नई दिल्ली। पूर्व वित्त मंत्री व भाजपा के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा ‘अर्थव्यवस्था के सुस्त पड़ने के मुद्दे पर’ केंद्र सरकार के खिलाफ अपने रुख पर मजबूती से जमे हुए हैं।
गुरुवार को भी उन्होंने सरकार पर हमला जारी रखा और कहा कि अर्थव्यवस्था के हाल पर उन्हें अपनी बात सार्वजनिक रूप से इसलिए कहनी पड़ी क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा ने उनके लिए दरवाजे बंद कर दिए।
यशवंत सिन्हा को यह भी लगता है कि अगर उनके बेटे और केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा को उनके विचारों के खिलाफ खड़ा करने के लिए अखबार में लेख लिखवाया गया है तो यह एक बेटे को पिता के सामने खड़ा करने का बहुत घटिया तरीका है।
सिन्हा ने कहा कि अगर जयंत उनके द्वारा उठाए गए सवाल का जवाब देने के लिए उपयुक्त हैं तो फिर उन्हें (जयंत को) वित्त मंत्रालय से क्यों हटाया गया।
जयंत का लेख गुरुवार को टाइम्स आफ इंडिया में प्रकाशित हुआ जिसमें उन्होंने पिता यशवंत सिन्हा का नाम लिए बगैर लिखा कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अर्थव्यवस्था में बदलाव के लिए मूलभूत ढांचागत सुधारों को देख नहीं सके हैं। मोदी ने जयंत सिन्हा के लेख को रिट्वीट किया।
अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर लगातार अपनी ही पार्टी को घेरे में लेते हुए यशवंत सिन्हा ने गुरुवार को कहा कि वित्त मंत्री अरुण जेटली गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) की समस्या को सुलझाने में विफल रहे हैं। उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था की ‘गड़बड़ी’ के लिए विपक्षी कांग्रेस को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
उन्होंने कहा कि अगर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम जैसे लोग अर्थव्यवस्था पर कुछ बोलते हैं, तो सरकार को उन्हें सुनना चाहिए।
उन्होंने कहा कि नोटबंदी और जीएसटी से अर्थव्यवस्था बुरी तरह से चरमरा गई, जो कि बीती छह तिमाही से धीरे-धीरे कम हो रही थी। सिन्हा ने कहा कि हालिया तिमाही में वृद्धि दर गिरने से वे राष्ट्रहित में बोलने के लिए मजबूर हुए।
उन्होंने कहा कि मैं हताश (फ्रस्टेट) नहीं हूं। मैंने जानबूझकर यह किया। मुझे राष्ट्रीय मुद्दे पर बोलना था। मैं राष्ट्रीय मुद्दे पर चुप नहीं रह सकता।
उन्होंने कहा कि पिछले साल वह कश्मीर में अशांति के समय फैक्ट फाइंडिंग टीम के साथ जम्मू एवं कश्मीर गए थे और प्रधानमंत्री से मिलना चाहा था। उसके बाद ’10 माह बीत गए मुझे अभी तक मिलने के लिए समय नहीं दिया गया।’
उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था में लगातार सुस्ती आ रही थी, लेकिन मैं कुछ नहीं बोल रहा था। हम पूर्ववर्ती सरकार को इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते क्योंकि हम पिछले 40 महीने से सत्ता में हैं और इसे सही करने के लिए हमें पूरा अवसर मिला है।
सिन्हा ने एक समाचार चैनल से कहा कि सरकार को पहला गंभीर कार्य एनपीए मुद्दे को सुलझाने का करना चाहिए जिसने बैंकिंग सेक्टर को संकट में डालकर अर्थव्यवस्था की गति को रोक दिया है। सरकार बने 40 महीने गुजर चुके हैं और खराब ऋण संकट के खत्म होने के कोई आसार नहीं दिख रहे हैं।
उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था ऐसी चीज नहीं है जिसका निर्माण एक रात में हो जाए और न ही किसी के पास जादू की छड़ी है। हमें अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में चार वर्षों (वाजपेयी सरकार के समय में) का समय लगा था।
सिन्हा ने कहा, मैं सिर्फ एक तिमाही के आधार पर अर्थव्यवस्था को नहीं आंक रहा हूं। अर्थव्यवस्था पिछले छह तिमाही से गिर रही है। मुझे आशा है कि सरकार अब जागेगी और अर्थव्यवस्था नई रफ्तार पकड़ेगी।
उन्होंने कहा कि सरकार नोटबंदी और जीएसटी के प्रभावों का विस्तृत आंकलन करने में विफल रही है।
यह पूछे जाने पर कि सरकार की तरफ से गृहमंत्री राजनाथ सिंह और पीयूष गोयल अर्थव्यवस्था का बचाव कर रहें हैं। इस पर उन्होंने कहा कि लगता है राजनाथ सिह और पीयूष गोयल मुझसे ज्यादा अर्थव्यवस्था जानते हैं। वे सोचते हैं कि भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है। मैं विनम्रता के साथ उनसे असहमति व्यक्त करता हूं।
नकदीरहित अर्थव्यवस्था के विचार को सही ठहराते हुए सिन्हा ने कहा कि लेकिन इसे हासिल करने के लिए अचानक नोटबंदी को थोपा जाना गलत था।
उन्होंने कहा, यहां तक की विकसित देश भी अपनी अर्थव्यवस्था में 40 प्रतिशत नकदी का प्रयोग करते हैं। भारत एक विकासशील देश है, जहां कृषि अर्थव्यवस्था एक नकदी आधारित सेक्टर है। इससे कई लोगों को रोजगार मिलता है। अगर आप अचानक नकदी रहित प्रणाली थोपेंगे तो लोगों में घबराहट पैदा होगी।
सिन्हा ने कहा कि मैं जीएसटी का समर्थक रहा हूं लेकिन सरकार इसे जुलाई में लागू करने के लिए बहुत जल्दबाजी में थी।
पूर्व मंत्री को भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा से भी समर्थन मिला। शत्रुघ्न सिन्हा ने उन्हें ‘एक सच्चा नेता और समय पर खरा उतरा बुद्धिमान व्यक्ति बताया’ और कहा कि उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति का आईना दिखाया है।