अजमेर। राजस्थान के अजमेर में सिन्धुपति महाराजा दाहरसेन विकास एवं समारोह समिति की ओर से आज स्वतंत्रता संग्राम 1857 क्रांति में सिन्ध के बलिदानी सपूत रूपलो कोल्ही को उनके योगदान के लिये दहारसेन स्मारक पर उनकी मूर्ति के समक्ष श्रृद्धा सुमन अर्पित कर याद किया गया।
शहर के दहारसेन स्मारक पर आयोजित पुष्पांजलि कार्यक्रम में स्वतंत्रता संग्राम में बलिदान हुए सिन्ध के सपूत रूपलो कोल्ही के बलिदान दिवस पर प्रतिमा के समक्ष पुष्प अर्पित किये। यह आयोजन सिंधुपति महाराजा दाहरसेन की 1355वीं जयंती के सात दिवसीय कार्यक्रमों में शामिल रखा गया।
अखिल भारतीय कोली समाज के कार्यकारी अध्यक्ष विक्रम सिंह बोध ने कहा कि वीर देश भक्त को मौत की सजा सुनाई गई। अंग्रेजों का साथ देने वालों को इनाम में जागीरें दे दी गईं। धरती माता के इस सपूत रुपलो कोल्ही को 22 अगस्त 1859 को फांसी दी गई। उनके निभाए किरदार ने उनको हमेशा के लिए अमर कर दिया। रूपलो कोल्ही के राष्ट्रभक्ति के संस्कार अपने परिवार से प्राप्त कर अंग्रेजों के खिलाफ जीवन भर संघर्ष करते रहे। राष्ट्र की रक्षा के लिए उन्होंने कभी भी अंग्रेजों के प्रभोलनों के आगे घुटने नहीं टेके। आठ हजार अनुयाइयों के साथ अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते हुए शहीद हुए।
सामाजिक क्षेत्र से जुडे़ दिलीप पारीख ने रूपलो कोल्ही के जीवन की घटनाओं की जानकारी दी, सिंध इतिहास साहित्य शोध सस्थान के अध्यक्ष कंवल प्रकाश किशनानी ने कहा कि शोध के माध्यम से रूपलो कोल्ही के जीवन की गाथाएं एकत्र की जा रही हैं, जो आने वाले समय में देवनागरी सिंधी और हिन्दी में प्रकाशित की जाएंगी।
उल्लेखनीय है कि सिन्ध के सपूत, स्वतंत्रता संग्राम में शहीद रूपलो कोल्ही का जन्म सिन्ध की महान धरती पर 19वीं सदीं की दूसरी दहाई में धरपारकर जिले के नगरपारकर कोल्ही कबीले में हुआ। बाल्यावस्था से ही शूरवीरता और मातृभूमि के प्रेम की भावना उनमें अर्न्तनिहित थी।
स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में उनके देश प्रेम से विचलित अंग्रेजों ने 22 अगस्त 1859 को उन्हें फांसी पर लटका दिया था। उनके योगदान को स्मरण करते हुए चिरस्थाई बनाने के उद्देश्य से 16 जून 2022 को अजमेर में सिन्ध को दर्शाती दहारसेन स्मारक पर रूपलो कोल्ही की मूर्ति स्थापित की गई।