भारत में प्राचीन काल से देवी उपासना करने की परंपरा है। यद्यपि देवी का मूल रूप निर्गुण है, तथापि उनके सगुण रूप की उपासना करने की परंपरा भारत में प्रचलित है। कुलदेवी, ग्रामदेवी, शक्तिपीठ आदि रूपों में देवी के विविध सगुण रूपों की उपासना की जाती है। हिन्दू संस्कृति में जितना महत्त्व देवता का है उतना ही महत्त्व देवी को भी दिया जाता है। भारत में अन्य संप्रदायों के समान ही शाक्त संप्रदाय भी कार्यरत है। पंचायतन की पूजा में शिव, विष्णु, गणपति और सूर्य के साथ ही देवी की पूजा का भी विशेष महत्त्व है। उपासकों के हृदय में देवी का विशेष स्थान होने के कारण ही भारत भर में प्रतिवर्ष नवरात्रि उत्सव उत्साह के साथ मनाया जाता है।
शाक्त संप्रदाय : भारत में विविध संप्रदाय कार्यरत हैं। इन संप्रदायों के अनुुसार संबंधित देवता की उपासना प्रचलित है। गाणपत्य, शैव, वैष्णव, सौर्य, दत्त आदि संप्रदायों के समान ही शाक्त संप्रदाय का अस्तित्व भी भारत में प्राचीन काल से है। शाक्त संप्रदाय द्वारा बताए अनुसार शक्ति की उपासना करने वाले अनेक शाक्त भारत में सर्वत्र दिखाई देते हैं।
पंचायतन पूजा के प्रमुख देवता : आदि शंकराचार्य जी ने भारत में पंचायतन पूजा की प्रथा प्रारंभ की । उसमें देवी का स्थान महत्त्वपूर्ण है। भारत में जिन उपास्य देवताओं की उपासना होती है, उन पांच प्रमुख देवताओं में से एक शक्ति अर्थात देवी है।
तंत्रशास्त्र की आराध्य देवता : तंत्रशास्त्र का पालन करने वाले तांत्रिक तंत्रशास्त्र के जनक सदाशिव की उपासना करते हैं। उसके अनुसार त्रिपुरसुंदरी, मातंगी, उग्रतारा आदि तांत्रिक शक्तियों की भी उपासना करते हैं। शिव के समान ही शक्ति भी तंत्रशास्त्र की आराध्या देवी है।
पुराण की कथाओं के अनुसार देवी के विविध गुण और विशेषताएं
जिज्ञासु और मुमुक्षु की प्रतीक पार्वती देवी : यद्यपि पार्वती माता शिवजी की अर्धांगिनी हैं, तथापि शिवजी से गूढ ज्ञान प्राप्त करते समय पार्वती की भूमिका किसी जिज्ञासु के समान प्रतीत होती है। तीव्र जिज्ञासावश उन्हें भूख-प्यास और निद्रा का भी भान नहीं रहता। ज्ञानप्राप्ति की लालसा में वे शिवजी से अनेक प्रश्न करती हैं। इसलिए पुराणों में शिव-पार्वती का वार्तालाप अथवा उनके मध्य हुए संभाषण का उल्लेख है। पार्वतीजी स्वयं आदिशक्ति हैं परंतु गुरुसमान शिवजी से ज्ञानार्जन करने के लिए वे जिज्ञासु और मुमुक्षु का साक्षात स्वरूप बन जाती हैं। इसलिए शिवजी ने पार्वती देवी को तंत्रशास्त्र का गूढ ज्ञान प्रदान किया है।
कठोर तपस्या करने वाली पार्वती जी महान तपस्विनी होने के कारण उन्हें अपर्णा और ब्रह्मचारिणी के नाम से संबोधित किया जाना : ऋषि मुनि जिस प्रकार कठोर तपस्या कर ईश्वर को प्रसन्न करते हैं, वैसी ही कठोर तपस्या पार्वती जी ने शंकर जी को प्रसन्न करने के लिए की थी। पार्वती जी हिमालय राजा की कन्या और राजकुमारी थीं । वे सुंदर और सुकोमल थीं। शिवजी को प्रसन्न करने का उनका दृढ निश्चय था। इसलिए उन्होंने देह की चिंता न करते हुए बर्फ से ढंके हुए प्रांत में विशिष्ट मुद्रा धारण कर दीर्घ काल तक तपस्या की। उनकी तपस्या इतनी उग्र थी कि उससे उत्पन्न ज्वालाएं संपूर्ण ब्रह्मांड में फैल रही थीं और स्वर्ग पर अधिकार प्राप्त किए हुए तारकासुर को भी भयभीत करने वाली थीं। पार्वती जी का वध करने के लिए निकट आए तारकासुर के सैनिकों को उनकी शक्ति सहन नहीं हुई तथा वे भस्मसात हो गए। नवदुर्गा में ब्रह्मचारिणी का रूप हाथ में जप माला लेकर तापसी वेश धारण किए हुए तपस्यारत पार्वती का ही प्रतीक है। पार्वती जी को अपर्णा और ब्रह्मचारिणी के नाम से भी संबोधित किया जाता है।
