स्वतन्त्रता आन्दोलन के सच्चे शहीद रुपलो कोली

22 अगस्त 1858 पुण्यतिथि पर विशेष
मेरी पवित्र भूमि से चले जाओ, क्योंकि मैं अपनी मातृभूमि को कभी नहीं बेचूंगा। यह कहने वाले स्वतन्त्रता आन्दोलन के सच्चे शहीद रुपलो कोली थे। रुपलो कोली तत्कालीन सिन्ध का एक ऐसा योद्धा जो सिन्ध के लोगों का राष्ट्रीय नायक है। अंग्रेजों की आधीनता को बड़े ही साहस से नकारने वाले रुप्लो कोली अंग्रेजी सरकार से सदैव संघर्ष करते रहे। यह संघर्ष की कहानी है 1848 के भारत की। उस समय सिन्ध भारत का ही एक अटूट भौलोगिक भाग था। जब पूरे देश में अंग्रेजों के विरुद्ध जब सभी भारतीय स्वतन्त्रता के सेनानी (योद्धा) अपना स्वतन्त्रता संग्राम कर रहे थे उस समय सिन्ध में रुपलो कोली और राजपूतों ने भी आंग्ल सरकार के विरूद्ध विद्रोह का बिगुल बजा दिया था।

प्रारम्भिक जीवन

रुप्लो कोली का जन्म सिन्ध के नगरपारकर से 18 किलोमीटर दूर एक गांव कुन्धरी में 1818 में एक कोली किसान परिवार में हुआ था। रुपलो कोली की मां का नाम केसरबाई था। उनके जन्म का नाम रुपाजी कोली था लेकिन लोग उन्हें स्नेहवश रूपलो कहा करते थे। रुपलो कोली का लालन–पालन एक क्षत्रिय की तरह हुआ था। अपने कोली काबिले की सभी परम्पराओं के अनुसार रुपलो कोली को अस्त्र–शस्त्र का कठोर और अनुशासित अभ्यास करवाया गया। उन्हें तीर कमानों, भालों और घातक हथियारों को चलाने का घोर प्रशिक्षण दिया गया। इस अभ्यास से रुपलो कोली में साहस, निडरता और चीते सी स्फूर्ति का समावेश हुआ। रुपलो ने अपने युवाकाल में पहाड़ी और भट्टों के क्षेत्र में कई दरिंदों को मार गिराया था। रुपलो कोली एक सुन्दर और युवा तथा स्फूर्तियुक्त बांका जवान था। इसी गुण धर्म के कारण अन्य लोग रुपलो को बहुत सम्मान की दृष्टि से देखा करते थे। इसी स्थान पर रुपलो कोली ने स्वतन्त्रता के आन्दोलन में अपना संघर्ष प्रारम्भ किया।

आंग्ल सरकार का विरोध

चार्ल्स नेपियर के नेतृत्व में तत्कालीन आंग्ल सरकार ने आजाद सिन्ध का ध्वज हटाकर अपना (ब्रिटिश सरकार) का ध्वज फहरा दिया था और आजाद सिन्ध को ब्रिटिश सरकार का एक गुलाम भाग सिद्ध कर दिया था। लेकिन उस समय थारपारकर में अंग्रेजी सरकार और अंग्रेजों के विरुद्ध सिन्ध के कोलियों और सोढा राजपूतों ने मिलकर कुरुंजेर की पहाड़ियों में विद्रोह की घोषणा कर दी। सिन्ध के विद्रोहियों का सामना करने के लिए अंग्रेज सरकार ने लार्ड डलहौजी को सिन्ध का गवर्नर बना कर भेजा।

