जैसलमेर के मोहनगढ़ क्षेत्र में ट्यूबवैल से निकला पानी सरस्वती नदी का नहीं

जैसलमेर। राजस्थान में जैसलमेर जिले के मोहनगढ़ क्षेत्र में गत दिनों निकले पानी एवं मिट्टी के संबंध में किये जा रहे अलग अलग दावों में इसे सरस्वती का पानी बताए जाने को भूजल वैज्ञानिक सिरे से खारिज कर रहे हैं।

यह बताया जा रहा है कि तेज दबाव के साथ सफेद मिट्टी भी बाहर आई है। यह मिट्टी चिकनी है। ऐसे में कई लोग इसे सरस्वती नदी का पानी बता रहे हैं, लेकिन यह पानी खारा होने से सरस्वती नदी होने के दावों को भूजल वैज्ञानिक सिरे से ही खारिज कर रहे हैं।

जैसलमेर का यह इलाका करीब 25 करोड़ वर्ष पहले टेथिस सागर का तट हुआ करता था। इसे लेकर कई वैज्ञानिक दावा करने के साथ ही शोध में जुटे हुए हैं। ऐसे में बोरवेल का खारा पानी एवं निकली सफेद चिकनी मिट्टी समुद्र के पानी के होने के दावे को और बल मिल रहा है।

भूजल विशेषज्ञों के मुताबिक जमीन से टर्सरी काल की निकल रही मिट्टी के चलते यह पानी 60 लाख वर्ष पुराना होने की संभावना है। यह पानी वैदिक काल से भी अत्यंत पुराना होने की संभावना के मद्देनजर इस पर और कुंए खोदकर अध्ययन करने की आवश्यकता है।

वहीं दूसरी तरफ जैसलमेर के मोहनगढ़ क्षेत्र में एक खेत मे ट्यूबवेल ख़ुदाई के दौरान भूगर्भ से अचानक अप्रत्याशित रूप से जबरदस्त पानी निकलने के कारण ध्वस्त हुए ट्यूबवेल एवं बाद में अचानक अप्रत्याशित रूप से बंद हुए पानी के संदर्भ में बड़ोदा से बुधवार को तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) आपदा प्रबंधन दल मौके पर पहुंचा और वहां अध्ययन किया।

दूसरी तरफ खुदाई के गड्ढे से पानी का स्तर लगातार कम हो रहा है, लेकिन उसमें भूगर्भ से अभी भी बहुत कम मात्रा में गैस निकल रही है। पानी में से गैस के बुलबुले निकलते हुए देखे जा रहे हैं।

ओएनजीसी का दल ने ग्रामीणों से कहा कि ध्वस्त हुए गड्ढे से मशीन एवं ट्रक निकालना उचित नहीं होगा, क्योंकि वहां से इन्हें निकालने में भारी भरकम खर्च तो होगा ही शायद ट्रक एवं मशीन के दबे होने से पानी का निकलना बंद हो गया है। इन्हें बाहर निकालने के प्रयास में एक बार पुनः जबरदस्त पानी का प्रवाह वापस शुरू होने की आशंका है।

उधर, ट्यूबवेल से अपने आप ही पानी बंद होने से सभी ने राहत की सांस ली, लेकिन अब राज्य सरकार ने इस प्रकार की विपरीत परिस्थितियों एवं आपदा को गंभीरता से लेते हुए मामले की जांच के लिए अपने जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी एवं भूजल विभाग मंत्री कन्हैयालाल चौधरी को मौके पर भेजा है।

चौधरी ने जिले की उप तहसील मोहनगढ़ स्थित सुथार मण्डी के 27 बीडी क्षेत्र में किसान विक्रम सिंह के खेत में बोरवेल की खुदाई के दौरान अचानक अनियंत्रित पानी एवं गैस निकलने के बाद स्थिति का अवलोकन किया एवं वास्तविक स्थिति देखी। इस दौरान जैसलमेर विधायक छोटूसिंह भाटी एवं उप तहसीलदार मोहनगढ़ ललित चारण, वरिष्ठ भूजल वैज्ञानिक डॉ नारायण दास इनखिया और अन्य जिला प्रशासन के अधिकारी साथ थे।

कन्हैया लाल ने कहा कि बोरवेल खुदाई के दौरान अचानक दबाव के साथ निकले पानी एवं गैस की जांच भी कराई जाएगी एवं इसके कारणों का पता लगाया जाएगा। उन्होंने बताया कि जिला प्रशासन ने भी मुस्तैदी के साथ समय पर उचित कार्रवाई की है। उन्होंने कहा कि किसान विक्रम सिंह के इस आपदा के कारण खेत पर हुए नुकसान का भी आकलन कराया जाएगा एवं सहयोग भी दिया जाएगा।

उधर, वरिष्ठ भूजल वैज्ञानिक डॉ नारायण दास इनखिया ने इस संबंध में बताया कि जैसलमेर जिले के मोहनगढ़ के बाहला क्षेत्र में बोरवेल से आ रहा पानी अब बंद हो गया है। इस बोरवेल से निकले पानी एवं मिट्टी के नमूने लेकर जांच के लिए भिजवाएं जा रहे हैं।

बोरवेल का निकला पानी सरस्वती नदी का नहीं हो सकता। सरस्वती नदी का इतिहास सिर्फ पांच हजार वर्ष पुराना है, जबकि बोरवेल से निकला पानी करीब 60 लाख वर्ष पुराना है। पानी के साथ निकल रही रेत टर्सरी काल की है, जो वैदिक काल से पुरानी है। ऐसे में यह पानी सरस्वती नदी का नहीं है।

मोहनगढ़ के पानी को सरस्वती का पानी बताना बहुत जल्दबाजी होगी, इस पर आगे अध्ययन होगा तो खुलासा होगा, उसके बाद काफी प्रयास करने होंगे। परीक्षण के लिए और कुंए खोदने होंगे।

उन्होंने बताया कि जमीन से अपने आप पानी निकलने के संबंध में लोगों को जिज्ञासा रहती है कि भूगर्भ में नदियां बह रही होगी, जबकि भूगर्भ में पानी पत्थरों के बीच मे रहता है, जिसमें हम छिद्र करते हैं, तो वह पानी ऊपर निकल कर आ जाता है।

डॉ इनखिया ने बताया कि यहां समुद्र होने का यह सबसे बड़ा प्रमाण है। बोरवेल से जो मिट्टी निकली है, वह समुद्री मिट्टी है। वहीं पानी का टीडीएस भी पांच हजार के करीब है। हालांकि समुद्र का पानी का टीडीएस बहुत ज्यादा होता है, लेकिन इस बोरवेल के पानी के साथ कई खनिज लवण भी मिल गए हैं। जिससे इसके टीडीएस में कमी आ सकती है।

सरस्वती नदी की तो उसका रास्ता सीमावर्ती तनोट के आस पास के क्षेत्र में है, जहां जमीन से कुछ नीचे ही पानी बाहर आ रहा है और वह मीठा भी है। फिलहाल जैसलमेर जिले में सरस्वती पर अनुसंधान की आवश्यकता है।