लखनऊ। उत्तरप्रदेश में लगातार दूसरी बार सत्ता में बने रहने का ख्वाब देख रही सपा के लिए अपनों में छिड़ी की वर्चस्व एक बार फिर जगजाहिर हो चुकी है। खासकर चाचा और भतीजा एक दूसरे को नीचा दिखाने में कोई कोर कसर नहीं छोड रहे।
मंगलवार को तो यूपी की राजनीति में भूचाल आ गया है। मुलायम ने जैसे ही अखिलेश को प्रदेशाध्यक्ष से हटाकर शिवपाल यादव को जिम्मेदारी दी तो कुछ देर बाद ही भतीजे अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल यादव का कद घटाकर उनसे पीडब्ल्यूडी सहित 7 प्रमुख मंत्रालय वापस ले लिए।
सूत्रों की माने तो अखिलेश के इस कदम से नाराज शिवपाल किसी भी समय कैबिनेट से इस्तीफा दे सकते हैं। यादव परिवार में चल रहे इस गृहयुद्ध शांत करने के लिए मुलायम सिंह भी नसीहत देने से अधिक कुछ नहीं कर पाए। अब उन्होंने इस कलह को सुलझाने के लिए शिवपाल की पत्नी को आगे किया है ताकि अखिलेश औऱ शिवपाल में सुलह हो सके।
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उधर शिवपाल ने सोमवार को भी मुलायम सिंह से बात की और दो टूक कह दिया कि अखिलेश के साथ काम नहीं कर सकते। मुलायम भी खुद स्वीकार कर चुके हैं कि अखिलेश और शिवपाल में नहीं बनती।
दीगर बात यह है कि यादव कुनबे में चल रही यह जंग आने वाले चुनावों में भारी पड़ सकती है। खुद पार्टी के कार्यकर्ता इस बात को स्वीकार कर रहे हैं और वे चाहते है कि पार्टी नेतृत्व हस्तक्षेप कर समस्या का समाधान निकाले।
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समाजवादी पार्टी अंतरकलह कोई नई बात नहीं है लेकिन यह पिछले लोकसभा चुनाव के बाद से काफी बढ़ गई है। लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव के लड़ने के बाद भी यह नहीं मिट सकी। परिणाम था कि मुलाययम सिंह यादव हार जीत का अंतर एक लाखा का आंकड़ा नहीं छू सका था।
उस समय खुद सपा मुखिया ने कहा था कि उनका अपना कुनबा मैदान में नहीं उतरा तो यहां के नेता हरा दिए होते। इसके बाद हुए पंचायत चुनाव में भी पार्टी के भीतर गुटबाजी साफ दिखी।
अब विधानसभा चुनाव सिर पर है और काफी हद तक यह भी साफ हो चुका है कि कौन सी सीट से कौन चुनाव लड़ेगा।
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पार्टी कार्यकर्ताओं का एक जुट करने के लिए सभी विधानसभा क्षेत्रों में कार्यकर्ता सम्मेलन कर रही है। साथ ही समाजवादी विकास यात्रा भी निकाली जा रही है लेकिन इन सारी कवायदों पर गुटबाजी पानी फेर रही है।
सबसे ज्यादा गुटबाजी मुबारकपुर क्षेत्र है जहां पार्टी ने पिछले चुनाव में दूसरे नंबर पर रहे पूर्व जिलाध्यक्ष अखिलेश यादव को दरकिनार कर भाजपा से लड़कर तीसरे पायदान पर रहे पूर्व विधायक राम दर्शन यादव को मैदान में उतारा है।
यहां अखिलेश समर्थक चाहते हैं कि रामदर्शन मैदान से बाहर हो भले ही किसी तीसरे को टिकट मिल जाए। यह सीट बसपा के खाते में है। इनकी आपसी जंग यहां बसपा को मजबूती प्रदान कर रही है। कारण कि बसपा विधायक गुड्डू जमाली मुस्लिम हैं और यह क्षेत्र भी मुस्लिम बाहुल्य है।
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मेहनगर में भी दो गुट साफ दिख रहा है। विधायक और महिला प्रकोष्ठ की जिलाध्यक्ष के बीच विवाद हाल में खुल कर सामने आ चुका है। विधायक बृजलाल ने अध्यक्ष पर टिकट कटवाने की साजिश का आरोप लगाया था।
यहीं नहीं एमएलसी चुनाव के दौरान भी बृजलाल और फूलपुर विधायक श्याम बहादुर ऊर्जा राज्यमंत्री से भिड़ गए थे। उस समय दोनों ही नेहरूहाल में पार्टी की बैठक छोड़कर चले गए थे।
सदर में गुटबाजी किसी से छिपी नहीं है। वन मंत्री और उनके भतीजे में छत्तीस का आंकड़ा साफ दिख रहा है। प्रमोद यादव तो मंत्री के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए बसपा से टिकट का प्रयास भी कर चुके है। यह स्थिति कहीं से भी सपा के लिए ठीक नहीं मानी जा रही है।
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राजनीतिक शह और मात के अलावा यादव परिवार में अहम की लडाई भी परवान पर है। मुलायम सिंह की कथित सहमति से शिवपाल ने बाहुबली अंसारी बंधुओं को पार्टी में शामिल कराया था। लेकिन, 24 घंटे में ही अखिलेश ने विलय में अहम भूमिका निभाने वाले मंत्री को न सिर्फ बर्खास्त किया बल्कि ऐसा दबाव बना दिया कि कौमी एकता दल का विलय रद्द करना पड़ा।
इसके कुछ दिनों बाद ही सात जुलाई को जब शिवपाल के करीबी दीपक सिंघल यूपी के मुख्य सचिव बने तो लगने लगा कि चाचा भतीजे में मिलाप हो गया है दो माह में ही सिंघल को पद से हटाकर अखिलेश ने फिर चाचा शिवपाल को मात दे दी। बता दें कि सिंघल को लाने में अहम भूमिका अमर सिंह की भी थी।
अखिलेश यादव अमर सिंह को समाजवादी पार्टी में लाने के पक्ष में नहीं थे, लेकिन अमरसिंह को पार्टी में न केवल लाया गया बल्कि उन्हें राज्यसभा सांसद बनवाने में शिवपाल की महत्वपूर्ण भूमिका रही। यह बात भी अखिलेश को खटकती रही है।
यादव परिवार का राजनीतिक समीकरण
यादव परिवार में अब दो गुट बन चुके हैं। इसमें से एक गुट की कमान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पास है तो दूसरे का नेतृत्व शिवपाल यादव कर रहे हैं जो कि मुलायम सिंह यादव के भाई और अखिलेश यादव के सगे चाचा हैं। मुलायम के परिवार में उनके अलावा 5 और सांसद हैं। लेकिन वे सभी अखिलेश के पक्ष में हैं।
एक तरफ अखिलेश की पत्नी डिंपल, चाचा रामगोपाल यादव, रामगोपाल के बेटे अक्षय, मुलायम के भतीजे धर्मेंद्र यादव और मुलायम के पोते और लालू यादव के दामाद तेजप्रताप यादव हैं वहीं दूसरी तरफ शिवपाल यादव के खेमे में मुलायम सिंह के दूसरे कारोबारी बेटे प्रतीक यादव और उनकी पत्नी अपर्णा यादव हैं।
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