पृथ्वी के गर्भ से जन्मी सीता माता भगवान श्रीराम के साथ विवाह के बंधन में बंध गई। भगवान श्रीराम के जीवन चरित्र को बतातीं अलग-अलग भाषाओं में सैकड़ों रामायण लिखी गईं हैं। लेकिन धार्मिक दृष्टि से संस्कृत भाषा में महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित ‘रामायण’ और गोस्वामी तुलसीदास द्वारा अवधी भाषा में रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ ही श्रेष्ठ मानी जाती है। आज आप को हम सीता जी की कुछ खास बातें बताएंगे।
1.वाल्मीकि रामायण में लिखा है, ‘जब राजा जनक यज्ञ की भूमि तैयार करने के लिए भूमि को हल से जोत रहे थे, उसी समय उन्हें भूमि से एक कन्या प्राप्त हुई। हल की नुकीले हिस्से को सीत कहते हैं इससे टकराने पर स्वर्ग पेटी में सीता जी मिलीं इसलिए उनका नाम सीता रखा गया।’
2.गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस में उल्लेख है, ‘भगवान श्रीराम ने सीता जी के स्वयंवर में शिव धनुष को उठाया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया, जबकि वाल्मीकि रामायण में सीताजी के स्वयंवर का वर्णन नहीं है।’
3.मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को श्रीराम और सीता का विवाह हुआ था। हर साल इस तिथि पर श्रीराम-सीता के विवाह, विवाह पंचमी का पर्व मनाया जाता है। यह प्रसंग श्रीरामचरित मानस में मिलता है।
4.श्रीरामचरित मानस के अनुसार वनवास के दौरान श्रीराम के पीछे-पीछे सीता चलती थीं। चलते समय सीता इस बात का विशेष ध्यान रखती थीं कि भूल से भी उनका पैर श्रीराम के चरण चिह्नों (पैरों के निशान) पर न रखे जाएं। श्रीराम के चरण चिह्नों के बीच-बीच में पैर रखती हुई सीताजी चलती थीं।
5.जिस दिन रावण सीता का हरण कर अपनी अशोक वाटिका में लाया। उसी रात भगवान ब्रह्मा के कहने पर देवराज इंद्र माता सीता के लिए खीर लेकर आए, पहले देवराज ने अशोक वाटिका में उपस्थित सभी राक्षसों को मोहित कर सुला दिया। उसके बाद माता सीता को खीर अर्पित की, जिसके खाने से सीता की भूख-प्यास शांत हो गई। ये प्रसंग वाल्मीकि रामायण में मिलता है जबकि श्रीरामचरितमानस में नहीं है।
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