नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को एक आदेश जारी कर कहा कि बिना उसकी अनुमति किसी भी आपराधिक मामले में राज्यों द्वारा आरोपी की संपत्ति नहीं गिराई जाएगी।
न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने याचिकाकर्ता जमीयत उलमा ए हिंद की याचिका पर यह आदेश पारित करते हुए कहा कि ऐसी कार्रवाई (आपराधिक मामले के आरोपी की अचल संपत्ति गिराना) संविधान की भावना के विरुद्ध है।
पीठ ने दो सितंबर के उसके आदेश के बाद दिए गए बयानों पर भी आपत्ति जताई, जिसमें उसने बुलडोजर के इस्तेमाल पर दिशा-निर्देश बनाने का संकेत दिया गया था। पीठ ने कहा कि उसके आदेश के बाद भी ऐसे बयान आए हैं कि बुलडोजर का इस्तेमाल जारी रहेगा।
शीर्ष अदालत ने कहा कि दो सितंबर के आदेश के बाद भी इस पर जोरदार बहस हुई है। क्या हमारे देश में ऐसा होना चाहिए? क्या चुनाव आयोग को इस पर ध्यान देना चाहिए? हम निर्देश तैयार करेंगे। पीठ ने कहा कि हम स्पष्ट कर दें कि हमारे निर्देश होंगे। उन्हें दिशा-निर्देश कहा जा रहा है। अगली तारीख (एक अक्टूबर) तक अदालत की अनुमति के बिना ध्वस्तीकरण पर रोक होनी चाहिए।
शीर्ष अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि सार्वजनिक सड़क, फुटपाथ, रेलवे लाइन, जल निकायों आदि पर कोई अनधिकृत निर्माण होने पर उसका यह आदेश लागू नहीं होगा। पीठ ने कहा कि हमने स्पष्ट कर दिया है कि हम अनधिकृत निर्माण के बीच में नहीं आएंगे, लेकिन यह ध्यान रहे कि कार्यपालिका न्यायाधीश नहीं हो सकती।
शीर्ष अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए एक अक्टूबर की तारीख मुकर्रर करते हुए कहा कि अगली तारीख तक, जब तक वैधानिक रूप से अनुमति न हो, तब तक कोई तोड़फोड़ नहीं की जाएगी।
पीठ ने गत 02 सितंबर को कहा था कि वह बुलडोजर न्याय के विवादास्पद मुद्दे से निपटने के लिए पूरे भारत के लिए एक दिशा-निर्देश बनाएगी, जिसका इस्तेमाल कुछ राज्य सरकारें किसी व्यक्ति पर अपराध का आरोप लगने के तुरंत बाद उसके घर या दुकान को ध्वस्त करने के लिए करती हैं।