदमों से उपजी शंका कुशंकाओं का समाधान निराकरण पूरी तत्परता से समाजजन अपनी सूझबूझ से करके माहोल को सौहार्द पूर्ण बनाए रखते है। इसी शहर में स्थित है हुसैन टेकरी जहां इन दिनों चेहल्लूम की चहल-पहल है।
हुसैन टेकरी पर 2 दिसंबर को चेहल्लूम का मुख्य आयोजन खंदक ए मातम चूल का आयोजन होगा। इसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु अंगारों से गुजरकर हजरत इमाम हुसैन के प्रति आस्था प्रकट करेंगे। चेहल्लूम के इस आयोजन को देखने के लिए लाखों की तादाद में श्रद्धालु यहां पहुंचते है। सर्द रातों में होने वाले इस आयोजन की तैयारियां भी व्यापक स्तर पर हो रही है।
चूल स्थल तक पहुंचने से पहले लोगों को पड़ाव स्थल व बेरिकेट्स लगाकर बनाए गए जिगनेक से होकर गुजरना पड़ेगा। 80 बीघा क्षेत्र में 25 हजार बल्लियों से इसे तैयार किया गया है। इसके अलावा इस पूरे क्षेत्र में लाईटिंग के साथ ही बेठने और आयोजन को देखने के लिए एलईडी भी लगाई जाएगी जो पूरे क्षेत्र में होने वाली हर गतिविधि पर सीसीटीवी कैमरों से निगाह भी रखेगी। 28 जगह सीसीटीवी कैमरे जगाए जाएंगे।
विश्व प्रसिद्ध स्थल
धार्मिक, आस्था, मान्यता, विश्वास और परम्परा का प्रतीक यह अति प्राचीन स्थल अपने आप में महत्वपूर्ण है। इसकी प्रसिद्धि का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां पूरे वर्ष जायरीन आते-जाते रहते है। देश के सभी प्रमुख शहरों के अलावा सात समंदर पार से भी जायरीन यहां धार्मिक कार्यक्रमों में सहभागिता करना अपना सौभाग्य समझते है।
दस दिनी चेहल्लूम के दौरान यहां टेकरी पर हर दिन जायरीनों के पहुंचने की संख्या हजारों में रहती है। इन दिनों देश के हर कोने से यहां तक पहुंचने वाले वाहनों में भारी भीड़ रहती है। बस स्टेण्ड तथा रेलवे स्टेशन पर नजारा भी किसी मेले से कम नहीं होता। निजी वाहनों से भी बड़ी संख्या में यात्री यहां आते है।
अटूट आस्था का केंद्र
जावरा में स्थित सबसे बड़ा तथा प्रसिद्ध धार्मिक स्थल हुसैन टेकरी लाखों लोगों की आस्था तथा विश्वास का महत्वपूर्ण केंद्र है। यहां हिंदू तथा मुसलमान दोनों की आस्था भरपूर है। यहां जो रोजे तथा इमामबाडे है उनकी हर एक की अपनी महत्ता है। बरसों से चली आ रही परंपरा व मान्यता आज भी असर दिखाती है। जियारत के साथ मन्नतों का छल्ला भी बांधा जाता है। जायरीन इबादत करते है, लोबान की धूनी लेते है, आका हुसैन के दरबार में माथा टेक कर मन्नत भी मांगते है। बरसों से यह परंपरा चली आ रही है।
व्यवस्था पर नजर
जावरा स्थित इस धर्मस्थल पर चेहल्लूम के दौरान भीड़ प्रबंधन हेतु संभाग स्तर तथा प्रदेश स्तर के जिम्मेदारों की नजरें रहती है। प्रबंध व्यवस्था को लेकर टेकरी प्रशासन भी महिनों पहले से चाक चोबंद व्यवस्था को लेकर तैयारियों में जूट जाता है। ताकि यहां पहुंचने वाले अतिथियों को किसी तरह की अव्यवस्था, परेशानी, असुविधा का सामना नहीं करना पड़े।
टेकरी परिसर में अस्थाई निर्माण द्वारा सुविधाएं जुटाई जाती है, पीने के पानी, साफ-सफाई, आवास प्रशासन आदि पर विशेष ध्यान रहता है। रात के समय सतत विद्युत प्रदाय की व्यवस्था की जाती है। कई हफ्तों पहले यहां स्थित लाज, धर्मशाल, होटले बुक हो जाती है। निजी आवासों में भी जायरीनों को ठहराया जाता है।
सतर्क रहते है जिम्मेदार
भारी भीड़ के चलते टेकरी पर व्यवस्थाओं को चुस्त-दुरूस्त बनाए रखने हेतु पूरा सरकारी अमला, पुलिस प्रशासन, चिकित्सक, नपा सहित टेकरी प्रबंधन आयोजन के दौरान सक्रिय सजग तथा सतर्क रहता है, ताकि किसी तरह की भगदड़ या हादसों से बचा जा सके। निरंतर यहां जिलास्तर के जिम्मेदार तत्कालिन जानकारी प्राप्त करते रहते है तथा जरूरत पड़ने पर आवश्यक निर्देश, मार्गदर्शन लेते रहते है।
कुछ मान्यताएं
