सबगुरु न्यूज-सिरोही। नेताओं को खुश करने के लिए गरीब जनता पर अनीति करने का इससे बेहतर उदाहरण शायद ही कोई मिले जो राजस्थान की भजनलाल सरकार के पंचायती राज मंत्री ओटाराम देवासी के मामले में देखने को मिला है।
सिरोही जिले के उथमण टोल नाके पर उनकी गाड़ी के आगे टोल बेरियर गिर गया तो पुलिस ने वहां के गरीब चौकीदार और शिफ्ट इंचार्ज को शांतिभंग के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। तहसीलदार के समक्ष पेश किया तो तहसीलदार ने उन दोनों का हैसियत प्रमाण पत्र मांगकर उन्हें जमानत देने की बजाय जेल भेज दिया।
घटना 10 फरवरी की रात 8 बजकर 29 मिनट और 28 सेकेंड की है। राजस्थान की भजनलाल सरकार के पंचायत राज मंत्री और सिरोही विधानसभा के विधायक ओटाराम देवासी शिवगंज और सिरोही के बीच स्थित उथमण टोल नाके से निकल रहे थे। यहां से उनकी गाड़ी के आगे का पुलिस पेट्रोलिंग वाहन निकल गया परंतु उनकी गाड़ी के आगे एकाएक टोल बेरियर गिर गया और उनकी गाड़ी से टकराने से पहले उठ भी गया। इस घटना का सीसीटीवी फुटेज स्पष्ट बता रहा है कि यह घटना तकनीकी खामी या जानकारी के अभाव की वजह से हुई।
इस घटना की सूचना मिलने पर पालड़ी एम थाने की पुलिस वहां पहुंची और बिना कोई वाद दर्ज किए उस समय वहां तैनात गार्ड थानाराम देवासी और शिफ्ट इंचार्ज अनुराग मौर्य को शांतिभंग के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। इन्हें तहसीलदार के समक्ष जब जमानत के लिए प्रस्तुत किया गया तो तहसीलदार ने तो पुलिस से दो कदम आगे बढ़ते हुए दोनों को पचास हजार रुपये का हैसियत प्रमाण पत्र मांगते हुए जेल भेज दिया। इस कारण आज तीसरे दिन सुबह तक उनकी जमानत नहीं हो पाई थी।
सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि मंत्री चाहते तो इस घटना पर वहां पर चर्चा करके इसके तकनीकी पहलू को समझकर दोनों गरीबों के साथ मौके पर ही न्याय कर सकते थे। लेकिन, शायद सरकार या उनके कारिंदों की वीआईपी फीलिंग को आहत करने वाले सामान्य और गरीब मतदाता को जेल से कम की सजा पर माफ भी नहीं किया जा सकता। क्योंकि इस गरीब जनता ने अपने मत से सत्ता की बागडोर ऐसे लोगों को सौंपकर जो अपराध किया है उसके लिए जेल से कम सजा हो भी नहीं सकती। वैसे पालड़ी एम थानाधिकारी ने बताया है कि इन दोनों की आज जमानत हो जाएगी।
-टोल पर देनी होती है पूर्व सूचना
गरीब शिफ्ट इंचार्ज और गार्ड को जिस गलती के लिए पुलिस ने गिरफ्तार किया और तहसीलदार ने हैसियत प्रमाण पत्र की आड़ में जेल में ठूंसे रखा वो गलती नहीं होकर ओटाराम देवासी की पार्टी के ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नीति का हिस्सा है। दरअसल, केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय के अधीन एनएचएआई के नियमों के तहत किसी भी टोल पर वीआईपी लेन की व्यवस्था नहीं है। हर वाहन को टोल बेरियर वाली लेन से ही गुजरना होता है।
यदि टोल से एक्सेम्ट श्रेणी के व्यक्ति या संस्थान का कॉन्वे निकल रहा हो तो इसके लिए उसके संभावित समय और कॉन्वॉय में शामिल वाहनों की संख्या की पूर्व सूचना टोल पर देनी होती है। ऐसे में जब वाहन निकलता है तो ऑटोमेटिक बेरियर सिस्टम में कॉन्वॉय ऑप्शन में वाहन की संख्या डाल दी जाती है। इससे एक साथ उतने वाहन निकलने तक बेरियर नहीं गिरता है। कॉन्वॉय ऑपरेशन को नहीं डालने पर हर वाहन निकलने के बाद बेरियर फिर से गिरता है उसे फिर से मेन्युअल बटन दबाकर उठाना पड़ता है। संभवत: दस फरवरी की रात को उथमण टोल नाके पर भी ऐसा ही हुआ हो।
