नई दिल्ली। लोकसभा में बुधवार को कांग्रेस ने अपने 26 दल वाले इंडिया गठबंधन की ओर से केन्द्र में नौ साल से सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की नरेन्द्र मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया जिसे लोकसभा अध्यक्ष ने विचारार्थ स्वीकार कर लिया।
कांग्रेस की ओर से यह प्रस्ताव सदन में पार्टी के उपनेता गौरव गोगोई ने प्रस्तुत किया। शून्यकाल में आवश्यक दस्तावेज पटल पर रखवाने के बाद अध्यक्ष ओम बिरला ने सदन को सूचित किया कि उन्हें गोगोई की ओर से मंत्रिपरिषद में अविश्वास का एक प्रस्ताव प्राप्त हुआ है। वह इस प्रस्ताव को अनुमति प्रदान करते हैं। लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि सदन में सभी नेताओं से विचार-विमर्श करके वह अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के लिए समय निर्धारित करेंगे।
मणिपुर की घटनाओं को लेकर संसद में प्रधानमंत्री के बयान की मांग को लेकर पांच दिनों से हंगामा कर रहे विपक्षी गठबंधन ने अपने तरकश के सबसे घातक अस्त्र को निकाला है। कांग्रेस का मानना है कि अविश्वास प्रस्ताव भले ही संख्या बल के संतुलन के कारण पारित नहीं हो पाए लेकिन इससे ‘देश’ की भावना का प्रकटीकरण होगा।
गोगोई ने बाद में प्रस्ताव को लेकर संवाददाताओं के सवालों के जवाब में कहा कि यह सही है कि सदन में संख्याबल के हिसाब से प्रस्ताव के पारित होने की संभावना से हम वाकिफ हैं लेकिन भारत हमारे साथ है, भारत ‘इंडिया’ (गठबंधन) के साथ है।
अविश्वास प्रस्ताव के लाने के लिए नियमानुसार कांग्रेस एवं इंडिया गठबंधन के दलों के 50 से अधिक सांसदों का समर्थन हासिल किया गया है। लोकसभा की नियमावली 198 के मुताबिक़ सांसदों को लिखित नोटिस दिन में 10 बजे से पहले दिया गया था जिसे अध्यक्ष ने बाद में सदन में पढ़ा। नियम के मुताबिक अध्यक्ष को नोटिस स्वीकार किए जाने के 10 दिन के भीतर तारीख़ आवंटित करनी होगी। शाम तक अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा की तारीख की कोई सूचना नहीं आई।
यह पहली बार नहीं है जब विपक्ष मोदी सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव लाया है। इससे पहले 20 जुलाई 2018 को मोदी सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। मोदी सरकार के वर्तमान कार्यकाल में यह पहली बार है। राजग के पास अभी कुल 325 सांसद हैं और अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में वोट करने वाले महज़ 126 सांसद हैं। राजग को अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ वोटों की संख्या में 350 से अधिक होने की उम्मीद है।
राजग के पास संसद के दोनों सदनों में बहुमत है लेकिन अविश्वास प्रस्ताव को विपक्षी गठबंधन के एकजुटता प्रदर्शन के रूप में देखा जा रहा है। दरअसल विपक्ष मांग कर रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी संसद में आकर मणिपुर पर बयान दें। इसी बीच भारतीय जनता पार्टी के संसदीय दल की बैठक में मंगलवार को माेदी ने इंडिया गठबंधन पर करारा प्रहार करते हुए इस गठबंधन की तुलना ईस्ट इंडिया कंपनी और इंडियन मुजाहिद्दीन से की थी। इससे विपक्ष में तीखी प्रतिक्रिया हुई और इसके जवाब में ही संभवत: अविश्वास प्रस्ताव लाने का फैसला हुआ।
अविश्वास प्रस्ताव पर गुरुवार से हो चर्चा शुरु : कांग्रेस
कांग्रेस ने बुधवार को कहा कि मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव अकेले कांग्रेस लेकर नहीं आई बल्कि यह इंडिया गठबंधन के सभी घटक दलों की ओर से लाया गया एक सामूहिक प्रस्ताव है और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को इस पर गुरुवार से ही चर्चा आरंभ करवानी चाहिए।
कांग्रेस के लोकसभा सदस्य मनीष तिवारी ने आज पार्टी मुख्यालय में संवाददाता सम्मेलन में यह जानकारी देते हुए बताया कि 84 दिन से मणिपुर जल रहा है और वहां के हालात बहुत खराब हो चुके हैं इसलिए इसलिए मोदी सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव लाने की ज़रूरत महसूस हुई है। उनका कहना था कि इंडिया गठबंधन नियम 198 के तहत अविश्वास प्रस्ताव लाया है और इस पर होने वाली चर्चा का जवाब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देना चाहिए।
उन्होंने कहा कि मणिपुर में पिछले 84 दिन से हालात बेहत ख़राब हो गए हैं और क़ानून-व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है। राज्य में समुदायों में बंट गया है और उनके बीच जातीय संघर्ष चल रहा है। वहां सरकार जैसी कोई चीज़ नहीं है। राज्यपाल अपने पास उपलब्ध संवैधानिक साधनों का उपयोग नहीं कर रही हैं।
तिवारी ने कहा कि सदन की परंपरा रही है कि जब लोकसभा अध्यक्ष द्वारा अविश्वास प्रस्ताव मंज़ूर कर लिया जाता है तो अन्य सभी विधायी कामकाज रोककर प्राथमिकता से उस पर चर्चा की जाती है। उन्होंने कहा कि गुरुवार को ही प्रस्ताव पर चर्चा शुरू कर दी जानी चाहिए और प्रधानमंत्री को अविश्वास प्रस्ताव का जवाब देना चाहिए और दोनों सदनों में मणिपुर पर विस्तृत बयान देना चाहिए क्योंकि कई सवालों के जवाब केवल सरकार का शीर्ष नेतृत्व ही दे सकता है। उन्होंने सवाल किया कि अगर प्रधानमंत्री संसद के बाहर वक्तव्य दे सकते हैं तो वे संसद के अंदर बोलने से क्यों हिचकिचा रहे हैं।