सिरोही:भाजपा जिलाध्यक्ष के लिए जारी रहेगा एकाधिकार या होगा कुछ नया


परीक्षित मिश्रा
सबगुरु न्यूज-सिरोही। मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति के बाद अब सिरोही भाजपा को नए जिलाध्यक्ष का इंतजार है। कार्यकर्ताओं में ये चर्चा आम है कि पिछले डेढ दशक की तरह इस बार भी प्रदेश पूर्व संगठन महामंत्री प्रकाश गुप्ता के करीबियों को जगह मिलेगी या फिर प्रदेश संगठन पुरानी वर्जनाओं को तोडते हुए कुछ नया नाम सामने लाएगा।

अबकि पहली बार भाजपा में जिलाध्यक्ष की दौड में महिला का नाम भी शामिल माना जा रहा है। कांग्रेस और भाजपा में पिछले ढाई दशक में कांग्रेस की गंगाबेन गरासिया के अलावा कोई महिला इस बडे पद पर आसीन नहीं हुई है। ये तय है कि प्रदेश में जिसकी जितनी तगडी लॉबिंग होगी वहीं से ताज ले जाएगा। बिना गॉड फादर आम कार्यकर्ता या बडे नेता का जिलाध्यक्ष के पद पर आसीन हो पाना अब भाजपा में भी इतना आसान नहीं है।
कुछ घंटों में सिरोही के भाजपा अध्यक्ष की घोषणा हो जाएगी। लेकिन, अंतिम दम तक इसे लेकर जोर आजमाइश जारी है। जिले में लुम्बाराम चौधरी के कार्यकाल को छोड देवें तो करीब एक दशक तक भाजपा के पूर्व संगठन मंत्री प्रकाश गुप्ता के करीबियों को इस पद पर कब्जा रहा है। नारायण पुरोहित दो बार तो उनके बाद सुरेश कोठारी एक बार जिलाध्यक्ष रहे। ये प्रकाश गुप्ता के करीबियों में माने जाते हैं। इस बार संगठन के नियमों के अनुसार ये दोनों तो फिर से अध्यक्ष नहीं बन सकते। इस बार इनकी जगह जो नाम चल रहा है वो है योगेन्द्र गोयल का। सूत्रों की मानें तो योगेन्द्र गोयल के नाम को लेकर उनके महामंत्री पद के कार्यकाल के दौरान उनकी कार्यप्रणाली से नाराज भाजपा के कई नेताओं ने प्रदेश में पहले ही आपत्तियां लगाई हैं।
दूसरा धडा जो संगठन में जिलाध्यक्ष पद के लिए प्रयासरत माना जा रहा है उनमें शामिल है सांसद लुम्बाराम चौधरी। संगठन में अंदरखाने चर्चा है कि किसान मोर्चा के पूर्व जिलाध्यक्ष गणपतसिंह का नाम उनकी पसंद का है। इसमें शिवगंज के प्रमुख भाजपा नेता उनके लिए जयपुर में लॉबिंग करने की बात भी संगठन में जोरों पर है। लेकिन, गणपतसिंह जालोर से हैं। वर्तमान में लुम्बाराम चौधरी से पहले सांसद देवजी पटेल के भी करीबी माने जाते थे। गणपतसिंह के बाहरी होने को लेकर उनका विरोध होना शुरू हो गया है।

लम्बे अर्से बाद हो रहे जिलाध्यक्ष के मनोनयन में जो नाम चल रहा है उसमें भाजपा के पूर्व जिला महामंत्री विरेन्द्रसिंह चौहान भी शामिल हैं। लम्बे अर्से से राजसमंद के प्रभारी रहे विरेन्द्रसिंह चौहान भी इस पद के लिए लम्बी दौड लगा चुके हैं। लुम्बाराम चौधरी के जिलाध्यक्ष बनने के दौरान इन्होंने भी जिलाध्यक्ष के चुनाव में हिस्सा लेने के लिए मेहनत की थी। लेकिन, उस समय चुनाव नहीं हो पाए थे और हाईकमान के निर्देश पर लुम्बाराम चौधरी को जिलाध्यक्ष मनोनीत कर दिया गया था। विरेन्द्रसिंह चौहान सतीश पूनिया और ओम माथुर के करीबी नेताओं में माने जाते हैं।
भाजपा जिलाध्यक्ष की दौड में एक और नाम जो चल रहा है वो जिले में भाजपा की पूर्व निर्धारित वर्जनाओं को तोडने वाला नाम है क्योंकि वो महिला हैं। पूर्व जिला प्रमुख पायल परसरामपुरिया। जिले में भाजपा को अपने कार्यकाल में मजबूती देने वाले और कार्यकर्ताओं के लिए दबंगई से हमेशा खडे रहने वाले पूर्व जिलाध्यक्ष स्वर्गीय विनोद परसरामपुरिया की पुत्रवधु। जिले में अब तक सिर्फ गंगाबेन गरासिया ही महिला जिलाध्यक्ष के रूप में सुशोभित हुई है। वो भी कांग्रेस से। भाजपा ने अब तक जिले में कोई महिला जिलाध्यक्ष नहीं बनाई है। ऐसे में यदि भाजपा के महिलाओं के कोटे की प्राथमिकता देने की बात आती है तो फिर ये ही एकमात्र नाम जिले से सामने आ रहा है।

प्रदेश में प्रभाव के संबंध में संगठन में चर्चा ये है कि पायल परसरामपुरिया प्रदेश में ओम माथुर और ओम बिरला जैसे नेताओं की वरदहस्ती मिल जाती है तो फिर भाजपा सिरोही में सबको चौंका सकती है। सूत्रों के अनुसार पायल परसरामपुरिया के प्रतिद्वंद्वी धडे ने भी ये आपत्ति लगाने की कोशिश की है कि वो अंडर ऐज हैं। परंतु भाजपा ने लोअर एज की केपिंग मंडल अध्यक्षों के पद के लिए की है न कि जिलाध्यक्ष के पदों को लिए। जिलाध्यक्ष के पद के लिए अपर एज की केपिंग है जो कि 60 वर्ष तय की गई है।
इन सब प्रदेश स्तरीय नेताओं की लॉबिंग के अलावा जो सबसे महत्वपूर्ण पक्ष है उनकी चुप्पी अब तक बरकरार है। अंदरखाने किसे इनका समर्थन मिला है ये अभी तक खुलकर सामने नहीं आया है। वो तीन नाम हैं सिरोही विधायक ओटाराम देवासी, पिण्डवाडा आबू विधायक समाराम गरासिया और रेवदर से भाजपा के प्रत्याशी जगसीराम कोली। इन लोगों का रुख भी जिलाध्यक्ष के मनोनयन के लिए महत्वपूर्ण बताया जा रहा है। लेकिन, इस चुप्पी के बाद भी जहां तक समाराम गरासिया का सवाल है तो वो पिण्डवाडा प्रधान नितिन बंसल के करीबी बताए जाते हैं और बंसल गुप्ता के। मंडल अध्यक्षों के नाम को लेकर ओटाराम देवासी और जगसीराम कोली पहले ही अपने अपने क्षेत्रों में कार्यकर्ताओं की नाराजगी झेल रहे हैं।