कश्मीर के प्रमुख नेताओं ने अजमेर शरीफ दरगाह के सर्वेक्षण की निंदा की

श्रीनगर। कश्मीर के प्रमुख नेताओं ने राजस्थान की एक अदालत की ओर अजमेर शरीफ दरगाह के सर्वेक्षण की मांग करने वाली याचिका पर नोटिस जारी करने के एक दिन बाद गुरुवार को गंभीर चिंता व्यक्त की।

पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने दावा किया कि मुस्लिम धार्मिक स्थलों को निशाना बनाने से और अधिक रक्तपात हो सकता है। उन्होंने एक्स पर कहा कि भारत के एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश की बदौलत भानुमती का पिटारा खुल गया है, जिससे अल्पसंख्यक धार्मिक स्थलों के बारे में विवादास्पद बहस छिड़ गई है।

वर्ष 1947 में मौजूद यथास्थिति को बनाए रखने के उच्चतम न्यायालय के फैसले के बावजूद, उनके फैसले ने इन स्थलों के सर्वेक्षण का मार्ग प्रशस्त किया है, जिससे हिंदुओं और मुसलमानों के बीच तनाव बढ़ सकता है।

मुफ्ती ने पूछा कि उत्तर प्रदेश के संभल में हाल ही में हुई हिंसा इस फैसले का सीधा परिणाम है। पहले मस्जिदों और अब अजमेर शरीफ जैसे मुस्लिम धार्मिक स्थलों को निशाना बनाया जा रहा है, जिससे और अधिक रक्तपात हो सकता है। सवाल यह है कि विभाजन के दिनों की याद दिलाने वाली इस सांप्रदायिक हिंसा की जिम्मेदारी कौन लेगा?

गौरतलब है कि राजस्थान की एक अदालत ने बुधवार को प्रसिद्ध अजमेर शरीफ दरगाह के सर्वेक्षण की मांग करने वाली याचिका पर केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) और अजमेर दरगाह समिति को नोटिस जारी किया। यह याचिका हिंदू सेना प्रमुख विष्णु गुप्ता ने दायर की थी।

पीडीपी प्रमुख ने कहा कि महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और मौलाना आज़ाद ने जिस भारत की कल्पना की थी, वह नफरत, भय और विभाजन से टूट रहा है। उन्होंने कहाकि यह हिंदुओं या मुसलमानों के बारे में नहीं है। यह भारत के विविध धर्मों और साझा विरासत की भूमि के विचार के बारे में है जिसे व्यवस्थित रूप से खत्म किया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि जब हिंसा भड़कती है तो दिहाड़ी मजदूर, छोटे दुकानदार, किसान और गृहिणी सबसे ज्यादा पीड़ित होते हैं। बच्चे अपनी मासूमियत खो देते हैं, परिवार प्रियजनों को खो देते हैं और समुदाय विश्वास खो देते हैं। हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए किस तरह की विरासत छोड़ रहे हैं?

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