सबगुरु न्यूज-सिरोही। देश में मुख्यमंत्री पद पर रहे एकमात्र नेता होंगे अशोक गहलोत जो अपने समर्थन की एक ऐसी लोकसभा नहीं बना पाए जो उनके बेटे के राजनीतिक भविष्य को संवारने की गारंटी दे सके। 2019 के लोकसभा चुनावों में जोधपुर से बुरी तरह हारने के बाद इस साल जालोर लोकसभा सीट पर भाजपा के एक साधारण कार्यकर्ता से वैभव गहलोत को बडी हार झेलनी पडी।
वैभव गहलोत के हर पोस्टर और होर्डिंग में हाथ जोडे हुए अशोक गहलोत खडे हुए थे तो भाजपा के साधारण कार्यकर्ता ने वैभव गहलोत की जगह अशोक गहलोत में विश्वास जताने में असहमति माना जा रहा है। इस बुरी हार के बाद वैभव गहलोत ने सिरोही में कांग्रेस के नेताओं को धन्यवाद ज्ञापित किया। इसमें उपस्थित कांग्रेस के चेहरों ने ही बता दिया कि आखिर अशोक गहलोत के अनुरोध को ठुकराते हुए वैभव गहलोत को जालोर-सिरोही-सांचौर लोकसभा ने नकार क्यों दिया। वैभव गहलोत के द्वारा आयोजित धन्यवाद सभा से जिले के कांग्रेस के वो अधिकांश नेता और कार्यकर्ता नदारद थे जिन्हें अशोक गहलोत के पांच साल के मुख्यमंत्री काल में तिरस्कृत और बहिष्कृत किया गया। ये इस बात का इशारा था कि अशोक गहलोत ने गोविंदसिंह डोटासरा के साथ सिरोही जिले में कांग्रेस के नेताओं का जो तिरस्कार और बहिष्कार किया सिरोही जिले के कांग्रेसियों ने भी वही बहिष्कार और तिरस्कार लोकसभा चुनावों में वैभव गहलोत को रिटर्न गिफ्ट में दे दिया।
-गहलोत-डोटासरा का बोया वैभव ने काटा
मुख्यमंत्री रहते हुए अशोक गहलोत ने और कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष गोविंदसिंह डोटासरा ने प्रदेश समेत जालोर, सिरोही और सांचौर कांग्रेस की जो दुर्गत की थी उसका खामियाजा वैभव गहलोत को इस चुनाव में झेलना पडां। वैभव गहलोत की धन्यवाद सभा में शामिल कांग्रेस के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं की संख्या और सिर्फ जानेमाने गिनेचुने चेहरे बता रहे थे कि कांग्रेस के उन कांग्रेसी लोगों ने अशोक गहलोत पर विश्वास नहीं किया जिनकी बदहाली अशोक गहलोत ने मुख्यमंत्री रहते हुए और उनके गुट के गोविंदसिंह डोटासरा ने प्रदेशाध्यक्ष रहते हुए की। सिरोही में चंदनसिंह देवडा के द्वारा संयम लोढा का विरोध और जालोर में कांग्रेस में पुखराज पराशर के प्रति असंतोष चुनाव के पहले की बैठक और संभा में चुनाव से पहले ही दिखा था।
-कार्यकर्ताओं को पदों से वंचित किया वैभव को जीत से वंचित किया
अशोक गहलोत के हर कार्यकाल की एक खासियत रही है। वो मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए तमाम सुविधाओं को उपभोग करते रहे लेकिन, उन्हें इस पद पर पहुंचाने वाले कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को सत्ता में भागीदारी से वंचित किए हुए रखे रहे। सिरोही जिले के कांग्रेस कार्यकर्ताओं को अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री कार्यकाल में न सिर्फ लाभ के पदों पर मनोनयन से वंचित रखा। बल्कि कार्यकर्ताओं को जिला संगठन में भी पद नहीं लेने दिये गए।
अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री रहते हुए और उसके बाद भी उनके करीबी प्रदेशाध्यक्ष ने एक साल तक सिरोही जिले की कांग्रेस की कार्यकारिणी तक घोषित नहीं होने दी। इसके पीछे जो प्रमुख वजह बताई जा रही है वो है यहां पर संयम लोढा और नीरज डांगी गुट की खींचतान। यही नहीं खुद अशोक गहलोत की सचिन पायलट से अदावत की वजह से भी यहां पर पायलट समर्थकों को भी किसी पद लाभ से वंचित किए रखने के लिए भी ये किया गया। संभवतः सिरोही देश में ऐसा जिला रहा होगा जहां पर कांग्रेस बिना जिला कार्यकारिणी के विधानसभा और लोकसभा चुनाव में उतरी थी। कांग्रेस जिलाध्यक्ष ने विधानसभा चुनावों से पहले पिछले वर्ष जुलाई में ही जिला कार्यकारिणी बनाकर प्रदेशाध्यक्ष को भेज दी थी। लेकिन, उस कार्यकारिणी की घोषणा साल भर बाद भी नहीं की जा सकी है।
गहलोत शासन में लाभ के पदों पर सिरोही विधानसभा में कुछ नियुक्तियां जरूर हुईं। वो भी संमय लोढा के ऐसे करीबियों की जिनकी जाति का वोट बैंक नगण्यं था और कांग्रेस से उनका सक्रिय लेना देना नही था। चुनाव परिणाम बता रहे है कि वो वैभव गहलोत या संयम लोढा को वोट दिलवाने प्रभावी भूमिका नहीं निभा पाए। वैभव गहलोत के चुनाव प्रचार में और चुनाव हारने के बाद हुई धन्यवाद सभा में पायलट गुट के कांग्रेस के नेताओं की गैरमौजूदगी बता रही है कि वैभव गहलोत को अशोक गहलोत आधी अधूरी कांग्रेस के सहारे भविष्य का राजनीतिक सफर तय करवाने में लगे हैं।
-अब तो आरएसएस भी थी निष्क्रिय
विधानसभा चुनावों के बाद अशोक गहलोत और सिरोही के पूर्व विधायक संयम लोढ़ा दोनो कांग्रेस की प्रदेश और सिरोही विधानसभा में हार की एक दलील देते मीडिया में सुनाई दिए थे कि आरएसएस के दुष्प्रचार की वजह से हारे। इस चुनाव में पूरे देश में आरएसएस के हस्तक्षेप की कहीं जानकारी सामने नहीं आई, यही नहीं राजस्थान में कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन किया। अशोक गहलोत अपने गृह सम्भाग में कांग्रेस को सीटें नहीं दिलवा पाए। अपने बेटे को जालोर लोकसभा नहीं जितवा पाए, यही नहीं संयम लोढ़ा भी वैभव गहलोत को सिरोही विधानसभा से बढ़त नहीं दिलवा पाए।
दरअसल, दोनों ही नेता नरेंद्र मोदी की तरह ये मानने को तैयार नहीं हैं कि उन्होंने सत्ता के शीर्ष पर रहते हुए बुरे दिनों में उनके लिए खून पसीना बहाने वाले समर्पित कार्यकर्ताओं को दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंका इसलिये उनके संगठनों की दुर्गत हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की काशी में शर्मनाक जीत हो या पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत की जालोर लोकसभा में और संयम लोढ़ा की सिरोही विधानसभा में शर्मनाक हार। सबके मूल में कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न और अनदेखी ही है।
खुद कांग्रेस के समर्पित कार्यकर्ताओं का ये कहना है कि सत्ता में रहते हुए जिस बेमन से अशोक गहलोत ने जालोर लोकसभा की सिरोही समेत आठों विधानसभाओं के कांग्रेस कार्यकर्ताओं से व्यवहार किया, इस चुनाव में कांग्रेस कार्यकर्ता भी उसी बेमन से वैभव गहलोत के साथ जुड़े रहे।