वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियां के ​बीच भारतीय चिकित्सा पद्धतियां प्रभावकारी : देवनानी

इनोवेटिव रिसर्च ऑन प्लांट-बेस्ड न्यूट्रास्यूटिकल्स और थेरैप्यूटिक्स विषय पर संगोष्ठी
अजमेर। महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय के वनस्पति तथा खाद्य एवं पोषण विभाग की ओर से सोमवार को इनोवेटिव रिसर्च ऑन प्लांट-बेस्ड न्यूट्रास्यूटिकल्स और थेरैप्यूटिक्स विषय पर आयोजित संगोष्ठी का उद्घाटन मुख्य अतिथि विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने किया।

इस मौके पर उन्होंने कहा कि वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियां निरंतर बढ़ रही हैं, जिससे प्राकृतिक उत्पादों एवं औषधीय पौधों की उपयोगिता और अधिक प्रासंगिक हो गई है।भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धतियां आयुर्वेद, यूनानी एवं प्राकृतिक चिकित्सा बिना किसी दुष्प्रभाव के सदियों से प्रभावी रूप से उपयोग में लाई जा रही हैं। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी अब पौधों में निहित औषधीय गुणों को स्वीकार कर रहा है। आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान और पारंपरिक ज्ञान का एकीकरण समकालीन स्वास्थ्य चुनौतियों के समाधान में अत्यंत सहायक होगा।

उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि एंटीबायोटिक गुणों से युक्त हल्दी, नीम, तुलसी, अश्वगंधा, अर्जुन एवं सौंफ जैसे औषधीय पौधों का भारतीय समाज में पीढ़ियों से उपयोग हो रहा है, किंतु इनका समुचित दस्तावेज़ीकरण न होने के कारण विदेशी कंपनियाँ इनके पेटेंट कराकर इन्हें महंगे दामों पर बेच रही हैं। इस स्थिति से बचने के लिए भारतीय दृष्टिकोण से शोध कार्य को बढ़ावा देने की आवश्यकता है, जिससे पारंपरिक ज्ञान संरक्षित रहे और भारत पुनः ‘विश्वगुरु’ बनने की दिशा में अग्रसर हो सके।

उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय खाद्य मसाले न केवल पोषण से भरपूर हैं, बल्कि उनमें रोगों के उपचार की अद्वितीय क्षमता भी निहित है। शाकाहार, मांसाहार की तुलना में अधिक पौष्टिक है तथा इससे संक्रामक रोगों का प्रसार भी नहीं होता।

संगोष्ठी के मुख्य वक्ता जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर पीसी त्रिवेदी ने हर्बल औषधियां एवं पादप विविधता संरक्षण विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा कि राजस्थान में अनेक औषधीय वनस्पतियां पाई जाती हैं, जिनमें प्रचुर मात्रा में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और एंटीऑक्सीडेंट्स उपलब्ध हैं।

उन्होंने युवाओं से आग्रह किया कि वे केवल नौकरियों के पीछे न भागें, बल्कि प्रदेश में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर औषधीय व्यापार को बढ़ावा दें। उन्होंने यह भी बताया कि वर्तमान में 80% दवा कंपनियां पारंपरिक औषधीय पौधों पर निर्भर हैं और वैश्विक हर्बल बाज़ार लगभग 400 बिलियन डॉलर का है।

राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, राजस्थान चैप्टर के अध्यक्ष प्रो. एचएन वर्मा ने पादप-आधारित प्रोटीन पर हुए नवीन अनुसंधानों पर चर्चा करते हुए बताया कि भारत सरकार औद्योगिक स्तर पर औषधीय पौधों के संवर्धन को प्रोत्साहित कर रही है। उन्होंने विशेष रूप से बरहेविया (पीलिया के उपचार में), क्लेओडेंड्रो (खांसी के उपचार में), ब्राह्मी एवं शंखपुष्पी (तंत्रिका रोगों के उपचार में) के उपयोग पर प्रकाश डाला।

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर कैलाश सोडानी ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि भारत प्राचीन काल से ही प्राकृतिक संसाधनों द्वारा चिकित्सा के क्षेत्र में समृद्ध रहा है, किंतु औपनिवेशिक मानसिकता के कारण हम विदेशी खाद्य पदार्थों एवं दवाओं को अधिक महत्व देते आ रहे हैं। उन्होंने चिंता व्यक्त की कि विदेशी कंपनियाँ योजनाबद्ध तरीके से पहले हमें कुपोषित खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराती हैं और फिर उससे उत्पन्न होने वाले रोगों के उपचार हेतु दवाइयाँ भी वही बेचती हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि दंत चिकित्सकों की बढ़ती संख्या का एक कारण चॉकलेट जैसी अत्यधिक चीनी युक्त खाद्य पदार्थों की बढ़ती खपत है। कुलपति ने युवाओं को अपनी जड़ों से जुड़े रहने की प्रेरणा देते हुए कहा कि आज का युवा माता-पिता के चरण स्पर्श करने के बजाय, प्रातः उठते ही मोबाइल स्क्रीन को स्पर्श करता है। उन्होंने इस बात पर भी चिंता जताई कि विदेशी भाषा बोलने एवं विदेशी वस्त्र पहनने में गर्व अनुभव किया जाता है, जबकि हिंदी में शोध करने या संवाद करने में लोग संकोच महसूस करते हैं।

उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त की कि संगोष्ठी में हिंदी शोध पत्रिका का विमोचन किया गया, जिससे वनस्पति विज्ञान के शोध हिंदी भाषी शोधार्थियों एवं किसानों तक भी पहुंच सकेंगे। उन्होंने उच्च शिक्षण संस्थानों में पुस्तकालय एवं प्रयोगशालाएँ 24 घंटे खुली रखने की आवश्यकता पर बल दिया। आयोजन सचिव प्रो. अरविंद पारिक ने स्वागत भाषण दिया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन आयोजन संयुक्त सचिव प्रो. ऋतु माथुर ने तथा संचालन सपना जैन ने किया।

संगोष्ठी में वर्चुअल रूप से भी जुडेंगे

11 फरवरी सुबह 9:30 बजे से औषधीय वनस्पतियों के संरक्षण, उपयोग और उनके स्थायित्व विषय पर देश-विदेश के वैज्ञानिक भौतिक एवं वर्चुअल रूप से चर्चा करेंगे। इस संगोष्ठी में छह राज्यों के 152 प्रतिभागी, 20 आमंत्रित वैज्ञानिक तथा 125 शोध सारांश आए है।