राम मंदिर के पुजारी आचार्य सत्येन्द्र दास को सरयू में दी जल समाधि

अयोध्या। श्रीरामजन्मभूमि मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास के पार्थिव शरीर को गुरुवार को सरयू नदी में जल समाधि दी गई।

पुजारी की अंतिम यात्रा उनके रामघाट स्थित सत्यगोपाल धाम मंदिर से गाजे-बाजे संग निकाली गई। जो रामनगरी के मार्गों से होते हुए सरयू नदी के किनारे शमशान घाट पहुंची। जहां पुजारी सत्येंद्र दास को सरयू में जल समाधि दी गई।

राम मंदिर गेट से लेकर हनुमानगढ़ी, लता मंगेशकर चौक तक अंतिम यात्रा निकाली गई, जिसमें अयोध्यावासियों के साथ साधु संत के अलावा मंत्री सतीश शर्मा, महापौर महंत गिरीशपति त्रिपाठी, जगतगुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामदिनेशाचार्य, पूर्व सांसद रामविलास दास वेदांती, श्रीमहंत धर्मदास, महंत गौरीशंकर दास, नाका हनुमानगढ़ी महंत रामदास, अयोध्या विधायक वेदप्रकाश गुप्ता, महंत राघवेश दास वेदांती, महंत भूषण दास, महंत जयराम दास, महंत माधवदास, महंत रामकरन दास, महंत सीताराम दास, नीरज शास्त्री, नारायण मिश्रा, प्रांत संपर्क प्रमुख गंगा सिंह, श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के पदाधिकारी, बब्लू खान, भाजपा नेता परमानंद मिश्रा, पुजारी प्रेम दास हजारों की संख्या में संत-महंत, रामभक्त शामिल रहे।

अंतिम संस्कार उनके शिष्य पुजारी प्रदीप दास ने किया। बुधवार को पुजारी सत्येंद्र दास का लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में इलाज के दौरान निधन हो गया था। उन्हे ब्रेन स्ट्रोक के चलते तीन फरवरी को पीजीआई में भर्ती कराया गया था, जहां 12 फरवरी को उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन से पूरी रामनगरी में शोक की लहर छा गई। निधन से हर कोई गमगीन था। पुजारी के आश्रम पर शोक संवेदना व्यक्त करने वालों का तांता लगा रहा। संत-महंतों से लेकर राजनेता, आम नागरिकों ने उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित कर अंतिम विदाई दी।

पुजारी सत्येंद्र दास का जीवन रामलला के लिए समर्पित रहा। जहां उन्होंने 1992 से लेकर अब तक लगभग 32 वर्षों तक रामलला की सेवा किया। श्रीरामजन्मभूमि के प्रति उनके किए गए योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। वह हमेशा अविस्मरणीय रहेगा। अयोध्या धाम के संतों ने सरकार से उन्हें पद्म विभूषण देने की मांग की है।

सत्येन्द्र दास नेरामलला की सेवा में जीवन समर्पित कर दिया

श्रीरामजन्मभूमि पर विराजमान रामलला के मुख्य पुजारी रहे स्वर्गीय आचार्य सत्येन्द्र दास ने रामलला के टेंट से लेकर मंदिर में विराजमान होने तक की लगातार सेवा की।

आचार्य सत्येन्द्र दास संतकबीरनगर जिले के एक ब्राह्मण परिवार से अयोध्या आए थे और उस समय अभिराम दास के शिष्य बने थे। अभिराम दास ने ही 1949 में मंदिर में रामलला की मूर्ति स्थापित की थी। दास अयोध्या में विवादित ढांचे के ध्वस्त होने से लेकर भव्य मंदिर के निर्माण तक मुख्य पुजारी बने रहे। वह 1993 से रामलला की सेवा में लगे हुए थे। उन्होंने टेंट से लेकर भव्य मंदिर में विराजमान होने तक रामलला की सेवा की थी। 1992 में जब उन्हें रामलला का पुजारी बनाया गया तो उस समय उन्हें मानदेय के रूप में सौ रुपए मिलते थे। वह पिछले 34 साल से रामलला की सेवा में लगे थे।