कलियुग में विविध संतों द्वारा की गई देवी की उपासना
आदिशंकराचार्य द्वारा की गई देवी की उपासना : आदि शंकराचार्यजी ने त्रिपुरसुंदरी देवी की उपासना की थी तथा उन पर मुकांबिका देवी और सरस्वती देवी का वरदहस्त था। उन्होंने तीन वर्ष की आयु में देवी भुजंगस्तोत्र की रचना की तथा विविध प्रकार से देवी का वर्णन किया। उन्होंने ब्रह्मसूत्रादि विपुल लेखन किया तथा देवी की उपासना पर आधारित सौंदर्यलहरी नामक ग्रंथ की रचना की। माता सरस्वती ने आदि शंकराचार्यजी को कश्मीर स्थित शारदा पीठ पर स्थानापन्न होने का आदेश दिया था। संपूर्ण भारत भ्रमण करते समय अन्नपूर्णा देवी आदि शंकराचार्यजी की क्षुधा पूर्ति करती थीं। इस प्रकार आदि शंकराचार्यजी पर देवी की कृपा थी, ऐसे प्रमाण उनके चरित्र से मिलते हैं।
शत्रु के नियंत्रण से सकुशल बाहर निकलने के लिए छत्रपति शिवाजी महाराज ने श्री बगलामुखी देवी का यज्ञ किया : हिन्दवी स्वराज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज की कुलदेवी तुलजापुर की श्री भवानीदेवी थीं। जय भवानी और हर हर महादेव के नारे लगाते हुए छत्रपति शिवाजी महाराज और उनके मावले शत्रु से युद्ध कर रहे थे। शत्रु से युद्ध करने के लिए ही श्री भवानीमाता ने प्रसन्न होकर शिवाजी महाराज को तलवार प्रदान की थी। इसी तलवार के बल पर उन्होंने शाहिस्ताखान की उंगलियां काटी थीं और अनेक शत्रुओं को मराठी तलवार का बल दिखाया था। छत्रपति शिवाजी महाराज जीर्ण देवालयों का जीर्णोद्धार करते थे और मंदिरों की सुव्यवस्था हेतु निधि देते थे। देवताओं की उपासना के अंतर्गत उन्होंने समय-समय पर विविध प्रकार के यज्ञ भी किए थे।
मिर्जा राजा जयसिंह ने शिवाजी महाराज को पराजित कर उन्हें बंदी बनाने के लिए सहस्र चंडी यज्ञ किए। इसका उद्देश्य था शिवाजी महाराज को बंदी बनाने के लिए न्यूनतम इतना पुण्य तो उनके पास होना चाहिए। बहिरजी नाईक नामक गुप्तचर प्रमुख से शिवाजी महाराज को यह जानकारी मिली, तब उसकी काट करने के लिए छत्रपति ने तुरंत श्री बगलामुखीदेवी का यज्ञ किया। तत्पश्चात शिवाजी महाराज और मिर्जा राजा की प्रत्यक्ष भेंट हुई और समझौता हुआ। तत्पश्चात औरंगजेब से मिलने जाने पर उसने उन्हें फंसाकर आगरा में बंदी बनाया। तब फल और मिठाई की टोकरी में छिपकर शिवाजी महाराज और संभाजी महाराज किले से बाहर शत्रु के नियंत्रण से बाहर निकल गए। श्री बगलामुखीदेवी की कृपा से छत्रपति कारागृह से सकुशल मुक्त हो सके। (यह कथा सनातन के संत पू. विनय भावेजी ने बताई है।)
सनातन संस्था द्वारा कालानुसार आवश्यक बताई गई शक्ति उपासना : सनातन संस्था कालानुसार आवश्यक देवी की उपासना करना सिखाती है। यहां श्री दुर्गादेवी का नामजप करने हेतु कहा जाता है। इस उपासना में श्री दुर्गादेवी और श्री लक्ष्मीदेवी का बनाया हुआ सात्त्विक चित्र और नामजप पट्टियों का उपयोग करने हेतु कहा जाता है। देवीतत्त्व की अधिक जानकारी के लिए देवी की उपासना से संबंधित शक्ति का परिचयात्मक विवेचन, शक्ति की उपासना ये ग्रंथ तथा शक्ति और देवीपूजनका अध्यात्मशास्त्र ये दो लघुग्रंथ भी उपलब्ध है। कालानुसार आवश्यक श्री दुर्गादेवी की मूर्ति भी बनाई जा रही है। सनातन के आश्रमों में दिन में दो बार महर्षि के बताए अनुसार देवी कवच लगाया जाता है।
संदर्भ : सनातन संस्था का ग्रंथ त्यौहार, धार्मिक उत्सव, एवं व्रत