पाली। पाली शहर में बुधवार शाम परंपरागत तरीके से शहर में कई स्थानों पर होलिका दहन हुआ। इस मौके पर लोग होलिका स्थलों पर उमडे।
भेरुधाट पर तो होलिका को दुल्हन की तरह सजाया गया। स्थानीय निवासियों ने चौराहे को रंगोली से सजाया। हर तरफ होली के गीतों की गूंज सुनाई पड रही थी।
होली के दिन मिल जाते हैं रंगों में रंग मिल जाते हैं, होली खेले रघुबीरा अवध में होली खेले रघुबीरा जैसे गानें को बीच होली की राम राम सा के स्वर भी सुनाई दे रहे थे। रमेश सिंह कर्णावट, चेतन्यकृष्ण सिंह राठौड़, गजेन्द्र सिंह राठौड़, मोन्टी सिंह कर्णावट, जयशंकर त्रिवेदी, पूर्व सभापति एवं पार्षद राकेश भाटी, बाबूलाल बोराणा, श्यामजी, कमलेश, श्रेयांस, सीमा त्रिवेदी, सबिता सिंह राठौड़ आदि ने होलिका की पूजा अर्चना की।
गुर्जरगौड़ समाज पाली के जिला अध्यक्ष एवं श्रीगणेश शिक्षण समूह के संस्थापक मास्टर शंकरलाल जोशी ने बताया कि होली का महापर्व रंगों का त्यौहार हैं, जो सभी भारतीयों के बीच सामाजिक समरसता बढ़ाने वाला और देश को एकसूत्र में बांधने वाला हैं। हालांकि वर्तमान की भागमभाग भरी जिंदगी के चलते लोगों में वैसा उल्लास नहीं रहा जैसा कुछ दशकों पहले हुआ करता था, फिर भी त्यौहार ही हैं जो समाज को बांधे रखे हैं।
पूर्णिमा को होलिका दहन करने का उद्देश्य यह हैं कि हम अपनी बुराईयों को होलिका की तरह दहन करे और अच्छाइयों को प्रह्लाद की तरह जीवित रखे। एकम को धुलंडी के दिन रंगों में रंगकर जीवन में खुशियों के आगमन का प्रारम्भ करते हैं। इस दिन समाज की गैर घरों में जाती हैं। नवजात शिशुओं की ढूंढ करके उनकी नज़र उतारते हैं ताकि उनका जीवन सफल हो।
शहर के हृदय स्थल सूरजपोल पर गांवशाही होली दहन किया गया, इसमें सभी जातियों ने भाग लिया। महावीर नगर में मुरली मनोहर बोडा, योगेन्द्र नाथ, निहालचंद जैन, नव्य शर्मा, तृप्ति चतुर्वेदी, काष्वी पाण्डेय , ज्योतिष्णा शर्मा, आरव शर्मा, गजेन्द्र नाथ आदि ने पूजा अर्चना की।
आइसक्रीम और प्रसाद का वितरण महावीर नगर विकास समिति ने किया। सुदर्शन सिंह उदावत बर ने कहा कि हमारें क्षेत्र हिम्मत नगर में सभी पुरुष महिलाएं मलिकर होली की पूजा करते हैं। इसके बाद प्रसाद वितरण की व्यवस्था रहती है।
इसी प्रकार शिवाजी नगर विकास समिति, सोसायटी नगर, सिंधी कॉलोनी, रामदेव रोड, आषापुरा नगर, घरबाला जाब, मंडिया रोड, गांधीनगर, पुनायता रोड, आदर्ष नगर, बापू नगर, टैगोर नगर, गायत्री नगर आदि में भी होलिका दहन किया गया।
गजानंद मार्ग पर जीनगर समाज का सामूहिक होलिका दहन किया गया, उदय चंद खत्री ने वताया कि हमारे समाज में सैकड़ों वर्षो से यह परंपरा चली आ रही हैं कि सभी समाजबंधु एक जगह एकत्रित होकर होलिका की पूजा करते हैं। प्रवक्ता डाक्टर मनोज पंवार ने वताया कि होलिका दहने के अगले दिन सभी छाटे बड़े भाई बंधु हिंगलाज माताजी मंदिर में एकत्रित होकर गैर के रुप में समाज के लोग मिल कर सभी समाज बंधुओं के घर जाते हैं। नवजात बच्चों के ढूंढ करते हैं। गैर का आयोजन शंकरलाल सोनगरा, दुर्गाराम बोरवाल, मुन्नालाल पंवार, गजेन्द्र खत्री, प्रेमचंद गोयल के नेतृत्व में होगा।