आचार्य सत्येन्द्र दास अध्यापक की नौकरी छोडक़र रामलला के पुजारी बने थे। उन्होंने 1975 में संस्कृत में आचार्य की डिग्री ली और फिर अयोध्या के संस्कृत महाविद्यालय में सहायक अध्यापक के तौर पर नौकरी शुरू की। इसके बाद मार्च 1992 में श्रीरामजन्मभूमि के रिसीवर की तरफ से उन्हें पुजारी नियुक्त किया गया। हालांकि उन्होंने रामलला के भव्य मंदिर में विराजमान होने के बाद कार्यमुक्त करने का निवेदन भी किया गया लेकिन श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की तरफ से इन्कार कर दिया गया और कहा गया कि वह मुख्य पुजारी बने रहेंगे।

ट्रस्ट की तरफ से यह भी कहा गया कि मंदिर में रामलला की पूजा कर सकते हैं इसके लिए उन्हें किसी संत की बाध्यता नहीं रहेगी और कहा गया कि जब तक यह हैं तब तक उन्हें ट्रस्ट की तरफ से वेतन दिया जाएगा। आचार्य सत्येन्द्र दास निर्भीक विचारधारा के थे। उनके अंदर सच्चाई भरा हुआ था। हाल में श्रीरामजन्मभूमि पर मंदिर के निर्माण में गर्भगृह में काफी बारिश होने पर पानी टपकने की खबर दास ने उठाई थी, तब भी ट्रस्ट ने उनके ईमानदारी और व्यवहार को देखते हुए उनकी पीठ थपथपायी थी, लेकिन बाद में ट्रस्ट के अधिकारियों ने साफ-सफाई देकर उस मामले को शांत कर दिया था।

श्रीरामजन्मभूमि पर जब रामलला टेंट में थे तब मण्डलायुक्त फैजाबाद के रिसीवर से भी रामलला के पूजा-पाठ के लिए वार्तालाप हो जाता था। अदालत के आदेश से रामलला का पूजा-पाठ रिसीवर के माध्यम से चल रहा था। रामलला को टेंट में देखकर अक्सर सत्येन्द्र दास की आंखों में आंसू आ जाते थे। करीब चार साल तक अस्थायी मंदिर में विराजे रामलला की सेवा करते रहे। रामलला की पूजा के लिए उनका चयन बाबरी विध्वंस के नौ माह पहले हुआ था, लेकिन रामलला के प्रति उनके समर्पण व सेवाभाव को देखते हुए उनके स्थान पर अन्य किसी पुजारी का चयन नहीं हुआ।

सत्येन्द्र दास ने रामलला को टेंट में सर्दी, गर्मी और बरसात की मार झेलते हुए देखा है। यह दृश्य देखकर वह रोते थे। एक वह भी दिन थे जब रामलला को साल भर में केवल एक सेट नवीन वस्त्र मिलते थे। अनुष्ठान, पूजन आदि के लिये श्रीरामजन्मभूमि के रिसीवर/मण्डलायुक्त से अनुमति लेनी पड़ती थी।

आचार्य सत्येन्द्र दास ने कुछ दिन पहले कहा था कि मैंने रामलला की सेवा में करीब तीन दशक बिता दिए हैं और आगे जब भी मौका मिलेगा, बाकी जिन्दगी उन्हीं की सेवा में बिताना चाहूंगा। एक मार्च 1992 को रामलला के मुख्य पुजारी के रूप में मुझे नियुक्ति मिली थी। आचार्य सत्येन्द्र दास के साथ सहायक पुजारी के रूप में कार्य करने वाले प्रेमचन्द्र त्रिपाठी बताते हैं कि जब ढांचा विध्वंस हुआ तो आचार्य सत्येन्द्र दास रामलला के विग्रह को सुरक्षित करने में लगे थे।

