सबगुरु न्यूज-सिरोही (परीक्षित मिश्रा)। पिछले करीब 20 सालों से अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट पर कांग्रेस अपना पांव नहीं जमा पाई है। जगसीराम कोली यहां से चार बार जीतने के बाद पांचवी बार भाजपा के प्रत्याशी बनाए गए हैं।
कोली और मेघवाल समाज बहुल इस सीट पर कांग्रेस ने दूसरी बार जगसीराम कोली के समाज के ही मोतीराम कोली को टिकिट दिया है। पिछले चुनाव में कांग्रेस के नीरज डांगी यहां पर 14 हजार 688 वोटों से हारे थे। इस लिहाज से यदि मोतीराम कोली डांगी को मिले वोटों को बचाते हुए जगसीराम कोली को जाने वाले अपने ही समाज के आठ हजार वोटों में सेंधमारी करने में कामयाब रहें तो इस सीट पर इस बार दूसरे परिणाम देखने को मिल सकते हैं।
अपनी साफ सुथरी और निर्विवादित छवि के कारण जगसीराम कोली यहां पर लगातार विधायक बन रहे हैं। सत्ता पर कब्जा जमाए रखने की इच्छुक इस क्षेत्र के कद्दावर लोग जगसीराम कोली के माध्यम से सत्ता सुख में भागीदारी को ज्यादा सहज मानते हैं ऐसे में उनकी विचारधारा चाहे कोई हो जगसीराम कोली की तरफ उनका झुकाव रहता है। लेकिन, इस बार यहां की स्थिति कुछ बदली बदली लग रही है।
सिरोही और पिण्डवाड़ा की तरह ही लगातार टिकिट दिए जाने से कतार में लगे भाजपा के वरिष्ठ लोगों में नाराजगी है। दूसरा जो कद्दावर लोग जगसीराम कोली को सीधी छवि के कारण पसंद करते थे इस क्षेत्र में विकास नहीं हो पाने के कारण वो यहां पर अब वो भी पाला पलटने का मानस बनाते दिख रहे हैं। शहरी क्षेत्र आबूरोड और या कस्बाई क्षेत्र रेवदर और मंडार, पिछले बीस सालों में दूसरे क्षेत्र आगे बढ़ गए लेकिन, ये वहीं के वहीं हैं जहां पर दो दशक पहले थे। आबूरोड का ब्यापारिक क्षेत्र भी विकास से कोसों दूर है। इस सीट पर धु्रवीकरण के अलावा भाजपा के पास कुछ नहीं है।
कांग्रेस ने इस बार यहां पर मोतीराम कोली पर अपना भाग्य आजमाया है। कोली सिरोही जिले के कांग्रेस के कद्दावर नेता संयम लोढ़ा के करीबी माने जाते हैं। जब पूरे जिले में पंचायत राज चुनाव में कांग्रेस की नैया डूब चुकी थी तब मोतीराम कोली उन गिने चुने जिला परिषद सदस्यों में थे जो जीते थे। उनके प्रयासों से उन्होंने यहां पर विभिन्न जाति वर्गों को सामाजिक कार्यों के लिए जमीनें अलॉट करवाइ हैं।
मोतीराम कोली को कोली समाज का प्रभावशाली चेहरा माना जाता है। ऐसे में यदि वो जगसीराम कोली को जाने वाले कोली जाति के वोटों में बड़ी सेंधमारी कर लेते हैं तो इस सीट पर कांग्रेस के लिए कुछ आशा की किरण नजर आती है। इस क्षेत्र में नीरज डांगी का प्रभाव है। 2013 में लखमाराम कोली को यहां से कांग्रेस का टिकिट मिला था। लेकिन, 2018 के चुनावों में कांग्रेस प्रत्याशी रहे नीरज डांगी के साथ काम करते नजर आए नेता के द्वारा निर्दलीय के रूप में दस हजार वोटों की सेंधमारी कर लिए जाने से लखमाराम कोली को बड़ी हार का सामना करना पड़ा था।
गोपाल दाना और मेघवाल समाज का एक और केंडीडेट निर्दलीय के रूप में खड़े हुए हैं। ये दोनों ही उस समाज से आते हैं जो कांग्रेस का वोट बैंक माना जाता है। ऐसे में इस सीट पर कांग्रेस के टिकिट बदलने का फायदा उसी सूरत में हो सकता है जब वो नीरज डांगी को मिले वोटों को बचाते हुए भाजपा के वोट बैंक में बड़ी सेंधमारी कर पाए।
इस विधानसभा में जिले का सबसे महत्वपूर्ण व्यावसायिक शहर आबूरोड पड़ता है। यहां पर नगर पालिका है। इस नगर पालिका में संयम लोढ़ा गुट और नीरज डांगी गुट के पार्षदों ने भाजपा के बोर्ड के साथ मिलकर जो धमाचौकड़ी मचा रखी है उसने पूरे शहर को त्रस्त किया हुआ है। यहां पर विकास ठप है। ऐसे में इस शहर का रुख यहां के चुनाव परिणाम में सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव डालेगा। वहीं पंचायत समिति चुनावों में प्रधान पद के लिए धोखा खाने का मुद्दा भी इस विधानसभा में वोटों के खिसकने और टिकने का माध्यम बन सकता है।