परीक्षित मिश्रा सबगुरु न्यूज-सिरोही। चोरी और अनाधिकृत कब्जों आदि को रोकने के लिए जनता की अंतिम आशा किरण पुलिस ही होती है। लेकिन , लेकिन आबूरोड सदर थाने का जो मामला सामने आ रहा है उसमें प्रथम दृष्टया यही संदेश जा रहा है कि जब पुलिस और पुलिस अधीक्षक खुद अपने नाम की जमीन को नहीं बचा पाए तो समझिये कि आम आदमी का क्या हाल होना है।
विभागीय सूत्रों की मानें तो पुलिस अधीक्षक के मातहत कर्मचारी इसलिए पुलिस अधीक्षक के नाम चढ़ी भूमि पर हुए अनधिकृत काम को नहीं रोक पाए कि सिरोही के ही एक पुलिस अधिकारी की मौखिक स्वीकृति ने उनके हाथ बांधे हुए हैं। मामला सिरोही के आबूरोड का है जहां पुलिस अधीक्षक के नाम की जमीन पर कथित रूप से अनाधिकृत रूप से सडक़ बना दी गई है।
पुलिस अधीक्षक से इस संबंध पुलिस विभाग की भूमिका जानने के लिए पुलिस अधीक्षक को दूरभाष से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया। लेकिन, जिला कलेक्टर डा भंवरलाल ने उनके कार्यालय के द्वारा इस जमीन का पूर्ण या आंशिक रूप से टाइटल परिवर्तित किए जाने से इनकार किया है।
-सदर थाने के पीछे निकाल दी सडक़ आबूरोड में सदर थाने की जमीन पर कथित रूप से अनाधिकृत रूप से सडक़ का निर्माण कर दिया गया है। ये जमीन राजस्व रेकर्ड में पुलिस अधीक्षक सिरोही के नाम से दर्ज है। सूत्रों की मानें तो इस सडक़ को सदर थाने के पीछे स्थित पीएम पार्क पर जाने के लिए शॉर्टेस्ट रास्ते के लिए बनाया जा रहा है, जिससे पीएम पार्क तक जाने के लिए आबूरोड-माउण्ट आबू मार्ग से सीधी कनेक्टिविटी हो सके।
मजेदार बात ये है कि इस सडक़ के लिए लिए न तो पुलिस विभाग के द्वारा कोई बजट आवंटित किया गया है और न ही जिला कलक्टर के मातहत यूआईटी के द्वारा। सीआईटी इंजीनियरिंग कॉलेज हॉस्टल के पास बनी इस सडक़ को सदर थाने में बने पुलिस क्वार्टर के पास तक लाकर छोड़ दिया गया है।
कथित रूप से इस सडक़ को क्वार्टर के पीछे के सेटबैक से निकालने की योजना है। इतना कुछ होने पर भी पुलिस थाने की चुप्पी की मूल वजह ये बताई जा रही है कि इस काम के लिए कथित रूप से सिरोही के पुलिस विभाग के आला अधिकारी की मौखिक सहमति दी हुई है। ऐसे में मौन रहना पुलिस थाने की मजबूरी है।
-जाने का सीधा रास्ता ही नहीं आबूरोड के पटवार हलका दानवाव का खसरा संख्या 253 राजस्व रिकॉर्ड में वल्र्ड रिनिवल स्प्रीट्यूअल के नाम से अंकित है। इसकी किस्म आवासीय है। वल्र्ड रिनिवल स्प्रीट्युल की वेबसाइट पर जो न्यूज और इवेंट दिखाए जा रहे हैं उसके अनुसार ये ट्रस्ट आबूरोड स्थित ब्रह्माकुमारी संस्थान से संबद्ध नजर आ रही है। इसकारजिस्ट्रेशन जनवरी 1969 में मुम्बई में ब्रह्मा बाबा के नाम से है। इस जमीन पर ही प्रकाशमणि पार्क बना हुआ है। इस तक पहुंचने का सीधा कोई रास्ता नहीं है।
जिला कलक्टर कार्यालय और पुलिस अधीक्षक कार्यालय के सूत्रों के अनुसार इस पार्क को ही सीधा जोडऩे के लिए लम्बे समय से संस्थान के लोग जिला कलेक्टर ओर पुलिस अधीक्षक कार्यालय के चक्कर काट रहे थे। पूर्व पुलिस अधीक्षक ममता गुप्ता से तो सदर थाने की खसरा नम्बर 252/3 में से पीएम पार्क तक जाने का रास्ता देने के लिए लगातार संपर्क किया गया लेकिन, उस समय बात नहीं बनी। इस जमीन तक सीधे पहुंचने के लिए जिला कलेक्टर कार्यालय जनजातिय क्षेत्रीय विकास विभाग की खसरा नम्बर 252/4 की जमीन में से भी रास्ता मांगा गया था लेकिन, वहां भी बात नहीं बनी। पीएम पार्क और सदर पुलिस थाने के बीच सीआईटी इंजिनियरिंग कॉलेज की जमीन का टुकड़ा भी आता है। इसके खसरा नम्बर 252/6 में से भी रास्ता मांगने की कोशिश की। लेकिन, बात नहीं बनी। ऐसे में ममता गुप्ता के स्थानांतरण के बाद चुनावी उहापोह के बीच में आबूरोड सदर थाने की जमीन पर बिना सरकारी बजट के किसी निजी व्यक्ति द्वारा अब ये आधी सडक़ बना दी गई है।
-वैध अनुमति मिलती तो कलेक्ट्रेट से जारी होते आदेश सदर पुलिस थाने को जो जमीन आवंटित की गई है वो राज्यादेश पर जिला कलेक्टर के द्वारा आवंटित की गई है। राजस्थान टीनेंसी एक्ट के अनुसार पुलिस अधीक्षक इसकी सिर्फ उपयोगकर्ता है।
वो इसकी किस्म में परिवर्तन करने या इसे किसी दूसरे को स्थानांतरित करने को अधिकृत नहीं हैं। यदि इस जमीन को पुलिस विभाग को प्रकाश मणि पार्क तक जाने के लिए सडक़ बनाने के लिए देना भी है तो इसके लिए राज्य सरकार के आदेश से जिला कलेक्टर के माध्यम से ही ये प्रक्रिया अपनानी होगी। लेकिन, ऐसा हुआ नहीं है। ऐसे में पुलिस की नाक के नीचे पुलिस अधीक्षक की जमीन पर अनाधिकृत प्रवेश करके सडक़ बना देने का मामला नजर आ रहा है। इनका कहना है… प्रकाशमणि पार्क में जाने के लिए जनजाति क्षेत्रीय विभाग की भूमि से रास्ता मांगा तो था, लेकिन दिया नहीं गया था। पुलिस अधीक्षक कार्यालय से भी सदर पुलिस थाने की भूमि में से कुछ हिस्सा सडक़ बनाने के लिए दिए जाने के लिए किस्म परिवर्तन का कोई पत्र नहीं आया है।