आनंदीलाल चतुर्वेदी ने कहा कि होली वाले दिन गली मुहल्लों में ढोल मजीरे बजते सुनाई देते हैं। इस दिन लोग लोग समूह मंडलियों में मस्त होकर नाचते गाते हैं। दोपहर तक सर्वत्र मस्ती छाई रहती है। कोई नीले पीले वस्त्र लिए घूमता है तो कोई जोकर की मुद्रा में मस्त है। बच्चे पानी के रंगों में एक दूसरे को नहलाने का आनंद लेते हैं। गुब्बारों में रंगीन पानी भरकर लोगों पर गुब्बारें फेंकना भी बच्चों का प्रिय खेल हो जा रहा है। बच्चे पिचकारियों से भी रंगों की वर्षा करते दिखाई देते हैं। अतः इससे मस्त उत्सव ढूंढना कठिन है और इसलिए यह मेरा प्रिय त्योहार है।
शिक्षाविद् विष्णुप्रसाद चतुर्वेदी ने होली को लेकर अपने मन की बात कुछ इस प्रकार कही।
यूं हसरतों के दाग मंहगाई ने धो दिए खुद से खुद की बात कही और रो लिए।
घर से चले थे हम तोए मिर्च की तलाश में सस्ते मिले टमाटर तो वो ही ले लिए।
खाली हुआ तो क्या यह मेरा पर्स ही तो है खुशी से संभालिए या रद्दी में तोलिए
चुक चुके हम तो उन्होंने ये कहा क्यों घबराए से हो अजी एफडी को तोड़िए।
चेतन्यकृष्ण सिंह राठौड एवं सबिता सिंह राठौड ने बताया कि होली को लेकर एक पौराणिक कथा भी जुड़ी हुई है। हिरण्यकश्यप एक राक्षस राजा था। उनके पुत्र प्रहलाद विष्णु भक्त निकला। बार बार बोलने पर भी प्रह्लाद विष्णु बन जाता थ। हिरण्य कश्यम क्रोधित हुआ एवं कई तरह उनको सजा दी लेकिन प्रह्लाद को भगवान की रक्षा से कुछ भी तकलीफ नहीं हुई।
हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मार डालने के लिए बहन होलिका को नियुक्त किया था। होलिका के पास एक ऐसी चादर थी जिसे ओढ़ने पर व्यक्ति आग के प्रभाव से बच सकता था। होलिका ने उस चादर को ओढ़कर प्रहलाद को गोद में ले लिया और अग्नि में कूद पड़ी।
वहां दैवीय चमत्कार हुआ। चादर प्रह्लाद के ऊपर गिर पडी। होलिका आग में जलकर भस्म हो गई परंतु विष्णुभक्त प्रहलाद का बाल भी बांका न हुआ। भक्त की विजय हुई और राक्षस की पराजय। उस दिन सत्य ने असत्य पर विजय घोषित कर दी। तब से लेकर आज तक होलिका दहन मनाया जाता है।
शैलेन्द्र जोशी ने होली के बारे वताया कि होली का उत्सव दो प्रकार से मनाया जाता है। कुछ लोग रात्रि में लकड़ियां एकत्र कर उसमे आग लगा देते हैं और समूह में होकर गीत गाते हैं। आग जलाने की यह प्रथा होलिका दहन की याद दिलाती है। ये लोग रात में आतिशबाजी आदि चलाकर भी अपनी खुशी प्रकट करते हैं।
होली मनाने की दूसरी प्रथा आज सारे समाज में प्रचलित है। होली वाले दिन लोग प्रातः काल से दोपहर 12 बजे तक अपने हाथों में लाल, हरे, पीले रंगों का गुलाल हुए परस्पर प्रेमभाव से गले मिलते हैं। इस दिन किसी प्रकार का भेदभाव नहीं रखा जाता। किसी अपरिचित को भी गुलाल मलकर अपने ह्रदय के नजदीक लाया जाता है।