सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय अजमेर
अजमेर। नवीन शिक्षा नीति 2020 में भारतीय ज्ञान परंपरा को विद्यालय एवं महाविद्यालयी शिक्षा में विद्यार्थियों के आचरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के रूप में देखा गया है। ज्ञान परंपरा के समक्ष बहुत सारी चुनौतियां हैं। समाज का एक वर्ग भारतीय ज्ञान परंपरा को अंधविश्वास, कर्मकाण्ड और इतिहास की वस्तु मानकर इसे नकार देता है, जबकि भारतीय ज्ञान परंपरा सच्चे भारतीय के लिए वंदनीय है।
ये विचार अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ बीज के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. नारायणलाल गुप्ता ने वक्ता के रूप में सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय अजमेर के भारतीय ज्ञान परम्परा केन्द्र के तत्त्वावधान में आयोजित बीज वक्तव्य में व्यक्त करे हुए कही। महात्मा गांधी सभागार में आयोजित बीज वक्तव्य का विषय भारतीय ज्ञान परम्परा एवं राष्ट्रीय शिक्षा नीति था।
उन्होंने कहा कि हमें अपनी ज्ञान परंपरा के प्रति उपजे अविश्वास को विश्वास में बदलना होगा। ‘ज्ञान की किरणें पश्चिम से हमें मिलीं’ वाली सोच से हमें बाहर आना होगा साथ ही साथ अपनी ज्ञान परंपरा को हमें भाषा से जोड़ते हुए, आधुनिकता से जोड़ना भी जरूरी है। भारत अविष्कार की धरती है। यहां परंपरा से ज्ञान की पुनर्व्याख्या और प्रतिस्थापना होती आई है। वैदिक गणित को जादुई गणित इसीलिए कहा गया है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए महाविद्यालय प्राचार्य एवं भारतीय ज्ञान परंपरा केंद्र के अध्यक्ष प्रो. मनोज कुमार बहरवाल ने कहा कि औपनिवेशिक मानसिकता से दूर होते हुए हमें अपने ज्ञान भंडार को दुनिया में फैलाना चाहिए। भारत हमेशा ज्ञान प्राप्ति में रत रहा है। अपनी मूल थाती को जानकर उसका प्रचार प्रसार करना हमारा उद्देश्य होना चाहिए। एक शिक्षक होने के नाते हमें इस ज्ञान परंपरा को सामने लाना होगा तथा हम अपने विद्यार्थियों को इस परम्परा से जोड़ें यही हमारे लिए परमावश्यक है।
कार्यक्रम में उपाध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए भारतीय ज्ञान परंपरा केंद्र के उपाध्यक्ष एवं अकादमिक प्रभारी प्रो.अनिल कुमार दाधीच ने कहा कि हमारी भारतीय ज्ञान परंपरा हमें संकल्प की शक्ति प्रदान करती है। भारतीय शास्त्र, शस्त्र, अर्थशास्त्र, आयुर्वेद, चिकित्सा आदि सभी क्षेत्रों में अग्रणी रहा है। विदेशी आक्रमणकारियों ने हमारे ज्ञान भंडार को सदैव नष्ट करने के प्रयास किए गए किंतु हमारी एकनिष्ठता ने हमारे ज्ञान को अक्षुण्ण बनाए रखा है।
इस कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण साइंस इन संस्कृत पोस्टर प्रदर्शनी तथा कार्यक्रम से पूर्व भारतीय ज्ञान परंपरा से संबंधित वीडियो संचालन रहे। कार्यक्रम में सभी संकाय सदस्यों और विद्यार्थियों की भागीदारी रही। कार्यक्रम का प्रारंभ संस्कृत विभाग द्वारा वैदिक मंगलाचरण और संगीत विभाग द्वारा लौकिक मंगलाचरण प्रस्तुत कर किया गया। विषय प्रवर्तन आशुतोष पारीक ने किया। प्रो. रामानन्द कुलदीप ने औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया तथा संचालन सरिता चांवरिया और उमेश दत्त ने किया।