अजमेर। बहुउद्देशीय पशु-चिकित्सालय शास्त्री नगर में अजमेर जिले के पशु चिकित्सकों ने नाॅन प्रैक्टिसिंग एलाउंस की मांग को लेकर सोमवार को बैठक का आयोजन किया गया।
बैठक में वरिष्ठ पशु चिकित्साधिकारी डॉ नीतू अरोड़ा ने कहा कि राजस्थान में पशुपालन विभाग के पशु-चिकित्सक को अन्य विभाग भी पशु चिकित्सा के लिए प्रयोग किया जा रहा है। जबकि मूलतः पशु चिकित्सकों को पशुपालन विभाग ने नियुक्त किया है।
डॉ मुदित नारायण माथुर ने कहा कि पशु चिकित्सक अपने मूल विभाग के समस्त कार्य तो करता ही है साथ ही अन्य विभागों में भी अपनी सेवाएं सहर्ष प्रदान करता है। इसीलिए राजस्थान के पशु चिकित्सक नाॅन प्रैक्टिसिंग एलाउंस की सरकार से मांग करते रहे हैं।
राजस्थान पशु-चिकित्सक संघ अजमेर के महासचिव डॉ आलोक खरे ने बताया कि राजस्थान में काफी शहरों में नगर निगम बना दिए गए लेकिन निगमों के अंतर्गत दिल्ली नगर निगम की तरह पशु-चिकित्सा सेवाओं का कोई विभाग सृजित नहीं किया गया।
अमृत योजना, स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट आदि लागू होने के बाद भी शहरी क्षेत्र में पशुओं की हालत ख़राब हैं। जबकि इन सबसे पहले सृजित दिल्ली नगर निगम का उदाहरण देंखे तो उसमें पशु चिकित्सा सेवाएं नाम से एक विभाग है जो दिल्ली नगर निगम के क्षेत्र में पशुओं से सम्बंधित सेवाएं देने के लिए सृजित किया गया है। पशु चिकित्सकों का यह कैडर, दिल्ली सरकार के पशुपालन विभाग के अतिरिक्त है।
राजस्थान के नगर निगमों में अब तक ऐसा कोई कैडर बनाने की जरूरत महसूस नहीं की गई।प्रदेश के शहरी क्षेत्रों में लावारिस पशुओं को आवासीय क्षेत्र से हटवाना, घायल पशुओं की चिकित्सा, कांजी हाउस में बीमार पशुओं की चिकित्सा एवं देखभाल करने के लिए नगर निगम में पशु चिकित्सक की नियुक्ति आवश्यक है।
इसी प्रकार आवारा कुत्तों का बंध्याकरण, रैबीज का टीकाकरण आदि कार्य दिल्ली नगर निगम की तरह किए जाने अपेक्षित हैं। शहरी क्षेत्र में संचालित स्लाॅटर हाउस एवं बिक्री किए जा रहे पशु मांस का निरीक्षण के लिए भी पशु चिकित्सक की आवश्यकता होती है। लेकिन नगर निगम को पशु चिकित्सा संबंधी सभी सेवाएं पशुपालन विभाग के पशु चिकित्सक देते हैं।
डॉ अजय मिश्रा ने कहा कि राजस्थान सरकार ने गौमाता की सेवा करने के लिए एक अलग विभाग और मंत्रालय गठित कर दिया लेकिन इस विभाग के अंतर्गत पशु-चिकित्सकों की नियुक्ति ही नहीं कई गई। इस कागजी विभाग के सभी काम पशुपालन विभाग के पशु चिकित्सकों द्वारा किए जा रहे हैं। गौशाला में संधारित की जा रही गायों की चिकित्सा, टीकाकरण, भौतिक सत्यापन, अनुदान स्वीकृत करने की प्रक्रिया आदि कार्य पशुपालन विभाग के पशु चिकित्सक ही कर रहे हैं।
डॉ सपन गोस्वामी ने कहा कि हांलांकि वन विभाग में पशु-चिकित्सकों की प्रतिनियुक्ति की जाती है लेकिन हमेशा और हर शहर में नहीं। कोई भी वन्यजीव जैसे बन्दर, मोर आदि की चिकित्सा हो अथवा पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट लेना हो तो यह काम पशुपालन विभाग के पशु चिकित्सकों से लिया जाता है।
डॉ सौरभ अमरवाल ने कहा कि पशु चिकित्सकों की हालत एक अनार सौ बीमार जैसी है। सरकार को पशु पालन विभाग के पशु चिकित्सकों की बहु विभागीय सेवाएं को ध्यान में रखते हुए पशु-चिकित्सकों की मांग पर विचार करना चाहिए।