नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट ने भारत से इजराइल को हथियार आपूर्ति रोकने की मांग को लेकर भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) के पूर्व अधिकारियों समेत कई सामाजिक कार्यकर्ताओं के एक समूह की ओर से दायर रिट याचिका सोमवार को खारिज कर दी।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि यह मुद्दा विदेश नीति के दायरे में आता है और केंद्र सरकार को किसी भी देश को कोई सामग्री का निर्यात रोकने का निर्देश देना इस अदालत के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 162 का हवाला देते हुए कहा कि विदेशी मामलों में संलग्न होने के लिए प्राधिकार और अधिकार क्षेत्र केंद्र सरकार में निहित है। याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता प्रशांत भूषण की दलीलें सुनने के बाद पीठ ने उनसे पूछा कि अदालत इस तरह का अधिकार क्षेत्र कैसे अपना सकती है।
पीठ ने कहा कि हम सरकार से यह नहीं कह सकते कि आप किसी खास देश को हथियार निर्यात न करें या उस देश को हथियार निर्यात करने वाली कंपनियों के लाइसेंस रद्द करें। यह विदेश नीति का मामला है जिसे सरकार को देखना है।
पीठ ने आश्चर्य व्यक्त किया कि अदालत सरकार से कैसे कह सकती है कि किसी देश को हथियारों का निर्यात नहीं होना चाहिए। पीठ ने कहा कि अदालत को इस तरह की शक्ति कहां से मिलती है, राष्ट्रीय हित का मूल्यांकन सरकार को करना होता है।
भूषण ने तर्क दिया कि अगर नीति संविधान और कानून के खिलाफ हो तो अदालत हस्तक्षेप कर सकती है। इस पर पीठ ने फिर आश्चर्य जताया कहा कि क्या शीर्ष अदालत रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध में सरकार को रूस से तेल का आयात बंद करने का निर्देश दे सकती है।
अवकाश प्राप्त आईएफएस अधिकारी अशोक कुमार शर्मा के नेतृत्व में अधिवक्ता प्रशांत भूषण के माध्यम से याचिकाकर्ताओं ने हाल ही में एक रिट याचिका दायर की थी है। इस याचिका में शीर्ष अदालत से अनुरोध किया गया था कि वह केंद्र सरकार को निर्देश दे कि वह गाजा में युद्ध के दौरान इजराइल को सैन्य हथियार और गोला-बारूद की आपूर्ति करने वाली कंपनियों के मौजूदा लाइसेंस रद्द करे।
याचिका में दावा किया गया था कि लाइसेंस की यह अनुमति कथित तौर पर अंतरराष्ट्रीय कानूनों और संविधान का उल्लंघन है। यह याचिका शर्मा के नेतृत्व में मीना गुप्ता, देब मुखर्जी, अचिन वानाइक, ज्यां ड्रेज़, थोडुर मदाबुसी कृष्णा, हर्ष मंदर, निखिल डे और अन्य ने संयुक्त रूप से दायर की गई थी।
याचिकाकर्ताओं ने हाल ही में 26 जनवरी 2024 को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) के एक फैसले का हवाला दिया जिसमें नरसंहार के अपराध की रोकथाम और दंड पर कन्वेंशन के तहत दायित्वों के गाजा पट्टी में उल्लंघन के लिए इजराइल के खिलाफ अंतरिम उपाय करने का आदेश दिया गया था। अंतरिम उपायों में इजराइल द्वारा फिलिस्तीनी लोगों पर किए जा रहे सभी हत्याओं और विनाश को तत्काल सैन्य रोक लगाना शामिल था।
याचिका में दावा किया गया था कि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम मुनिशन इंडिया के माध्यम से इजराइल को हथियार आपूर्ति करने और उसी उद्देश्य के लिए दूसरों को लाइसेंस देने में केंद्र सरकार ने स्थिति की पूरी जानकारी के साथ अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अपने दायित्वों की कथित तौर पर अनदेखी की है। हथियारों की आपूर्ति करने वाली कंपनियों में मेसर्स प्रीमियर एक्सप्लोसिव और अडानी डिफेंस एंड एरोपेस लिमिटेड जैसी निजी फर्में शामिल थीं।
याचिका में बताया गया था कि जुलाई, 2024 में आईसीजे ने उल्लेख किया कि इजराइल द्वारा फिलिस्तीनी लोगों पर असंगत हिंसा के उपयोग के माध्यम से एक कब्ज़ा करने वाली शक्ति के रूप में अपनी स्थिति का निरंतर दुरुपयोग, अंतर्राष्ट्रीय कानून के मौलिक सिद्धांतों का उल्लंघन करता है और कब्जे वाले क्षेत्र में इजराइल की उपस्थिति को गैरकानूनी बनाता है।
याचिका में यह भी कहा गया था कि हथियारों की निरंतर आपूर्ति संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के साथ 51(सी) के तहत अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत भारत के दायित्वों का उल्लंघन है।