एसपीसीजीसीए में परिसंवाद : गांधी की दृष्टि और नई शिक्षा नीति

अजमेर। सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय में महात्मा गांधी जयन्ती व लाल बहादुर जयंती के उपलक्ष पर गांधी अध्ययन केन्द्र के तत्वावधान में गांधी की दृष्टि एवं नई शिक्षा नीति पर एक परिसंवाद का आयोजन किया गया।

प्राचार्य प्रो. (डॉ) मनोज कुमार बहरवाल की अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रम का आरम्भ गांधी जी के प्रिय भजन वैष्णव जन से करते हुए डॉ. पिंकी योगी ने बताया कि गांधी जी की बुनियादी शिक्षा की अवधारण में अन्तर्निहित है कि शिक्षा से शारीरिक, बौद्धिक व भावनात्मक विकास हो। बुनियादी शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण पहलू शारीरिक श्रम के साथ-साथ चारित्रिक विकास करना है। अक्षर ज्ञान से पहले बच्चा कौषल ज्ञान प्राप्त करे ताकि स्वाबलंबन प्राप्त कर सकें।

हमे इस बारे में सोचने की आवश्यकता है कि आज ऊंची डिग्रियां लेने के उपरान्त भी आजीविका का प्रश्न बना रहता हैं। अतः कौशल आधारित शिक्षा को नई शिक्षा निति से जोड़कर हम युवाओं का समुचित विकास कर सकते हैं।

डॉ. आषुतोष पारीक ने इस विषय पर बोलते हुए कहा कि गांधी जी ने हमारे देश को बहुत कुछ दिया और उसमें शिक्षा के कुछ बुनियादी सिद्धान्त बहुत महत्वपूर्ण है। प्राचीन शिक्षा, पद्धति गांधी के शिक्षा विचारों व नई शिक्षा नीति में अनेक समानताएं हैं। जैसे मातृभाषा में शिक्षा, सनातन से सीखना, स्वदेशी, अनिवार्य शिक्षा, कौशल विकास आदि इन तीनों पद्धतियों से समान रूप से स्वीकृत है।

डॉ. मनोज अवस्थी ने कहा कि जो पीड़ पराई जानते हैं वे सही मायने शिक्षित है। आज हमारे समाने व्हाइट कॉलर अनइम्पालटमेन्ट बड़ी समस्या है जिसका समाधान हमे गांधी की बुनियादी शिक्षा व नई शिक्षा नीति में मिलता है।

डॉ. नारायण लाल गुप्ता ने कहा कि मूल तत्वों केे आधार पर परिवर्तित परिस्थितियों के समयानुकूल शिक्षा पर विचार करे तो बुनियादी शिक्षा में वो मूलतत्व दिखते हैं। यदि सारे आयाम शिक्षा के आयाम है तो फिर पाठ्यक्रम में अन्तर सभी है। किसको शिक्षित कहे? गांधी के अनुसार लर्निग टू डू (हाथ का काम), लर्निग टू लिव टू गेदर (साथ रहना सीखना), लर्निग टूं बी (अनुपम बनने के लिए सीखना), लर्निंग टू नो (जानने के लिए सीखना) सीखने वाला ही शिक्षित है।

यही बात नई शिक्षा नीति में भी है। अंत में प्राचार्य ने बहरवाल ने अध्यक्षीय उदबोधन में कहा गांधी जी बापू और शास्त्री जी हमारे देश के लाल हैं। हमे गांधी को आराध्य नहीं सुधारक के रूप में लेना होगा ताकि हम उनके विचारों से मार्गदर्शन पा सकें। कार्यक्रम का संचालन रामनन्द कुलदीप ने किया तथा डॉ. प्रियंका कुमावत ने आभार व्यक्त किया। इस कार्यक्रम में समस्त संकाय सदस्यों तथा लगभग 100 नियमित विद्यार्थियों ने भाग लिया।