सुबह के 11 बज रहे थे। मंच लगा हुआ था। नेताओं ने कहा पुजारी जी रामलला को भोग लगा दें और पर्दा बंद कर दें। तब मुख्य पुजारी ने भोग लगाकर पर्दा बंद कर दिया। एक दिन पहले ही कारसेवकों से कहा गया था कि आप लोग सरयू जल लेकर आएं। वहां एक चबूतरा बनाया गया था। ऐलान किया गया कि सभी लोग चबूतरे पर पानी छोड़ें और धोएं। लेकिन जो नवयुवक थे उन्होंने कहा कि यहां हम पानी से धोने नहीं आए हैं। उसके बाद नारे लगने लगे। सारे नवयुवक उत्साहित थे। सभी लोग बैरीकेडिंग तोडक़र विवादित ढांचे पर पहुंच गए और तोडऩा शुरू कर दिया।

इस बीच मुख्य पुजारी सत्येन्द्र दास ने रामलला समेत चारों भाईयों के विग्रह को उठाकर अलग लेकर चले गए और रामलला का कोई नुकसान नहीं होने दिया। 1992 को रामलला के अशोक सिंहल की सहमति के बाद मुख्य पुजारी नियुक्त किए गए थे तो उन्हें सौ रुपए प्रतिमाह वेतन मिलता था। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद उनका वेतन बढ़ाकर अड़तिस हजार पांच सौ रुपए हो गया था। श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने रामलला के प्रति उनकी निष्ठा को देखते हुए उन्हें आजीवन वेतन देने का ऐलान भी कर रखा था।

आचार्य सत्येन्द्र दास से पहले रामलला के मुख्य पुजारी लालदास थे। उस समय रिसीवर की जिम्मेदारी रिटायर्ड जज पर हुआ करती थी। जेपी सिंह बतौर रिसीवर नियुक्त थे। फरवरी 1992 में उनकी मृत्यु हो गई तो रामजन्मभूमि की व्यवस्था का जिम्मा जिला प्रशासन को दिया गया। तब पुजारी लालदास को हटाने की बात हुई। उस समय तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी के सांसद, विहिप के नेताओं और कई संतों के सम्पर्क में आने के बाद सबने पुजारी सत्येन्द्र दास के नाम का फैसला लिया।

1992 में नियुक्ति हो गई, उन्हें अधिकार दिया गया कि वे अपने साथ चार सहायक पुजारी भी रख सकते हैं। ऐसे में मंदिर में बतौर पुजारी सौ रुपए वेतन मिलता था। तीस जून 2007 को अध्यापक के पद से रिटायर हो गए तो 13 हजार रुपए वेतन मिलने लगा। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद उनका वेतन बढ़ाकर 38 हजार 500 रुपये हो गया।

रामलला के मुख्य पुजारी सत्येन्द्र दास के निधन से जिला संत कबीरनगर के पैतृक गांव खर्चा के लोग गमगीन हो गए। खबर सुनने के बाद पैतृक गांव के लोग अयोध्या के लिये रवाना हो गए और उनके दर्शन करने लगे। दास के पिता रामदुलारे एक किसान थे, माता गृहणी थीं। वह अपने पैतृक स्थान खर्चा में शादी-विवाह के मौके पर आया-जाया करते थे।

पारिवारिक सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार पिछले साल एक तेरहवीं में शामिल होने आये थे। ब्रह्मचारी होने के कारण अपने भतीजों के साथ जीवन की खुशियां बांटते रहे। उनके भतीजे रामजन्मभूमि के सहायक पुजारी प्रदीप दास हैं। इन्हीं को वो अपना उत्तराधिकारी बनाया है। राधेश्याम पाण्डेय का कहना है कि हमारी आखिरी मुलाकात 2023 में उनके घर अयोध्या में वशिष्ठ भवन में हुई थी। अब वह हमारे बीच नहीं हैं, बेहद कष्ट की बात है। जब भी हम उनसे मिलते थे तो बड़े प्यार से मिलते थे। वे बहुत असाधारण व्यक्ति थे।