जयपुर। राजस्थान की राजधानी जयपुर में जयपुर विकास प्राधिकरण (जेडीए) द्वारा झाड़खंड तिराहे से दो सौ फीट बाईपास के बीच सड़क को चौड़ा करने के लिए की गई कार्रवाई पर स्थानीय निवासियों एवं व्यापारियों ने सवाल खड़ा करते हुए इसे गलत एवं तानाशाहीपूर्ण की गई कार्रवाई बताया है।
इस मामले को लेकर गुरुवार को यहां पूर्व विधायक डा परम नवदीप सिंह, पूर्व पुलिस अधिकारी नवदीप सिंह एवं व्यापार मंडल खातीपुरा के अध्यक्ष भवानी सिंह राठौड़ ने प्रेस कांफ्रेस में यह सवाल खड़ा करते हुए इस मामले में भेदभाव बरतने का आरोप लगाया।
उन्होंने बताया कि जेडीए की बिना नियम एवं बिना किसी पीड़ित पक्ष को सुने एकतरफा एवं तानाशाहीपूर्ण कार्यवाही करते हुए लोगों के आसियाने उजाड़ दिए। उन्होंने कहा कि न्यायालय के आदेश की पालना करने का हवाला दिया जा रहा है, क्या हाईकोर्ट ने वास्तव में 160 फीट चौड़ी सड़क का आदेश दिया था।
जेडीए ने कहा है 21 नवंबर 2024 के उच्च न्यायालय के आदेश की पालना में अधिसूचना जारी की गई थी जबकि सच्चाई यह है कि 29 नवंबर 2024 को उच्च न्यायालय ने अपने पहले के आदेश को निरस्त कर दिया था। उस आदेश के खिलाफ कोई अपील भी नहीं की गई। इसके बावजूद जेडीए पुराने आदेश का हवाला देकर कार्रवाई करती रही, जिससे लोगों में भ्रम और आक्रोश है।
उन्होंने बताया कि जेडीए द्वारा सड़क के दोनों ओर पहले लाल निशान लगाए गए जब विरोध हुआ तो रुक गए और बाद में फिर पीले निशान लगाए गए, जिनमें 15 से 20 फीट तक का अंतर पाया गया। स्थानीय निवासियों का सवाल है कि जब दोनों ही निशान जेडीए ने लगाए, तो इतना अंतर क्यों है। इससे स्पष्ट है कि जेडीए के पास सड़क का मध्य बिंदु निर्धारित करने का कोई ठोस मापदंड नहीं है।
डा परम नवदीप सिंह ने कहा कि सरकार का यह निर्णय असंवेदनशील और तानाशाहीपूर्ण है। जनता को बिना सुने, उनकी रोजी-रोटी छीन लेना अन्याय है। हम इस मुद्दे को विधानसभा तक उठाएंगे और पीड़ित लोगों न्याय दिलाएंगे।
व्यापार मंडल खातीपुरा के अध्यक्ष भवानी सिंह राठौड़ ने कहा कि हमारे व्यापार और परिवार उजड़ रहे हैं। सरकार ने हमारी पीड़ा नहीं सुनी। बिना मुआवजा दिए दुकानें और घर गिराए जा रहे हैं। यह लोकतांत्रिक व्यवस्था का अपमान है।
नवदीप सिंह ने कहा कि स्थानीय प्रशासन को चाहिए कि कानून का पालन करते हुए पीड़ित पक्षों को सुने और समाधान निकाले। बिना निष्पक्ष जांच के कार्रवाई से जनता का विश्वास उठ जाता है।
पीड़ित एवं एडवोकेट सुरेश कुमार मिठारवाल ने कहा कि यह पूरा मामला कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन है। यदि हमारे पास स्वामित्व के दस्तावेज हैं और कोई अधिग्रहण नहीं हुआ है, तो हम अवैध कब्जेदार कैसे हो सकते हैं, जेडीए को इस पर स्पष्ट जवाब देना चाहिए। उन्होंने कहा कि जेडीए को विभिन्न लोगों द्वारा नोटिस और स्वामित्व के दस्तावेज भेजे गए लेकिन जेडीए ने पीड़ित पक्ष की कोई बात नहीं सुनी और नहीं नोटिस का जवाब दिया गया।