कोली सेना

अंग्रजों के विरुद्ध स्वतन्त्रता संग्राम हेतु रुपलो कोली ने अपने 8000 कोलियों की एक दुर्दान्त सेना का गठन किया। रुपलो कोली के साथ कर्ण सिंह सोढा, ठाकुर लाधू सिंह, सोड़ो कासमी भी सम्मिलित हो गए। ये सभी कोली बहुत वीर, साहसी और युद्धकला में निपुण थे। जब सिन्ध में कोलियों ने बड़े ही आक्रामक तरीके से अंग्रेजो के विरुद्ध भीषण विद्रोह किया हुआ था। रुपलो कोली के नेतृत्व में 8000 कोली योद्धाओं ने अंग्रजी सरकार के कार्यालयों, टेलीफोन कार्यालयों, राजस्व कार्यालयों पर अपना कब्ज़ा स्थापित कर लिया। इस साहसी कोली योद्धाओं के आक्रामक तेवर को देखकर अंग्रेजों के हाथ–पांव फूल गए। उन्होंने अपने उच्चाधिकारियों को अपने लुट्ने – पीटने की सूचना दी।

कोली और अंग्रजों के बीच युद्ध

आंग्ल सरकार ने तुरंत इस विद्रोह को दबाने के लिए 15 अप्रेल 1859 को जनरल टायरविट के नेतृत्व में एक अंग्रेजी सेना की टुकड़ी ने रुपलो कोली की 8000 सेना पर पलटवार आक्रमण किया। अंग्रेज और कोलियों के बीच सिन्ध में भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में देशभक्त कोली सेना ने अंग्रेजी सेना को बुरी तरह से हरा दिया। अनेक अंग्रेज सैनिक और अधिकारी कोली सेना के हाथों मरे गए। खुद जनरल टायरविट अपनी जान बचाकर हैदराबाद भाग गया। अपनी हार का बदला लेने के लिए हैदराबाद में जनरल टायरविट ने कर्नल इयुनिश के साथ मिलकर एक गुरिल्ला सेना की टुकड़ी तैयार की।

विश्वासघात

जमीन और पैसा तथा पद के लालच में मोदिसर के राजपूत अंग्रेजों के साथ मिल गए और उन्होंने सिन्ध के साथ और सिन्ध के शेर रुपलो के साथ गद्दारी की। 3 मई 1859 को अंग्रेजी सेना और राजपूती सेना दोनों ने मिलकर रुपलो कोली और लाधू सिंह की सेना को नगरपारकर में घेर लिया और लाधू सिंह को बन्दी बना लिया गया। लेकिन रुपलो कोली बहुत ही चतुर थे वे अंग्रेजी सेना को चकमा देकर कुरुंजेर की पहाड़ियों में छिप गए। धन का लालच देकर नगरपारकर के कुछ राजपूतों को अंग्रेजों ने अपने में मिला लिया। नगरपारकर के कुछ स्थानीय ब्राह्मणों को दान का लालच देकर रुपलो कोली की जासूसी करने का काम दिया। इन सभी लालचियों ने अंग्रजों को रुपलो कोली के गुप्त स्थान का पता बता दिया।

ऐसा कहा जाता है कि जब रुपलो कोली एक कुएं से पानी भर रहा था उस समय उसे धोखे से घेर कर बन्दी बना लिया गया। उन्हें अनेक तरह की यातनाएं दी गई, लेकिन रुपलो कोली की नसों में देशभक्ति और देशप्रेम का रक्त बहता था, वह जरा भी विचलित नहीं हुए| रुपलो कोली को बन्दी बनाकर जब जनरल टायरविट के सामने लाया गया और उसे एक बड़ी धनराशि की पेशकश की और कहा कि उसे जागीरदार बना देंगे। शर्त यह है कि वह अपने अन्य कोली विद्रोहियों का तथा ठाकुर कर्ण सिंह सोढा का भी पता ठिकाना बताए और उनकी समस्त तथा भावी गतिविधियों की जानकारी भी दे। इसके साथ ही वह सार्वजानिक रूप से विद्रोह के लिए माफ़ी मांगे और भविष्य में कोई विदोह नहीं करे।

रुपलो कोली को अनेक यातनाएं दी गई। उसकी अंगुलियों को कपास से बांध कर तेल में डुबोया गया तथा उनको जलाने की कोशिश की गई। लेकिन जिस वीर पुरुष के अन्तर्गत देश प्रेम और देश भक्ति कूट–कूट कर भरी हुई हो और जो व्यक्ति अपनी माटी और अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपनी जान की परवाह नहीं करता हो भला उसके उपर छोटे–मोटे अत्याचार और लोभ–लालच का क्या प्रभाव पडता? देशभक्ति का परिचय दिया और अन्य लोगों के बारे में कुछ भी नहीं बताया। रुपलो कोली ने अपनी तेज और आत्मविश्वास भरी आवाज में दहाड़ते हुए कहा कि मेरी पवित्र भूमि से चले जाओ, क्योंकि मैं अपनी मातृभूमि को कभी नहीं बेचूंगा।