लेकिन, कभी कभी निकलने वाले इन कॉन्वायों की जानकारी टोल पर बैठे सभी कार्मिकों को हो ये जरूरी नहीं है। जैसी की जानकारी मिली है उसके अनुसार मंत्री देवासी के वाहन के टोल नाके पर पहुंचने के कुछ देर पहले ही पडोस वाली टोल केबिन का ऑपरेटर बेहोश हो गया था। उसे उठाकर ले जाने के लिए आदमियों की जरूरत होने पर उस टोल केबिन का ऑपरेटर भी मदद के लिए गया जिससे मंत्री का वाहन गुजरा था। ऐसे में यहां पर गार्ड ही था।
वीडियो में स्पष्ट दिख रहा है कि मंत्री की गाड़ी के आगे चल रहे पुलिस पेट्रोलिंग वाहन के टोल बेरियर पर पहुंचने से पहले ही टोल बेरियर उठा दिया गया था। उसके निकलते ही और पीछे चल रही मंत्री की गाड़ी के पहुंचने से पहले फिर से गिर गया, जिसे तुरंत उठा दिया गया था। इससे लग रहा है कि नियमानुसार या तो मंत्री के वाहन का कॉन्वॉय वहां से निकलने से पहले इसकी सूचना टोल नाके पर नहीं दी गई थी या फिर इस टोल लेन पर कार्यरत टोल ऑपरेटर के बेहोश कर्मचारी की मदद करने जाने के दौरान वहां खड़े गार्ड को कभी कभी काम आने वाले इस कॉन्वॉय वाले ऑपरेशन की जानकारी नहीं थी।
-शांति भंग में नहीं मांग सकते हैसियत प्रमाण-पत्र
सीआरपीसी की धारा 151 के तहत किसी आरोपी को कार्यपालक मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने पर उसे 107 के तहत छह महीने या एक साल के लिए पाबंद करके जमानत दिए जाने का प्रावधान है इसके लिए हैसियत प्रमाण पत्र मांगने की आवश्यकता नहीं है। कानून के जानकारों के अनुसार ऐसे मामले में हैसियत प्रमाण पत्र मांगना स्पष्ट रूप से कार्यपालक मजिस्ट्रेट की आरोपित को जेल में रखने की मंशा को दिखा रहा है।
इसकी वजह वो ये बताते हैं कि हैसियत प्रमाण पत्र भी एसडीएम के नीचे का अधिकारी तहसीलदार या उनके समकक्ष अधिकारी बना सकता है। जमानत देने के लिए हैसियत प्रमाण पत्र मांगने वाला भी तहसीलदार ही होता है। ऐसे में वो हैसियत प्रमाण पत्र जारी करने में देरी करके व्यक्ति को स्वेच्छानुसार जेल में रख सकता
है। वैसे कार्यपालक मजिस्ट्रेट के इस निर्णय को सेशन कोर्ट या हाईकोट में चुनौति दी जा सकती है, लेकिन ऐसा हर गरीब कर नहीं पाता।
-हाईकोर्ट का भी आदेश
सिरोही के अधिवक्ता मानसिंह देवड़ा ने बताया कि राजस्थान हाइकोर्ट के 1986 में राजस्थान राज्य बनाम लालसिंह प्रकरण में राजस्थान हाईकोर्ट ने भी शांतिभंग जैसे मामलों में हैसियत प्रमाण पत्र के अभाव में आरोपित को जेल भेेजना न्यायोचित नहीं माना है। इस स्थिति में आरोपित का हैसियत प्रमाण पत्र जारी होने तक शपथ-पत्र पर अंतरिम जमानत पर छोड़ सकते हैं। या फिर कार्यपालक मजिस्ट्रेट खुद ही अपने स्तर पर हैसियत प्रमाण पत्र लाने तक आरोपित की हैसियत जांचकर उसे जमानत दे सकता है।
यही नहीं सुप्रीम कोर्ट और मद्रास हाईकोर्ट ने भी जमानत के लिए हैसियत प्रमाण पत्र की आवश्यकता को वाजिब नहीं माना है। सिरोही बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष एडवोकेट मानसिंह देवड़ा ने बताया कि करीब 1990 के आसपास सिरोही बार ऐसोसिएशन के परिवाद पर सिरोही सेशन कोर्ट ने भी हैसियत प्रमाण-पत्र नहीं मांगने का परिपत्र जारी किया था।