वायनाड। केरल के वायनाड जिले में हुए कई भूस्खलनों में मरने वालों की संख्या बढ़कर 308 हो गई है। स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने शुक्रवार को यह जानकारी देते हुए बताया कि करीब 200 लोग अब भी लापता हैं। उन्होंने संवाददाताओं को बताया कि राहत एवं बचाव अभियान चल रहा है और अब तक 195 शव तथा 113 मानव अंग बरामद किए जा चुके हैं।
अधिकारियों ने बताया कि मंगलवार तड़के वायनाड में मेप्पडी के पास पहाड़ी इलाकों में भारी भूस्खलन के बाद 213 से अधिक लोगों का विभिन्न अस्पतालों में इलाज चल रहा है। इस बीच छह क्षेत्रों में तलाशी के लिए 40 खोज दल गठित किए गए हैं। पहले जोन में अट्टामाला और अरनमाला, दूसरे जोन में मुंडकाई, तीसरे जोन में अमलीमट्टम, चौथे जोन में वेल्लारमाला विलेज रोड, पांचवें जोन में जीवीएचएसएस वेल्लार्मला और छठे जोन में अतिवारा शामिल हैं।
प्रत्येक दल में तीन स्थानीय लोग, एक वन विभाग का कर्मचारी और सेना, नौसेना, तटरक्षक बल, राष्ट्रीय आपदा मोचन बल और अन्य के सदस्य होंगे। ये दल पुलिस और स्थानीय तैराकों के सहयोग से आठ थाना क्षेत्र में आने वाले चालियार नदी क्षेत्रों के 40 किलोमीटर के क्षेत्र में भी खोज करेंगी। पुलिस हेलीकॉप्टर का उपयोग करके समानांतर खोज की जाएगी। इसके अलावा बचाव कार्यों में 10 सदस्यीय प्रशिक्षित विशेषज्ञ ‘खोज एवं बचाव’ (एसएआर)श्वानों की एक टीम भी तैनात की गई है।
10 से 15 फुट मलबे से मानव शरीर की गंध सूंघ रहे श्वान
केरल के वायनाड जिले में भूस्खलन से तबाह हुए इलाकों में लापता लोगों का पता लगाने में दस से पन्द्रह फुट मलबे के नीचे से भी मानव शरीर की गंध सूंघने में सक्षम और खोज तथा बचाव कार्यों (एसएआर) के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित दस श्वानों का एक दस्ता खोज अभियान में सक्रिय रूप से सहायता कर रहा हैं।
सूत्रों ने बताया कि इसके अतिरिक्त, मिट्टी और पानी में 30 मीटर की गहराई तक शवों का पता लगाने के लिए ड्रोन-आधारित रडार का भी उपयोग किया जाएगा। सूत्रों ने बताया कि सेना की एलीट कैनाइन यूनिट के तीन श्वान, केरल पुलिस के तीन और तमिलनाडु के चार श्वान बचाव अभियान में सक्रिय रूप से शामिल हैं।
बेल्जियन मैलिनोइस, लैब्राडोर और जर्मन शेफर्ड जैसे विशेष रूप से प्रशिक्षित श्वान दल में शामिल है। केरल पुलिस ने तलाश अभियान के लिए तीन कुत्तों मर्फी, माया और मैगी को तैनात किया है जबकि सेना के जैकी, डिक्सी और सारा लैब्राडोर रिट्रीवर नस्ल के हैं।
उत्तर प्रदेश के मेरठ कैंट में आरवीसी सेंटर एंड कॉलेज की डॉग ट्रेनिंग फैकल्टी (डीटीएफ) देश में सेना के श्वानों के लिए सबसे पुरानी प्रशिक्षण अकादमी है। इस संकाय को श्वान प्रशिक्षण में उत्कृष्टता केंद्र के रूप में नामित किया गया है। यह श्वानों की नौ अलग-अलग विशिष्टताओं को प्रशिक्षित करता है, जिसमें खोज और बचाव भी शामिल हैं।
वायनाड में जो श्वान लाए गए हैं, वे विशेषज्ञ खोज और बचाव (एसएआर) श्वान हैं, जिन्हें मलबे के नीचे मानव गंध की पहचान करने और संकेत देने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। इस महत्वपूर्ण जिम्मेदारी को संभालने के योग्य होने के लिए उन्हें 12 सप्ताह के बुनियादी प्रशिक्षण और फिर 24 सप्ताह के विशेष प्रशिक्षण से गुजरना पड़ता है। ये श्वान 10-12 फुट मलबे के नीचे से भी इंसान के शरीर की गंध सूंघने में सक्षम हैं।
इंसान की गंध सूंघकर ये कुत्ते अपने मालिक को भूस्खलन के मलबे के नीचे दबे इंसानों की मौजूदगी का संकेत देते हैं, जहां अन्य उपकरण खोदकर जीवित या मृत शरीर निकाल सकते हैं। इन कुत्तों का प्रयोग पहले भी बड़ी सफलता के साथ किया जा चुका है।