देश भक्त मीनावती

जब रुपलो कोली की पत्नी मीनावती जेल में मिलने गई और अंग्रेजों ने मीनावती से कहा कि तुम रुपलो को समझाओ कि वह विद्रोह का त्याग करके हमारी आधीनता स्वीकार कर ले, लेकिन मीनावती भी कट्टर देशभक्त थीं। वह जेल में गई और अपने पति के गले लग गई और उसने देशभक्ति का अटूट परिचय देते हुए एक क्षत्राणी का धर्म निभाते हुए कहा कि मैं तुम्हारे लिए बिलकुल भी परेशान नहीं हूं, चाहे तुम्हें कितनी भी मुश्किलें झेलनी पडें, अंग्रेजों को अपने साथियों के नाम किसी भी कीमत पर मत बताना, अगर तुम एक देशद्रोही की तरह मरोगे तो कोई रुपलो कोली अपनी मातृभूमि को बचाने के लिए पैदा नहीं होगा और अगर तुम एक देशभक्त की तरह अपना बलिदान दोगे तो मैं अपने पुत्र को जन्म दूंगी जो तुम्हारा संघर्ष जारी रखेगा। अपनी पत्नी के ये आत्मविश्वास और देशभक्ति तथा देशप्रेम से ओतप्रोत शब्दों को सुनकर रुपलो कोली के संघर्ष की ज्वाला और भड़क गई।

रुपलो कोली हुतात्मा हुए

22 अगस्त 1858 को नगरपारकर के कुरुंजेर पहाड़ियों के पास एक नदी जिसका नाम सरधरो है के निकट रुपलो कोली को फांसी दे दी गई और सदैव के लिए रुपलो कोली को स्वतन्त्रता सेनानियों की भान्ति एक अटूट सम्मान दिया गया।

प्रासंगिकता

आज भी रुपलो कोली की वीरता, साहस और भारतमाता के प्रति भक्ति और देश प्रेम की सिन्ध में अनेक गाथाएं कही जाती हैं। वर्तमान पाकिस्तान में रुपलो कोली के जन्मदिवस और पुण्यतिथि पर अनेक आयोजन किए जाते हैं, मेले लगते हैं। जिस स्थान पर रुपलो कोली का बलिदान (फांसी) हुआ था उस स्थान पर आज भी लोग उन्हें प्रणाम करने आते हैं और अपनी आस्था प्रकट करते हैं। श्रद्धा सुमन और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। (Sindh Tourism Development Corporation) सिन्ध ट्यूरिज्म डेवलपमेंट कोपरेशन ने 26 अगस्त 2017 को नगरपारकर में रुपलो कोली की समृति और सम्मान में एक रिसोर्ट का निर्माण करवाया है और उसका नाम भी रुपलो कोली रिसोर्ट रखा है।

अत: वर्तमान में हम सभी स्वतन्त्रता का अमृत महोत्सव का आयोजन कर रहे हैं। स्वतन्त्रता के संग्राम में अनेक ऐसे वीर और योद्दा हुए जो अपनी माटी और अपने देश की स्वतन्त्रता और सम्मान के लिए हंसते–हंसते हुतात्मा हुए, लेकिन उनका नाम भुला दिया गया और छिपा दिया गया। आइए हम सभी उन सभी अनकहे, अनसुने वीरों को याद करें और उनके त्याग और बलिदान को स्मरण करते हुए उन्हें नमन करें और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए स्वतन्त्रता के अमृत महोत्सव पर उनका सम्मान कर गौरवान्वित हों।

प्रो. (डॉ) मनोज कुमार बहरवाल
सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय, अजमेर।
मो. 9414785558 & इमेल baharwal3@gmail.com