नई दिल्ली। हर वर्ष 16 सितंबर को विश्व ओजोन दिवस मनाया जाता है ताकि दुनियाभर में पृथ्वी के इस सुरक्षा कवज के प्रति जन जागरुकता पैदा की जा सके। इन्हीं प्रयासों का नतीजा है कि इस सदी के मध्य तक ओजोन परत को हुए अबतक के नुकसान की भरपाई हो जाएगी।
हाल ही में छपे शोध के मुताबिक दक्षिणी ध्रुव के नज़दीक बने ओजोन छिद्र सन् 2000 के मुकाबले वर्तमान में 44 लाख वर्ग किलोमीटर घट चुका है। इस विषय पर लीड्स विश्वविद्यालय की अंतरराष्ट्रीय टीम के सदस्य रियान नीली का कहना है कि कम्पयूटर पर आधारित मॉडल और अवलोकन एकमत होकर कह रहा है कि ओजोन परत में सुधार दिखाई देने लगा है।
असल में यह ओजोन छिद्र हर वर्ष अगस्त में बढ़ता है और अक्टूबर तक शीर्ष आकार पर पहुंच कर रुक जाता है वैज्ञानिक पिछले 15 सालों से लगातार इसका अध्य्यन कर रहे हैं।
ओजोन पृथ्वी के वातावरण के दूसरे मंडल संताप में फैली ऑक्सिजन के कणों से बनी एक परत है। ओजोन एक हल्के नीले रंग की गैस होती है और सामान्यत: धरातल से 10 किलोमीटर से 50 किलोमीटर की ऊंचाई के बीच पाई जाती है।
ओजोन सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों (अल्ट्रावायलट रे) से हमारी सुरक्षा करती है। पराबैंगनी किरणों के मानवशरीर और जीवजन्तुओं पर गंभीर प्रभाव पड़ता है इससे कैंसर के भी होने की संभावना रहती है।
इस परत के प्रति विश्व में जागरुकता फैलाने के लिए 23 जनवरी 1994 को संयुक्त राष्ट्र संघ की आम सभा में 16 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय ओज़ोन दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव पारित किया गया था। इसे ओजोन परत में गिरावट लाने वाले पादार्थों पर नियंत्रण लाने संबंधित ‘मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल’ पर हस्ताक्षर उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
बढ़ते औद्योगीकरण के परिणामस्वरू वायुमंडल में कुछ ऐसे रसायनों की मात्रा बढ़ गयी है जिनके चलते ओज़ोन परत का लगातार क्षय हो रहा है।
इन्हें क्लोरो फ्लोरो कार्बन कहा जाता है जिसमें क्लोरीन एवं नाइट्रस ऑक्साइड गैसें प्रमुखता से शामिल रहती हैं। इनके चलते ओज़ोन परत लगातार पतली हो रही है और उसमें कुछ स्थानों पर छिद्र हो गया है।