जानकार बताते हैं कि नवाबी शासन काल के वक्त करीब 20-25 घुड़सवार इस क्षेत्र में आए थे। इनमें से किसी एक सवार के घोड़े की टॉप का निशान यहां देखा गया था। इसी वजह से यहां एक टॉप शरीफ नाम का रोजा है। छोटे रोजे के बारे में मान्यता है कि 1882 में यहां आने वाले घुड़सवारों ने नमाज जिस जगह पढ़ी थी उस स्थान पर कलंदरी मस्जिद के नाम से पवित्र स्थल आज भी मौजूद है।
वजू के लिए जमीन से स्वत: पानी निकलने की भी मान्यता है। इस स्थान पर कुआं आज भी है। इस पानी को साान्यत पानी में मिलाकर नहाने से बीमारियां दूर होने की मान्यता है। टेकरी परिसर में कुल 6 रोजे स्थित है। हर एक का अपना महत्व है। हर एक के प्रति अलग आस्था धारणा तथा मान्यता है। यहां पहुंचने वाला हर जायरीन सभी रोजों पर इबादत कर मत्था टेकता है।
2 दिसंबर को मुख्य आयोजन
आग पर मातम का मुख्य आयोजन 2 दिसंबर बुधवार रात 10 बजे से शुरू होगा। इसी आयोजन के दौरान यहां की व्यवस्थाओं को व्यस्थापकों की सूझ-बूझ की भी परीक्षा होगी। इस दिन प्रसिद्ध स्थल पर चारों दिशाओं से यानि देश-विदेश से लाखों जायरीन यहां आते है।
कई तो इस मुख्य आयोजन के साक्षी बनते है तो कई इसमें सहभागिता भी करते है। इस दिन प्रशासन विशेष व्यवस्था करता है। भीड़ नियंत्रण तथा सफल निर्विध्न आयोजन पर विशेष ध्यान दिया जाता है। प्रमुख प्रशासनिक जिम्मेदार पैनी नजरे समूचे परिसर पर गढ़ाए हुए है।
रोजे और उनका महत्व
परिसर में कुल 6 रोजे स्थित है। इनका निर्माण 1882 से 2006 के मध्य हुआ। हर एख का अपना महत्व और इतिहास है। हर एक के प्रति जायरीनों में आदर सम्मान है। यहां हम संक्षेप में रोजों की जानकारी प्रस्तुत कर रहे है।
छोटा रोजा
यह हजरत अब्बास अलमदार के नाम पर जाना जाता है। निर्माण वर्ष 1882। मान्यतानुसार इस वर्ष में यहां आए घुड़सवारों ने नमाज पड़ी थी, इससे पूर्व वजू के लिए यहां स्वत: जमीन से पानी निकाला। कुआं आज भी है। पानी के उपयोग से रोग दूर होते है। यह झालर शरीफ के नाम से जाना जाता है। जायरीन यहां सबसे पहले मत्था टेकते, मन्नतों का छल्ला बांधते है। लोबान की पहली धुनी भी यहां की ही मान्य है।
बड़ा रोजा
मोहर्रम व चेहल्लूम जिनकी शहादत की याद में मनाते है ऐसे इमान हुसैन का रोजा हुसैन टेकरी शरीफ पर बीचों-बीच स्थित है, जो लाखों जायरिनों की आस्था का केंद्र है। यहां इबादत हेतु आने वालों की सुनवाई हेतु इस दरबार में अदालत लगती है। सुनवाई पश्चात फैसले भी होते है। यातनाएं देकर प्रभावित शरीर को मुक्त कराया जाता है। यहां सुबह 9 व शाम 4 बजे लोबान का वक्त होता है। गुरूवार को यहां जायरीनों की संख्या बहुतायत में होती है। (निर्माण 1882)। बड़े रोजे के पास ही हजरत इमाम हुसैन की बहन बीबी जैनब का रोजा है। जायरीन यहां भी इबादत करते व मन्नते मानते है।
टॉप शरीफ
परिसर के सबसे अंत में हजरत अली शेर ए खुदा का रोजा इसी नाम से ख्यात है। यह इमाम हुसैन के वालिद (पिता) का है। मान्यता है कि प्राचीन काल से यहां आए घुड़सवारों में से एक घोड़े की टॉप का निशान यहां नजर आया था। इसी के चलते इसका यह नाम पड़ा। यहां मन्नतों का दूसरा धागा बांधा जाता है। इसके खुलने का वक्त सुबह 7 से 11 व दोपहर 2 से 6 बजे शाम का है। गुरूवार को अधिक वक्त तक खोला जाता है। इसका भी अपना महत्व है।
बीबी फातमा का रोजा
मेहंदी कुआं के नाम से ख्यात यह रोजा प्रवेश द्वार के समीप स्थित है। यहां आखरी लोबान दिया जाता है। मन्नतों का आखरी छल्ला भी यहीं बदला जाता है। इसके समीप कुआँ स्थित है। यहां जायरीन घंटों खड़े रहकर जियारत करते है। गुरूवार को इसके खुलने का समय रोज की अपेक्षा ज्यादा होता है।
स्नेह के प्रतीक बीबी सकीना का रोजा छोटे रोजे के समीप स्थित है। एक मान्यतानुसार युद्ध के दौरान इमाम हुसैन की बेटी सकीना को प्यास लगी तब हजरत अब्बास अलमदार अपनी भतीजी सकीना के लिए पानी लेने गए थे और वे वहीं शहीद हो गए थे। टेकरी पर आने वाला हर जायरीन बीबी सकीना के रोजे पर जाता है। इन सभी रोजों पर चेहल्लूम के दौरान जायरीन बहुतायत में पहुंचते है।