नई दिल्ली। बॉलीवुड की दिग्गज अभिनेत्री वहीदा रहमान को नेशनल फिल्म अवॉर्ड्स में दादा साहेब फाल्के लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है।
भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने वहीदा रहमान को दादा साहेब फाल्के लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया। इस मौके पर वहीदा रहमान ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और जूरी मेंबर्स का शुक्रिया अदा किया।
वहीदा रहमान ने कहा कि मुझे बहुत सम्मानीय महसूस हो रहा है, लेकिन आज जिस भी मुकाम पर मैं खड़ी हूं, यह मेरी प्यारी फिल्म इंडस्ट्री की वजह से है। मुझे किस्मत से बहुत अच्छे टॉप डायरेक्टर्स, प्रोड्यूसर्स, फिल्म मेकर्स, टेक्नीशियंस, राइटर्स, डायलॉग राइटर्स और म्यूजिक डायरेक्टर्स सबका बहुत सहारा मिला. बहुत इज्जत दी, बहुत प्यार दिया। आखिर में हेयर, कॉस्ट्यूम डिजाइनर और मेकअप आर्टिस्ट का भी बड़ा हाथ होता है। इसीलिए यह अवॉर्ड मैं अपने फिल्म इंडस्ट्री के सारे डिपार्टमेंट के साथ शेयर करना चाहती हूं क्योंकि उन्होंने शुरू दिन से मुझे बहुत प्यार दिया, सपोर्ट किया। कोई भी एक अकेला आदमी फिल्म नहीं बना सकता, उन सबको हम सबकी जरूरत होती है।
अपने नाम वहीदा ‘लाजवाब ’को साकार करती वहीदा रहमान करिश्माई अभिनय से लगभग पांच दशक से सिने प्रेमियों के दिलों पर राज कर रही हैं। वहीदा रहमान का जन्म तमिलनाडु के चेंगलपट्टू में हुआ था। उनके पिता जिला अधिकारी थे। बचपन से ही वहीदा रहमान का रूझान नृत्य और संगीत की ओर था। पिता ने नृत्य के प्रति नन्हीं वहीदा के रूझान को पहचान कर उसे उस राह में चलने के लिए प्रेरित किया और उसे भरतनाट्यम सीखने की अनुमति दे दी। तेरह वर्ष की उम्र से वहीदा रहमान नृत्य कला में पारंगत हो गई और स्टेज पर कार्यक्रम पेश करने लगी। शीघ्र हीं उनके नृत्य की प्रशंसा सभी जगह होने लगी।
1955 में वहीदा रहमान को एक के बाद एक करके दो तेलुगू फिल्मों में काम करने अवसर मिला।फिल्म में वहीदा का अभिनय दर्शकों ने काफी सराहा। हैदराबाद में फिल्म के प्रीमियर के दौरान निर्माता गुरूदत्त के एक फिल्म वितरक वहीदा के अभिनय को देखकर काफी प्रभावित हुए। बाद में गुरूदत्त ने वहीदा को स्क्रीन टेस्ट के लिए बुलाया और अपनी फिल्म ‘सीआईडी’ (1956) में काम करने का मौका दिया।
फिल्म निर्माण के दौरान जब गुरूदत्त ने वहीदा को नाम बदलने के लिए कहा तो वहीदा ने साफ इंकार करते हुये कहा कि उनका नाम वहीदा ही रहेगा। दरअसल वहीदा का अर्थ होता है ‘लाजवाब’। इसलिए वह अपना नाम नहीं बदलना चाहती थी। बाद में वहीदा रहमान ने अपने लाजवाब अभिनय से अपने नाम को सार्थक भी किया।
सीआईडी’ की सफलता के बाद फिल्म ‘प्यासा’ (1957) में वहीदा रहमान को हीरोइन का रोल मिला। इसके बाद वहीदा रहमान को वर्ष 1959 में प्रदर्शित गुरूदत्त की ही फिल्म ‘कागज के फूल’ में काम करने का मौका मिला। वर्ष 1960 में वहीदा रहमान की यादगार फिल्म ‘चौदहवी का चांद’ प्रदर्शित हुई जो रूपहले पर्दे पर सुपरहिट हुई। इस फिल्म के एक गाने ‘चौदहवी का चांद हो या आफताब हो जो भी हो तुम खुदा की कसम लाजवाब हो’ ने दर्शकों को वहीदा का दीवाना बना दिया और उन्हें कहना पड़ा कि वह अपने नाम की तरह सचमुच लाजवाब है।
वर्ष 1962 में वहीदा की ‘साहब बीवी और गुलाम’ प्रदर्शित हुई। वर्ष 1965 में वहीदा के सिने करियर की एक और अहम फिल्म ‘गाइड’ प्रदर्शित हुई। फिल्म में वहीदा का रोजी का किरदार नकारात्मक छवि वाला था। वहीदा ने फिल्म में अपने दमदार अभिनय से दर्शकों को अपना दीवाना बनाया बल्कि साथ ही वह सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्म फेयर पुरस्कार से भी समानित की गई। वर्ष 1969 में प्रदर्शित फिल्म ‘खामोशी’ में वहीदा के अभिनय के नए आयाम दर्शकों को देखने को मिले। फिल्म में वहीदा ने नर्स का किरदार निभाया जो पागल मरीजों का इलाज करते करते खुद ही बीमार हो जाती है।
सत्तर के दशक में वहीदा रहमान ने चरित्र भूमिका निभानी शुरू कर दी। इन फिल्मों में अदालत, कभी कभी, त्रिशूल, नमक हलाल, हिमतवाला, कुली, मशाल, अल्लाह रखा, चांदनी और लहें प्रमुख है। इसके बाद वहीदा ने लगभग 12 वर्ष तक फिल्म इंडस्ट्री से किनारा कर लिया। वर्ष 2001 में वहीदा ने अपने करियर की नई पारी शुरू की और ओम जय जगदीश, वाटर, रंग दे बसंती, दिल्ली 6 जैसी फिल्मों से दर्शकों का मन मोहा। अपने जीवन के 75 से भी ज्यादा बसंत देख चुकी वहीदा रहमान आज भी उसी जोशो खरोश के साथ अपने किरदार को फिल्मों में जीवंत कर रही है।
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