बैनर में नजर आए रेवदर विधायक, जनसमस्या निराकरण में नहीं

आबुरोड के मानपुर चौराहे पर लगा कांग्रेस जिलाध्यक्ष और रेवदर विधायक का बैनर

सबगुरु न्यूज-आबूरोड। भजनलाल सरकार को प्रदेश में एक साल हो गए हैं। कांग्रेस के द्वारा जिला मुख्यालयों पर 23 से 25 फरवरी तक भजनलाल सरकार की विफलताओं को गिनाने के लिए पत्रकार वार्ता करने के लिए प्रभारियों की नियुक्ति कर दी गई है।

सरकार के अपनी खामियां है और वो खामियां वही हैं जिनसे राहत देने की बात करकें ये सरकार सत्ता में आई। लेकिन, सरकार को आइना दिखाने को मजबूर करने के लिए विपक्ष के रूप में कांग्रेस कितनी सफल रही इसका आंकलन ज्यादा जरूरी हो जाता है। इसका आंकलन किया जाए तो दो दशक बाद भाजपा से कांग्रेस के पास आई रेवदर विधानसभा की सीट पर जीते एमएलए की विपक्ष के रूप में अपनी विधानसभा के लोगों की आवाज सडक और सदन में उठाने में भूमिका का आंकलन भी जरूरी हो जाता है।

दीपावली से लेकर अभी तक विधायक मोतीराम कोली और जिलाध्यक्ष आनन्द जोशी रेलवे स्टेशन और मानपुर चौराहे जैसी प्रमुख जगहों पर लगे बैनरों में लोगों को निहारते नजर आ रहे है। लेकिन, इन दोनों नेताओं को अपने हित की बात करते हुए साक्षात निहारने के इतजार में आबूरोड शहर की जनता की आंखें पथरा गई हैं।
-बदलाव के लिए ही मिली थी सीट
रेवदर विधानसभा में 2003 से ही भाजपा काबिज है। बीस साल लगातार यहां के विधायक रहे जगसीराम कोली ये यहां के लोगों को व्यवहार की शिकायत नहीं थी। लोगों के बीच में लेकिन, बीस साल में उनकी समस्याओं का निराकरण नहीं करवा पाने की वजह से लोगांं ने परिवर्तन की आस में मोतीराम कोली को चुना। आरएसएस बैकग्राउंड के मोतीराम कोली जुझारू तेवर के नेता माने जाते हैं।

लेकिन, पिछले एक साल से विशेषकर आबूरोड में जो समस्याएं और अनियमितताएं पांव पसार चुकी है, उससे लोगों को राहत दिलवाने के लिए मोतीराम कोली और जिलाध्यक्ष आनन्द जोशी का कोई विशेष प्रयास आबूरोड में भी नजर नहीं आया। हालात रेवदर के भी यही रहे। लेकिन, राजस्थान विधानसभा के दूसरे सत्र के प्रश्नों की सूची को देखने पर मोतीराम कोली के द्वारा जो 11 सवाल पूछे गए थे उनमें कम से कम रेवदर कस्बे का नाम दिख जा रहा है। किसी विधायक का महत्वपूर्ण रिपोर्ट कार्ड माने जाने वाले विधानसभा के इन 11 प्रश्नों में भी आबूरोड का नाम नहीं नजर आया।

-जीत का मार्जिन बहुत कम
मेतीराम कोली ने भले ही इस सीट को कांग्रेस की झोली में डाल दिया हो, लेकिन उनकी जीत का अंतर मात्र तीन हजार 564 वोटों का ही है। इसके विपरीत जगसीराम कोली हमेशा दस हजार से ज्यादा वोटों से जीतते रहे। जगसीराम कोली की जीत के अंतर को कवर करके इस अंतर से जीतने के पीछे अपनी ही जाति के वोटों में सेंधमारी के अलावा भाजपा के वोटरों और फ्लोटिंग वोटरों की अहम भूमिका है जिन्होंने बदलाव के लिए वोट दिए थे। पहले दस राउण्ड में जगसीराम कोली से लगातार पिछडने वाले मातीराम कोली के वोटों में ग्यारहवें राउण्ड से उछाल आया।

22 वे राउण्ड तक तीन राउण्डों को छोडकर किसी राउण्ड में जगसीराम कोली मोतीराम को पछाड नहीं पाए। जिन राउण्डों में मोतीराम को बढत मिली करोंटी से आबूरोड होते हुए अंबाजी सीमा तक के वही इलाके समस्या ग्रस्त है। आबूरोड यूआईटी, नगर पालिका ऐसी जगह है जो सीधे तौर पर लोगों से जुडी हुई है। यहां अनियमितता की भरमार है। सडक, बिजली, पानी जैसी आम समस्याओं से भी लोग परेशान हैं। रीको में उद्योगपति परेशान हैं।

आबूरोड से बहादुरगढ मार्ग पर शाम के बाद 007 गैंग के कारण लोगों का निकलना दूभर हो गया हैं। लेकिन, चंदेला में विद्युत करंट से युवक की मौत के मामले विद्युत विभाग के कार्यालय के सामने धरने समेत अंगुली में गिने जाने वाले एकाध मामले छोड दिए जाएं तो एक साल में मोतीराम कोली इन जनसमस्याओं के निराकरण के लिए जनता के बीच में संघर्ष करते नजर नहीं आए।
-विधायक की दौड आकराभट्टा तक
आबूरोड शहर मे ंतो एक जुमला कांग्रेस और आम आदमी दोनों में फेमस हो चुका है। विधायक की दौड आकराभट्टा तक। चुनावों में मोतीराम कोली के साथ भागदौड करने वाले कांग्रेस पदाधिकारी और नेता समेत भाजपा नेताओ की भी ये दलील है कि ऐसा नहीं है कि विधायक आबूरोड आते नहीं हैं। लेकिन, मानपुर चौराहे से आबूरोड शहर की तरफ जाने की बजाय उनका राजरथ आकराभट्टा की तरफ मुडकर वहीं कांग्रेस पदाधिकारी के यहां रूकता है। जबकि इसके दोनों तरफ भी एक बडी आबादी है जो अपने विधायक द्वारा उनकी सुध लेने का इंतजार कर रही है।

 

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